इंदौर। जीएसटी ट्रिब्यूनल में राजभाषा हिंदी को अमान्य कर दिया गया है। आदेश जारी किया गया है कि ट्रिब्यूनल में आने वाले प्रकरणों में दस्तावेज सिर्फ अंग्रेजी में ही स्वीकार होंगे। और तो और किसी प्रकरण को दाखिल करने और पैरवी करने के मामलों में संबंधित दस्तावेजों को भी अंग्रेजी में अनुवाद कर लगाना होगा।
जीएसटी ट्रिब्यूनल के इस आदेश से असंतोष फूट पड़ा है। टैक्स पेशेवर साफ कह रहे हैं कि टैक्स विवादों में हिंदी और क्षेत्रीय भाषा को बाहर कर न्याय महंगा करने और आम व्यापारी को न्यायिक प्रक्रिया से दूर करने की साजिश हो रही है।
World War 3 will be for language, not land! pic.twitter.com/0LYWoI3K0r
— India 2047 (@India2047in) July 4, 2025
आयकर की तरह जीएसटी के कर विवादों के निराकरण के लिए जीएसटी ट्रिब्यूनल की व्यवस्था की गई है। 2017 में जीएसटी लागू हुआ लेकिन अब तक ट्रिब्यूनल नहीं बने, सिर्फ नोटिफिकेशन जारी हुआ। स्थापना के नोटिफिकेशन के बाद अब सरकार ने नया नोटिफिकेशन जारी कर दिया कि ट्रिब्यूनल में जाने वाले मामलों में दस्तावेज सिर्फ अंग्रेजी में ही पेश किए जा सकेंगे।
यदि कोई दस्तावेज अन्य भाषा में हुआ तो उसका अंग्रेजी अनुवाद कर लगाना होगा। अहिल्या चैंबर ऑफ कामर्स के अध्यक्ष रमेश खंडेलवाल के अनुसार 20 मई को दिल्ली में होने वाली नेशनल ट्रेडर्स वेलफेयर बोर्ड की बैठक में इस मुद्दे को लाकर विरोध जताया जाएगा।
तीन भाषाओं को हो मान्यता
2017 में जब जीएसटी प्रणाली लागू हुई थी तो उस समय सरकार ने इस प्रणाली को सुलभ बनाने के लिए तमाम घोषणाएं की थीं। कर सलाहकार आरएस गोयल के अनुसार ऐलान हुआ था कि जीएसटी पोर्टल 18 भाषाओं में काम करेगा।
वो तो हुआ नहीं, अब ट्रिब्यूनल में तो हिंदी को भी बिसरा दिया गया है। चार्टर्ड अकाउंटेंट एसएन गोयल कहते हैं हिंदी के दस्तावेजों को तो आयकर अपीलेट ट्रिब्यूनल में भी मान्य किया जाता है। जीएसटी में भी कम से कम तीन भाषाओं को तो मान्यता होना चाहिए।