उत्तर प्रदेश के जालौन जिले में 43 साल पुराने एक हत्या के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने पत्नी की हत्या के दोषी पति अवधेश कुमार और उसके साथी माता प्रसाद को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। यह मामला 6 अगस्त 1982 का है, जब अभियुक्त ने अपनी पत्नी कुसुमा देवी की हत्या कर दी थी। निचली अदालत ने आरोपियों को 1984 में बरी कर दिया था, लेकिन सरकार ने इस फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी। अब हाईकोर्ट ने लोअर कोर्ट का फैसला पलटते हुए दोनों को दोषी ठहराया है।
हत्या की वजह और गवाहों की गवाही
अभियोजन पक्ष के अनुसार, पीड़िता की हत्या उसके पति के अवैध संबंधों के कारण की गई। आरोप था कि अवधेश कुमार का अपने छोटे भाई की पत्नी के साथ संबंध था, जिसकी वजह से उसने पत्नी को रास्ते से हटाने की साजिश रची। अदालत में दो गवाहों ने गवाही दी कि पीड़िता को “बुरी आत्मा निकालने” के बहाने पकड़कर उसका गला दबा दिया गया था। हत्या के बाद शव को आनन-फानन में जला दिया गया, ताकि पुलिस और रिश्तेदारों को इसकी भनक न लगे।
अंधविश्वास पर कड़ा रुख
जस्टिस राजीव गुप्ता और जस्टिस हरवीर सिंह की बेंच ने कहा कि यह घटना अंधविश्वास और समाज की दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई को उजागर करती है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि ऐसी कुप्रथाएं आज भी गांवों और दूरदराज के इलाकों में मौजूद हैं, जिन पर रोक लगाने के लिए समाज को एकजुट होकर निंदा करनी चाहिए। अदालत ने कहा कि हत्या के तुरंत बाद शव का गुपचुप जलाया जाना स्पष्ट करता है कि दोषियों ने अपने अपराध को छिपाने की कोशिश की।
लोअर कोर्ट का आदेश गलत
हाईकोर्ट ने माना कि निचली अदालत ने 1984 में सबूतों को दरकिनार कर दोषियों को गलत तरीके से बरी कर दिया था। सरकार की अपील को स्वीकार करते हुए अदालत ने दोषियों को दो हफ्ते के भीतर सरेंडर करने का आदेश दिया। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में कड़ी सजा ही समाज को संदेश दे सकती है और अंधविश्वास जैसी बुराइयों पर अंकुश लगा सकती है।