हमारा भारत देश जिसकी सबके बड़ी विशेषता है अनेकता में एकता, हमारे यहां विविध रीति रिवाज कला एवं संस्कृति धर्म और कई अन्य विविधताएं हैं, फिर भी हम भारतवासी सब एक हैं.
आज हम बात करेंगे गुजरात की देवभूमि द्वारिका जिले के ओखमंडल तहसील के वरवाला गांव में मौजूद सूफी संत अब्बा बापू दरगाह की.
बुखारी गुलाम हुसैन उर्फ अब्बा बापू 1977 के वर्ष में इस दुनिया को अलविदा कह दिया. लेकिन हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल कायम रखने हेतु जो काम कर गए वो आज भी सराहनीय है.
अब्बापीर बापु जब सवेरे उठते थे तब सर्व प्रथम भगवान श्री द्वारकाधीश जी के आगे नतमस्तक होकर अपनी दिनचर्या की शुरुआत करते थे. सिर्फ इतना ही नहीं जब उन्हें कोई हिंदू समाज द्वारा आमंत्रित किया जाता था, तब वे पूरी शिद्दत से हिंदू धर्म के रीति रिवाज के अनुसार जाते थे.
अब्बापीर बापू का जीवन मात्र एक धर्म पर केंद्रित नही था बल्कि पूरी इंसानियत पर टिका हुआ था. उन्होंने हमेशा बेसहारा लाचार बेबस और भूखे प्यासे लोगो कि पूरे मन से सेवा की.
*अब्बाबापू ऊर्ष*
हर साल बापू का ऊर्ष वरवाला गांव में होता है जिसको लेकर अब्बा बापू दरगाह कमिटी के सदस्यों द्वारा पूरी तैयारी की जाती है. इस कमिटी में हिंदू मुस्लिम समुदाय के लोग साथ मिलकर काम करते हैं. 2 दिन मेला लगता है और साथ में कव्वाली और हिंदू भजन कीर्तन का प्रोग्राम भी एक साथ होता है. लाखों लोग इस मेले में उमड़ते हैं. सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि आज तक कोई गलत कार्य नहीं हुआ है. सब लोग मिलजुल कर मेले का लुत्फ उठाते हैं. मेले में कई सारी राइड्स, खाने पीने के स्टॉल, मनोरंजन और गेमिंग जोन के साथ बच्चों के लिए भी बहुत सारी व्यवस्था होती है.
*उर्स की शुरुआत*
बापू के उर्स की शुरुआत भगवान द्वारिकाधीश जी को श्रीफल अर्पित करके होती है. बाद में बापू की दरगाह पर चादर चढ़ाई जाती है और साथ में उर्ष की शुरुआत होती है.
अब्बा बापू मुस्लिम समुदाय से होकर भी कभी नॉनवेज नही खाया और आज भी नॉनवेज खा कर बापू की दरगाह पर जाना वर्जित है. इसलिए बापू के उर्स मै 2 दिन तक लाखों लोग प्रसाद लेते हैं और ये प्रसाद यानी न्याज प्योर वेज होती है. 2 दिन में 11 टन चावल की खपत होती है. बापू का साफ साफ मानना था कि मेरे दर पर आया कोई भी व्यक्ति भूखा ना जाए और इसलिए यहां पर सबके लिए एक ही प्रसाद वेज बिरियानी बनाई जाती है और दोपहर में और रात को लाखों लोग पेट भरके खाना खाते हैं.
वरवाला स्थित इस दरगाह पर आज भी कोई अंधविश्वासी कार्य नहीं हुआ है, ना कोई धागा पानी या कोई और प्रकार के प्रलोभन दिया जाता. आज भी कोई अब्बा बापू के दर पर जाना चाहे वो अपनी मुराद लेकर जाता है और बापू उसे पूरा करते हैं.
*दरगाह से गौ माता के लिए दान*
दरगाह पर होने वाले भजन कीर्तन प्रोगाम में जो पैसे इकट्ठे होते है वो सारे पैसे वरवाला गांव में मौजूद राधे कृष्णा गौशाला को गौ माता के लिए दान कर दिया जाता हैं. आज भी इस दरगाह पर गफारबापू सेवक के रूप में काम करते हैं जो अनेक गरीबों लाचार और भूखे लोगों की पूरे मन से सेवा करते है.