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हेमंत सोरेन… जेल से खुला जीत का दरवाजा, फिर साबित की आदिवासी पॉलिटिक्स पर पकड़

झारखंड का मिजाज सत्ता बदलने का रहा है. वोटिंग परसेंटेज में इजाफा हो या गिरावट, सत्ता बदलती आई है लेकिन रुझानों में यह ट्रेंड बदलता दिख रहा है. ताजा रुझानों में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की अगुवाई वाला इंडिया ब्लॉक 88 में से 50 से अधिक सीटों पर आगे चल रहा है. ये रुझान नतीजों में बदलते हैं तो सूबे में हेमंत सोरेन सरकार की वापसी तय है.

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जेएमएम 31 सीटों पर आगे चल रही है. जेएमएम की गठबंधन सहयोगी कांग्रेस 12, आरजेडी छह और लेफ्ट दो सीटों पर बढ़त बनाए हुए हैं. झारखंड के इन रुझानों के बाद अब बात इसे लेकर हो रही है कि क्या हेमंत सोरेन की जीत का दरवाजा जेल से खुला?

जेल से खुला जीत का दरवाजा?

लोकसभा चुनावों से पहले प्रवर्तन निदेशालय ने मनी लॉण्ड्रिंग से जुड़े मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को गिरफ्तार कर लिया था. हेमंत की गिरफ्तारी से ठीक पहले हेमंत ने राजभवन पहुंचकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. हेमंत की गिरफ्तारी के बाद न सिर्फ झारखंड की सत्ता का चेहरा बदला, बल्कि बदल गई थी आदिवासी बाहुल्य राज्य की सियासी हवा भी. इसे पांच पॉइंट में समझा जा सकता है.

1- कारगर रहा आदिवासी अस्मिता का दांव

आदिवासी समाज जेएमएम का कोर वोटबैंक है. हेमंत की गिरफ्तारी को जेएमएम ने आदिवासी अस्मिता से जोड़ दिया. जेएमएम के इस दांव से आदिवासी वोटबैंक पर हेमंत और उनकी पार्टी की पकड़ और भी मजबूत हुई. लोकसभा चुनाव में आदिवासी बाहुल्य इलाकों में जेएमएम और इंडिया ब्लॉक का प्रदर्शन अच्छा रहा था. विधानसभा चुनाव के रुझानों में आदिवासी सीटों पर जेएमएम की लीड इसी तरफ संकेत मानी जा रही है. हेमंत सोरेन ने आदिवासी पॉलिटिक्स पर अपनी पकड़ फिर से साबित की है.

2- जेल जाने से जीरो हुई एंटी इनकम्बेंसी

हेमंत सोरेन की अगुवाई वाली सरकार को गिरफ्तारी की वजह से बीच में कुछ महीनों का ब्रेक मिल गया. हेमंत की गिरफ्तारी के बाद बीच में कुछ महीनों तक चंपाई सोरेन सीएम रहे और जेल से बाहर आने के बाद चुनाव से कुछ महीने पहले ही सीएम सोरेन ने सरकार की बागडोर फिर से अपने हाथ में ली थी. बीच में मिले ब्रेक का नतीजा कहें या जेल जाने की वजह से उपजी सहानुभूति का, हेमंत सरकार के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर जीरो हो गया और उसकी जगह सहानुभूति ने ले ली.

3- चंपाई-सीता के दल-बदल से भी मिला लाभ

हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन ने लोकसभा चुनाव से पहले ही बीजेपी का दामन थाम लिया था. परिवार में बगावत के बाद जेएमएम को दूसरा बड़ा झटका तब लगा जब सीएम पद से हटाए जाने से खफा चंपाई सोरेन ने भी धनुष-बाण छोड़ कमल का फूल चुन लिया. पहले हेमंत की गिरफ्तारी और फिर ये दो झटके, जेएमएम एक आदिवासी सीएम का उत्पीड़न करने, परिवार तोड़ने और येन-केन प्रकारेण सत्ता पर काबिज होने के लिए विपक्ष पर हर हथकंडा अपनाने का आरोप लगा हमलावर हो गई. ताजा रुझान अगर नतीजों में बदलते हैं तो यह इस बात पर मुहर की तरह है कि सत्ताधारी दल विपक्ष के खिलाफ नैरेटिव सेट करने में सफल रहा.

4- मजबूत हुआ हेमंत का कद

ईडी के एक्शन से लेकर चंपाई सोरेन के दल-बदल तक, झारखंड के इन घटनाक्रमों ने हेमंत सोरेन का कद मजबूत करने का ही काम किया है. ईडी के एक्शन और भाभी की बगावत के बाद जेएमएम हेमंत की इमेज एक ऐसे नेता के रूप में गढ़ने में सफल रही जो किसी भी दबाव के आगे नहीं झुकता. चंपाई की बगावत के समय उनके साथ कोल्हान रीजन के कई विधायकों के भी जेएमएम छोड़ने की चर्चा थी. हेमंत ने खुद कमान संभाली और नतीजा ये हुआ कि चंपाई ने जब बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की, उनके साथ बेटे बाबूलाल सोरेन ही रह गए. इसने हेमंत की इमेज ट्रबल शूटर के रूप में भी गढ़ी.

5- कल्पना के आने से मिला बूस्टर

हेमंत के जेल जाने से पहले तक उनकी पत्नी कल्पना सोरेन की इमेज एक कुशल गृहिणी की थी. सियासत से दूर रहने वाली कल्पना पति के जेल जाने के बाद सियासत में एक्टिव हुईं और गांडेय सीट से उपचुनाव जीतकर पहली बार विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुईं. कल्पना के सियासत में आने से भी हेमंत को बूस्टर मिला. कल्पना न सिर्फ चुनावी रैलियों के मामले में पति हेमंत के साथ कदम से कदम मिलाकर चलती दिखीं, बल्कि बीजेपी का साइलेंट वोटर मानी जाने वाली महिला मतदाताओं को जेएमएम के पक्ष में लामबंद करने में सफल रहीं.

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