गंगोत्री जाते समय हर्षिल से करीब 6-7 किलोमीटर दूर मौजूद धराली गांव. यहां से गंगोत्री का रास्ता लगभग 15-18 किलोमीटर बचता है. जिनलोगों को हर्षिल में रुकने की जगह नहीं मिलती, वो धराली में रुकते हैं. इसके बाद गंगोत्री तक कोई कस्बा नहीं है. न ही होटल. धराली छोटा से कस्बा है.
सैलानियों के लिए गेस्ट हाउस. रेस्टोरेंट. छोटे-मोटे ढाबे और प्रसिद्ध कल्पकेदार मंदिर. इस मंदिर को पांडवों की यात्रा से जोड़ा जाता है. एकदम भागीरथी नदी के बगल में. इस इलाके सेब फेमस हैं. गंगोत्री तक जाने के दौरान यहां करीब 5-6 ग्लेशियर पड़ते हैं. जिन्हें काटकर सड़क पर रास्ता बनाया जाता है.
हिमालयी क्षेत्रों में इस साल 2025 के मॉनसून ने एक बार फिर तबाही मचा दी है. ‘हिमालयी सुनामी’ जैसे नाम से मशहूर ये घटनाएं, यानी बादल फटने और बाढ़, हर साल पहाड़ी इलाकों में कहर बरपाती हैं. हाल ही में उत्तराखंड के धराली गांव में बादल फटने की घटना ने सबका ध्यान खींचा है. नाला उफान पर आ गया है. पहाड़ी से नीचे की ओर तेजी से पानी बहता दिखाई दे रहा है.

जिला आपदा प्रबंधन ने इस हादसे की पुष्टि की है, लेकिन अभी तक जान-माल के नुकसान की पक्की जानकारी नहीं मिली है. यह गांव गंगोत्री धाम और गंगा जी के शीतकालीन प्रवास मुखवा के पास है, जो इस घटना को और गंभीर बनाता है. आइए, समझते हैं कि इस मॉनसून में हिमालयी राज्यों में बादल फटने की कितनी घटनाएं हुईं. इसका असर क्या रहा.
बादल फटने की घटना क्या होती है?
बादल फटना एक ऐसी प्राकृतिक घटना है, जिसमें एक छोटे से इलाके में एक घंटे में 10 सेंटीमीटर (100 मिलीमीटर) से ज्यादा बारिश हो जाती है. हिमालय जैसे पहाड़ी इलाकों में यह तब होता है जब गर्म हवा और नमी भरे बादल पहाड़ों से टकराते हैं. अचानक भारी बारिश शुरू हो जाती है. इससे नाले उफान पर आते हैं. बाढ़ और भूस्खलन की स्थिति बनती है, जिसे लोग हिमालयी सुनामी कहते हैं. यह घटना इतनी तेज होती है कि पहले से भविष्यवाणी करना मुश्किल है.
2025 के मानसून सीजन (जून से अब तक) में हिमालयी राज्यों- हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, और अन्य पहाड़ी इलाकों में कई बादल फटने की घटनाएं हुई हैं. अभी तक की जानकारी के आधार पर…
हिमाचल प्रदेश: सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य रहा है. जून 20 से जुलाई 6 के बीच 19 बादल फटने की घटनाएं और 23 बाढ़ की घटनाएं दर्ज की गईं. मंडी जिला सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ, जहां 1 जुलाई को 1,900% ज्यादा बारिश हुई, जिससे 10 लोगों की मौत और 34 लापता हुए.
उत्तराखंड: धराली गांव की ताजा घटना सहित कई जगहों पर बादल फटने की सूचना है. जुलाई में चमोली और पिथौरागढ़ में भी ऐसी घटनाएं हुईं, जिसमें 10 से ज्यादा मौतें हुईं.
जम्मू-कश्मीर: जून और जुलाई में किश्तवार और राजौरी में बादल फटने से बाढ़ आई, लेकिन सटीक संख्या कम उपलब्ध है.
कुल अनुमान: अब तक 30 से 40 बादल फटने की घटनाएं हिमालयी राज्यों में दर्ज की गई हैं, लेकिन सटीक आंकड़ा हर दिन बदल रहा है क्योंकि कई घटनाएं दूरदराज के इलाकों में होती हैं, जहां जानकारी देर से मिलती है.
इन घटनाओं से अब तक 100 से ज्यादा लोगों की जान गई है. सैकड़ों लापता हैं. मकान, सड़कें और बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचा है.
धराली गांव में हादसा: क्या हुआ?
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में धराली गांव के पास हाल ही में बादल फटने की घटना हुई. यह गांव गंगोत्री धाम से कुछ दूरी पर और गंगा जी के शीतकालीन प्रवास मुखवा के नजदीक है. इसके कारण…
- नाला तेजी से उफान पर आ गया और पहाड़ी से नीचे की ओर पानी का जोरदार प्रवाह देखा गया.
- जिला आपदा प्रबंधन ने हादसे की पुष्टि की, लेकिन अभी तक कोई पक्की जानकारी नहीं कि किसी की जान गई या संपत्ति को नुकसान हुआ.
- स्थानीय लोग और प्रशासन अलर्ट पर हैं. बचाव कार्य शुरू हो सकता है अगर स्थिति खराब होती है.
यह घटना इसलिए चिंता की बात है क्योंकि गंगोत्री धाम एक धार्मिक स्थल है, जहां श्रद्धालु आते हैं. शीतकालीन प्रवास के दौरान भी इलाका संवेदनशील रहता है.
बादल फटने के पीछे क्या कारण हैं?
वैज्ञानिकों का कहना है कि बादल फटने की घटनाएं बढ़ रही हैं. इसके कई कारण हैं…
- जलवायु परिवर्तन: ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हवा में नमी बढ़ रही है, जो भारी बारिश को जन्म देती है.
- पहाड़ी इलाकों का ढांचा: हिमालय की ऊंची चट्टानें और ढलान पानी को तेजी से नीचे लाते हैं, जिससे बाढ़ आती है.
- अनियोजित विकास: सड़कें, बांध और निर्माण कार्य पहाड़ों को कमजोर कर रहे हैं, जिससे भूस्खलन और बाढ़ का खतरा बढ़ता है.
- मानसून का असर: दक्षिण-पश्चिम मानसून की हवाएं जब हिमालय से टकराती हैं, तो अचानक बारिश होती है.
इसका असर और क्या हो सकता है?
- जान-माल का नुकसान: मकान बह जाते हैं. सड़कें टूटती हैं. लोग फंस जाते हैं. हिमाचल में 78 से ज्यादा मौतें और मंडी में 34 लापता होने की खबर है.
- धार्मिक स्थल पर खतरा: गंगोत्री जैसे धार्मिक स्थल प्रभावित होने से तीर्थयात्रियों की सुरक्षा चिंता का विषय है.
- लंबे समय का असर: फसलें बर्बाद होती हैं. बुनियादी सुविधाएं जैसे बिजली और पानी प्रभावित होते हैं.