MP के कृष्ण कुमार की कहानी, पंडिताई करने अमेरिका गया और 13 साल तक वहीं फंसा रहा

पुरोहिती के लिए अमेरिका गए मध्य प्रदेश के छतरपुर के रहने वाले कृष्ण कुमार द्विवेदी को 14 साल का वनवास काटना पड़ा है. बड़ी मुश्किल से वापस लौटे कृष्ण द्विवेदी को यह वनवास इतना भारी पड़ा कि वह ना तो अपनी मां की अर्थी को कंधा दे पाए और ना ही अपने भाई बहनों की शादी में ही शामिल हो पाए. छतरपुर के जुझार नगर थाना क्षेत्र में ज्योराहा गांव के रहने वाले कृष्ण कुमार द्विवेदी साल 2008 में पुरोहिती के प्रशिक्षण के लिए प्रयागराज के स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती चैरिटेबल ट्रस्ट से जुड़े थे.

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इस दौरान उनका प्रदर्शन शानदार था. ऐसे में संस्था ने उनके काम को प्रोत्साहित करते हुए 50 महर्षि वैदिक पंडितों के साथ 26 जनवरी 2011 को दो साल के लिए अमेरिका के शिकागो सिटी भेज दिया था. वहां यदि इनका काम ठीक रहता तो एक साल का एक्सटेंशन मिलता, लेकिन दो साल काम करने के बाद कृष्ण कुमार द्विवेदी अपनी मंडली से बाहर निकलकर शिकागो में ही अलग काम ढूंढने लगे. उन्हें छोटी मोटी नौकरी मिल भी गई और वह काम में इस कदर बिजी हो गए कि वीजा का ध्यान ही रहा.

मां की अर्थी को नहीं दे पाए कंधा

इसी बीच इनका वीजा एक्सपायर हो गया और वह शिकागो में ही फंस कर रह गए. इस दौरान उन्होंने स्वदेश वापसी के काफी प्रयास किए, भारत में कई अधिकारियों और नेताओं के साथ पत्राचार भी किया, लेकिन कोई असर नहीं हुआ. यहां तक कि मां की देहांत की सूचना के बाद वह कुछ नहीं कर पाए. अब काफी मुश्किलों के बाद उनकी घर वापसी हो सकी है. कृष्ण कुमार द्विवेदी के मुताबिक उन्होंने तो वक्त के आगे हार मान ली थी, लेकिन इसी बीच भारत सरकार की लोकप्रियता का उन्हें फायदा मिला.

14 साल बाद हुई घर वापसी

अमेरिकी सरकार ने वीजा खत्म होने के बाद उन्हें वहा रहने दिया.इसी क्रम में उन्हें स्वदेश वापसी में भी मदद मिली और आखिरकार वह अपने घर लौट आए हैं. रविवार की दोपहर जब वह अपने गांव पहुंचे तो गांव वालों ने भी ढोल नगाड़े बजाकर उनका स्वागत किया. कृष्ण कुमार के मुताबिक इस 14 साल के वनवास में उन्होंने बहुत कुछ सीखा है, लेकिन खोया भी काफी कुछ है. खासतौर पर अपनी मां के अंतिम समय में उनके पास ना रहकर उन्होंने अपने जीवन का सबसे बड़ा नुकसान झेला है.

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