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‘बिना रस्मों के हिंदू विवाह मान्य नहीं, ये नाचने गाने और खाने पीने का आयोजन नहीं, ना व्यापारिक लेन देन है’: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू विवाह से संबंधित एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह एक संस्कार है जिसे भारतीय समाज में महान मूल्य की संस्था के रूप में दर्जा हासिल है. कोर्ट ने साफ कहा कि, हिंदू विवाह सिर्फ नाचने गाने का आयोजन नहीं है. हिंदू विवाह को वैद्य बनाने के लिए उचित संस्कारों, रीतियों का निष्ठापूर्वक पालन किया जाना चाहिए. जस्टिस बीवी नागरत्ना और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा है कि, ‘कोर्ट युवा पुरुषों, महिलाओं से आग्रह करता है कि वे विवाह जैसे पवित्र बंधन में बंधने से पहले इसके बारे में गहराई से हिंदू विवाह की पवित्रता को समझना चाहिए. उन्हें समझना होगा कि भारतीय समाज में हिंदू विवाह की मान्यता कितना पवित्र है.’

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पीठ ने 19 अप्रैल को पारित आदेश में कहा है कि, शादी नाचने, गाने और शराब पीने और खाने का आयोजन नहीं है. विवाह अनुचित दबाव डालकर दहेज और गिफ्ट की मांग करने और आदान-प्रदान का अवसर नहीं है. सुप्रीम कोर्ट की बेंच का कहना है कि हिंदू विवाह को संपन्न करने के लिए उसके महत्वपूर्ण शर्तों को सख्ती और धार्मिक रूप से पालन किया जाना चाहिए. पीठ ने कहा, “हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 7 के तहत पारंपरिक संस्कारों और समारोहों का ईमानदारी से आचरण और भागीदारी सभी विवाहित जोड़ों और समारोह की अध्यक्षता करने वाले पुजारियों द्वारा सुनिश्चित की जानी चाहिए.

कोर्ट का साफ कहना है कि, विवाह कोई व्यावसायिक लेन-देन नहीं है. यह एक महत्वपूर्ण, गंभीर मूलभूत कार्यक्रम है. कोर्ट का कहना है कि, भारतीय समाज में विवाह का एक अलग ही पवित्र दर्जा प्राप्त है. इसमें एक पुरुष और एक महिला के बीच पति-पत्नी का पवित्र संबंध की शुरूआत होती है. यही पवित्र संबंध आगे चलकर एक विकसित परिवार का दर्जा प्राप्त करते हैं. यह भारतीय समाज की एक बुनियादी इकाई है. बेंच का कहना था कि हिंदू विवाह संतान प्राप्ति की मार्ग को आसान बनाता है और इससे परिवार मजबूत आती है और विभिन्न समुदायों के भीतर आपसी भाईचारे की भावना को प्रगाढ़ करता है.

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉज मसीह की बेंच ने कहा कि, पारंपरिक संस्कारों, रीतियों के बिना की गई शादी को हिंदू विवाह नहीं माना जाएगा. इसे हम ऐसे समझे कि, अधिनियम के तहत वैध हिंदू विवाह के लिए उनके रीतियों का पालन करना होगा. अगर ऐसा नहीं है तो वह अधिनियम की धारा 7 के मुताबिक हिंदू विवाह नहीं माना जाएगा. पीठ ने कहा कि, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 8 के तहत शादी का रजिस्ट्रेशन मैरेज के सबूत की सुविधा देता है लेकिन यह तब तक वैद्य नहीं माना जाएगा जब तक कि विवाह अधिनियम की धारा 7 के मुताबिक संपन्न नहीं हुआ हो. कोर्ट का कहना है कि, अगर हिंदू विवाह रीति-रिवाज के मुताबिक नहीं किया गया है, तो इसका पंजीकरण नहीं हो सकता है.

विवाह अगर हिंदू रीति रिवाजों से नहीं हुआ है तो पंजीकरण अधिकारी अधिनियम की धारा 8 के प्रावधानों के तहत ऐसी शादी को पंजीकृत नहीं कर सकता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि, राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार विवाह का कोई भी पंजीकरण हिंदू विवाह का प्रमाण नहीं होगा. पीठ ने कहा कि हाल के वर्षों में, हमने ऐसे कई उदाहरण देखे हैं जहां ‘व्यावहारिक उद्देश्यों’ के लिए, एक पुरुष और एक महिला भविष्य की तारीख में अपनी शादी को संपन्न करने के इरादे से अधिनियम की धारा 8 के तहत अपनी शादी को पंजीकृत करना चाहते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह एक संस्कार है जिसे भारतीय समाज में महान मूल्य की संस्था के रूप में दर्जा दिया जाना चाहिए और वैध हिंदू विवाह से पैदा हुए बच्चे वैध हैं और इसलिए, उन्हें कानून में पूर्ण अधिकार हैं.

कोर्ट ने एक महिला की ओर से उसके खिलाफ तलाक की कार्यवाही को स्थानांतरित करने की मांग वाली याचिका पर फैसला सुनाते हुए ये टिप्पणियां की. मामले की सुनवाई के दौरान, पति और पत्नी ने संयुक्त आवेदन कर यह घोषणा की कि उनकी शादी वैध नहीं थी. उन्होंने कहा कि उनके द्वारा कोई विवाह नहीं किया गया क्योंकि कोई रीति-रिवाज, संस्कार और अनुष्ठान नहीं किए गए. हालांकि, अन्य कारणों से उन्हें वैदिक जनकल्याण समिति (पंजीकृत) से विवाह प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए बाध्य होना पड़ा था. उस प्रमाण पत्र के आधार पर उन्होंने उत्तर प्रदेश पंजीकरण नियम, 2017 के तहत पंजीकरण और एक ‘प्रमाण पत्र’ की मांग की. मैरिज सर्टिफिकेट रजिस्ट्रार द्वारा जारी किया गया था. तथ्यों के बाद पीठ ने घोषित किया कि यह वैध विवाह नहीं था. सुप्रीम कोर्ट ने दर्ज किए मुकदमों को भी रद्द कर दिया.

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