अयोध्या में ऐतिहासिक आयोजन: 1800 जैन प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा का महोत्सव प्रारंभ

अयोध्या : श्री दिगंबर जैन मंदिर की शीर्ष पीठ रायगंज स्थित भगवान ऋषभदेव के मंदिर में पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का शुभारंभ रविवार से हुआ. इसके अंतर्गत 24 तीर्थंकरों की 720 प्रतिमाओं, भगवान ऋषभदेव के सभी 101 पुत्रों की प्रतिमाओं समेत 1800 प्रतिमाओं का जीवंत करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई.

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पहले दिन गर्भ कल्याणक का विधान संपन्न किया गया. पंच कल्याणक संस्कार के फलस्वरूप पाषाण की प्रतिमाएं श्रद्धालुओं के लिए चिन्मय-चैतन्य हो उठेंगी। इन प्रतिमाओं के लिए जैन मंदिर के विशाल प्रांगण में तीन भव्य मंडप बनाए गए हैं. एक साथ 1800 प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा के दुर्लभ अवसर पर मंदिर के विशाल प्रांगण में पग-पग पर उत्साह दिखाई दे रहा है और देश के विभिन्न हिस्सों से आए हजारों श्रद्धालु पूरे भाव से उत्सव में शामिल हो रहे हैं. उत्सव में सैकड़ों दंपती पौराणिक पटकथा के अनुसार इंद्र-इंद्राणी का स्वरूप ग्रहण कर भगवान ऋषभदेव के गर्भधारण की बेला में उत्सव मनाने के लिए एकत्र हुए हैं.

 

रविवार को उत्सव सुबह छह बजे भगवान ऋषभदेव के उत्सव विग्रह के पंचामृत अभिषेक से प्रारंभ होता है. अभिषेक के बाद सैकड़ों महिलाएं सिर पर मंगल कलश के साथ उस मंडप में प्रवेश करती हैं, जिसे स्वर्ग की तरह सज्जित किया गया होता है. कलश स्थापना और अखंड दीप के प्रज्वलन से यह संकल्प और घनीभूत होता है. दूसरी बेला में विभिन्न धार्मिक उपक्रमों एवं कर्मकांडों के माध्यम से भगवान का गर्भ कल्याणक संपन्न हुआ और दिगंबर जैन मंदिर तीर्थ क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष रवींद्रकीर्ति स्वामी ने कहा कि गर्भ कल्याणक जैसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान में सहभागी बनने का अवसर भगवान ऋषभदेव को आत्मस्थ करने का अवसर है. आज नहीं तो कल हमारे सत्कर्म उन ऊंचाइयों तक पहुंच सकते हैं, जहां से हम भी भगवान ऋषभदेव की तरह मोक्षगामी हो सकें, किंतु अभी हम उन्हें आत्मस्थ कर उनके मूल्यों और आदर्शों के साथ जीवन जीने का गौरव तो हासिल ही कर सकते हैं.

अभिषेक के बाद जैन धर्म की सर्वोच्च साध्वी गणिनी प्रमुख ज्ञानमती माता ने उद्बोधन में बताया कि भगवान तो अपने अपूर्व, अद्भुत, अलौकिक और अनंत तपश्चर्या से शाश्वत अभिषिक्त हैं. वस्तुत: यह अभिषेक उनके माध्यम से उनके जीवन, संस्कार और देशना के प्रसाद स्वरूप संपूर्ण मानवता का अभिषेक है. हम संकल्पित हों उनके बताए रास्ते पर बढ़ने के लिए स्वयं के मस्तिष्क-प्रज्ञा और विवेक को इसके लिए तैयार कर सकें. उन्होंने इस अवसर को विश्व शांति और अहिंसा की प्रतिष्ठा का भी बताया. 1800 प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा का महापर्व विश्व में अहिंसा और शांति की स्थापना के संकल्प का है.

 

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