केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की इस टिप्पणी को लेकर कड़ी आलोचना की है कि उत्तर प्रदेश और बिहार कभी भी “हिंदी हार्टलैंड” नहीं थे और हिंदी ने कई क्षेत्रीय भाषाओं को निगल लिया. सोशल मीडिया पर मंत्री वैष्णव ने सीएम स्टालिन पर समाज को बांटने का प्रयास करने का आरोप लगाया और इस मुद्दे पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के रुख पर सवाल उठाया, क्योंकि वह हिंदी भाषी निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं.
उन्होंने एक्स पर स्टालिन के एक पोस्ट को री-पोस्ट करते हुए लिखा, “समाज को बांटने के ऐसे थोथे प्रयासों से खराब शासन कभी नहीं छिप पाएगा. यह जानना दिलचस्प होगा कि विपक्ष के नेता राहुल गांधी इस विषय पर क्या कहते हैं. क्या हिंदी भाषी सीट के सांसद के तौर पर वे इस बात से सहमत हैं?”
Poor governance will never be hidden by such shallow attempts to divide society.
It will be interesting to know what the Leader of the Opposition, @RahulGandhi Ji, has to say on this subject. Does he, as MP of a Hindi-speaking seat, agree? https://t.co/Oj2tQseTno
— Ashwini Vaishnaw (@AshwiniVaishnaw) February 27, 2025
दरअसल, एमके स्टालिन ने एक एक्स पोस्ट शेयर की. इसमें उन्होंने आरोप लगाया कि हिंदी ने कई क्षेत्रीय भाषाओं को निगल लिया है. इसके चलते कई भाषाएं अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं. उन्होंने साथ ही कहा कि यूपी और बिहार कभी भी सिर्फ हिंदी प्रदेश नहीं रहे हैं. उनके इसी पोस्ट पर केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने पलटवार किया है.
स्टालिन ने अपने पोस्ट में लिखा था, “अन्य राज्यों से आये मेरे प्रिय बहनों और भाइयों, कभी सोचा है कि हिंदी ने कितनी भारतीय भाषाओं को निगल लिया है? भोजपुरी, मैथिली, अवधी, ब्रज, बुंदेली, गढ़वाली, कुमाऊंनी, मगही, मारवाड़ी, मालवी, छत्तीसगढ़ी, संथाली, अंगिका, हो, खड़िया, खोरठा, कुरमाली, कुरुख, मुंडारी और कई अन्य भाषाएं अब अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं. एक अखंड हिंदी पहचान की कोशिश ही प्राचीन मातृभाषाओं को खत्म कर रही है.”
तमिलनाडु के सीएम ने आगे लिखा, “उत्तर प्रदेश और बिहार कभी भी सिर्फ “हिंदी प्रदेश” नहीं रहे. उनकी वास्तविक भाषाएँ अब अतीत के अवशेष हैं. तमिलनाडु इसका विरोध करता है, क्योंकि हम जानते हैं कि इसका अंत कहां होगा. तमिल जागृत; तमिल राष्ट्र की संस्कृति बच गयी! कुछ भाषाओं ने हिंदी को रास्ता दिया; वे बिना किसी निशान के गायब हो गए.”
स्टालिन ने पार्टी कार्यकर्ताओं को भी लिखा पत्र
इससे पहले उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को एक पत्र लिखा और कहा कि हिंदी थोपे जाने का विरोध किया जाएगा. हिंदी मुखौटा है, संस्कृत छिपा हुआ चेहरा है. स्टालिन ने दावा किया कि बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में बोली जाने वाली कई उत्तर भारतीय भाषाएं जैसे मैथिली, ब्रजभाषा, बुंदेलखंडी और अवधी आधिपत्य वाली हिंदी द्वारा नष्ट कर दी गई हैं. आधिपत्य वाली हिंदी-संस्कृत भाषाओं के आक्रमण से 25 से अधिक उत्तर भारतीय मूल भाषाएं बर्बाद हो गई हैं. सदियों पुराने द्रविड़ आंदोलन ने जागरूकता पैदा करने और विभिन्न आंदोलनों के कारण तमिल और उसकी संस्कृति की रक्षा की.
‘केंद्र हिंदी और संस्कृत थोपने की कोशिश कर रहा’
उन्होंने कहा कि तमिलनाडु राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विरोध कर रहा है क्योंकि केंद्र शिक्षा नीति के माध्यम से हिंदी और संस्कृत को थोपने की कोशिश कर रहा है. भाजपा के इस तर्क का विरोध करते हुए कि एनईपी के अनुसार तीसरी भाषा विदेशी भी हो सकती है, स्टालिन ने दावा किया कि 3-भाषा नीति अनुसूची के अनुसार कई राज्यों में केवल संस्कृत को बढ़ावा दिया जा रहा है.
उन्होंने दावा किया कि भाजपा शासित राजस्थान उर्दू प्रशिक्षकों के बजाय संस्कृत शिक्षकों की नियुक्ति कर रहा है. उन्होंने दावा करते हुए कहा, “यदि तमिलनाडु त्रिभाषी नीति को स्वीकार करता है तो मातृभाषा को नजरअंदाज कर दिया जाएगा और भविष्य में संस्कृतीकरण होगा. एनईपी प्रावधानों में कहा गया है कि संस्कृत के अलावा अन्य भारतीय भाषाओं को स्कूलों में पढ़ाया जाएगा और तमिल जैसी अन्य भाषाओं को ऑनलाइन पढ़ाया जा सकता है.”