टूटे कंधे से उड़ाया डैमेज प्लेन-पाकिस्तान की कैद से भी भागे, कौन थे एयरफोर्स के जांबाज डीके पारुलकर, जो अब नहीं रहे

भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन डी. के. पारुलकर (सेवानिवृत्त) का निधन हो गया है. उन्होंने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान असाधारण साहस और दृढ़ संकल्प का परिचय देते हुए पाकिस्तान की कैद से भागने में अहम भूमिका निभाई थी. उनके योगदान को भारतीय सैन्य इतिहास में एक प्रेरणादायक अध्याय के रूप में याद किया जाएगा.

एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, उनका निधन महाराष्ट्र के पुणे के पास हुआ. आईएएफ ने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा कि ग्रुप कैप्टन डी.के. पारुलकर (सेवानिवृत्त), वीएम, वीएसएम , 1971 के युद्ध के वीर योद्धा जिन्होंने पाकिस्तान की कैद से भागने का एक साहसी नेतृत्व किया. भारतीय वायुसेना में साहस, सरलता और गौरव के प्रतीक रहे हैं. अब वो स्वर्गीय निवास की ओर प्रस्थान कर चुके हैं. भारतीय वायुसेना के समस्त वायु योद्धा उन्हें अपनी गहरी संवेदनाएं प्रकट करते हैं. इसमें उनके वीरता पुरस्कार प्रशस्ति पत्र का एक पुराना अंश भी शेयर किया गया है.

 

डी. के. पारुलकर के बेटे आदित्य पारुलकर ने बताया कि मेरे पिता का सोमवार की सुबह पुणे स्थित हमारे आवास पर पर 82 वर्ष की आयु में हार्ट अटैक से निधन हो गया. पारुलकर अपने पीछे पत्नी और दो बेटों को छोड़ गए हैं. उनका अंतिम संस्कार पुणे में किया गया.

1965 के युद्ध में पारुलकर की बहादुरी

प्रशस्ति पत्र का एक पुराना अंश शेयर किया गया जिसके मुताबिक, मार्च 1963 में वायुसेना में कमीशन प्राप्त करने वाले पारुलकर ने अपने करियर के दौरान उन्होंने वायुसेना अकादमी में फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर सहित कई महत्त्वपूर्ण पदों पर सेवाएं दी थीं. प्रशस्ति पत्र के पुराने अंश में लिखा है, 1965 के भारत-पाक युद्ध के समय जब उनका विमान दुश्मन की गोलीबारी का शिकार हुआ और उनके दाहिने कंधे में गंभीर चोट आई तब भी उन्होंने साहस नहीं खोया. उनके सीनियर ने उन्हें विमान से बाहर निकलने की सलाह दी लेकिन उन्होंने घायल अवस्था में भी अपने क्षतिग्रस्त विमान को सुरक्षित बेस तक उड़ाया. उनकी इस वीरता के लिए उन्हें वायु सेना पदक से सम्मानित किया गया.

विशिष्ट सेना पदक मिला

1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान तत्कालीन विंग कमांडर पारुलकर को पाकिस्तान के रावलपिंडी स्थित POW (Prisoner of War) कैंप में रखा गया था. जहां पर उन्हें भारतीय वायुसेना के 2 और साथी मिले जिनके नाम एम.एस. गरेवाल और हरीश सिंहजी थे. पाकिस्तान युद्धबंदी शिविर से बाहर निकलना काफी मुश्किल था लेकिन इन बहादुरों ने बिना हथियारों के सुरंग खोदने का काम शुरु किया. गार्ड से छिपते हुए उन्होंने सुरंग बनाई. जिसके बाद अपने राष्ट्र और भारतीय वायुसेना के प्रति गहरी निष्ठा और साहस का परिचय देते हुए 13 अगस्त, 1972 को ग्रुप कैप्टन रहे डीके पारुलकर मलविंदर सिंह गरेवाल और हरीश सिंह जी के साथ युद्धबंदी शिविर से भागने में सफल रहे. डीके पारुलकर ने अपने दो सहयोगियों के साथ रावलपिंडी युद्धबंदी शिविर से भाग निकलने की एक साहसिक योजना का नेतृत्व किया. उन्हें विशिष्ट सेना पदक भी मिला.

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