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प्राकृतिक सौंदर्य के साथ दिखेगा इतिहास, जबलपुर में रानी के किले में सेलिब्रेट करिए नया साल

मध्य प्रदेश के जबलपुर में नए वर्ष में परिवार के साथ पिकनिक पर जाने का मन है, तो रानी दुर्गावती का मदन महल बेहतर स्थान हो सकता है. यहां आकर न केवल आप प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद ले सकते हैं, बल्कि बच्चों को ऐतिहासिक जानकारी का अवसर भी मिलेगा.

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रानी दुर्गावती, भारतीय इतिहास की वीरांगना, का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को चंदेल राजवंश के कालिंजर किले (बांदा, उत्तर प्रदेश) में हुआ. दुर्गाष्टमी के दिन जन्म लेने के कारण उनका नाम “दुर्गावती” रखा गया. बचपन से ही रानी साहसी और प्रतिभावान थीं. तीरंदाजी, तलवारबाजी, घुड़सवारी और शिकार उनका प्रिय शौक था. उनके पिता, राजा कीरत राय, उनकी हर गतिविधि पर गर्व करते थे.

विवाह और शासन :

रानी दुर्गावती ने 1542 में गढ़ा मंडला के शासक दलपत शाह से विवाह किया. यह विवाह गोंड और चंदेल राज्यों के बीच एकता का प्रतीक बना. 1545 में उन्होंने वीर नारायण को जन्म दिया. 1550 में पति दलपत शाह की मृत्यु के बाद, उन्होंने अपने 5 वर्षीय पुत्र को गद्दी पर बैठाया और स्वयं शासन का कार्यभार संभाला. अकबर के सूबेदार असफ़ खान की नजर रानी दुर्गावती के राज्य पर थी. 1562 में रानी ने मुगलों की पहली चुनौती का डटकर सामना किया और नराई नाले के युद्ध में जीत हासिल की. 1564 में असफ़ खान ने फिर हमला किया. रानी ने अपनी सेना का नेतृत्व करते हुए दुश्मनों को तीन बार पीछे हटने पर मजबूर किया. इस युद्ध में उनका बेटा वीर नारायण घायल हो गया, लेकिन रानी का साहस अडिग रहा.

वीरांगना का बलिदान :

24 जून 1564 को अंतिम युद्ध के दौरान, रानी दुर्गावती बुरी तरह घायल हो गईं. अपने सैनिकों से हार स्वीकार न करते हुए, उन्होंने आत्मबलिदान का निर्णय लिया. रानी ने कहा, “दुश्मनों के हाथों मरने से बेहतर है कि मैं सम्मान के साथ अपनी जान दूं.” और अपनी तलवार से अपना जीवन बलिदान कर दिया.

 

समाधि स्थल और विरासत :

रानी दुर्गावती का अंतिम संस्कार मंडला और जबलपुर के बीच स्थित बरेला के नरई समाधि गांव में हुआ. आज यह स्थान उनके बलिदान और साहस की याद दिलाता है. साथ ही रानी दुर्गावती का रणनीतिक केंद्र रहा मदन महल किला आज भी उनकी वीरता की गाथा सुनाता है.

 

मदन महल किला और रानी दुर्गावती की समाधि पर परिवार के साथ समय बिताना न केवल एक पिकनिक का अनुभव है, बल्कि यह इतिहास के अद्भुत अध्यायों से रूबरू होने का अवसर भी है. तो, इस नए वर्ष में इतिहास और प्रकृति के इस अद्भुत संगम का हिस्सा बनें और रानी दुर्गावती की वीरता को सलाम करें.

 

प्रारंभिक जीवन

जन्म: 5 अक्टूबर 1524, दुर्गाष्टमी के दिन, चंदेल वंश के कालिंजर किले (बांदा, उत्तर प्रदेश).

शिक्षा और शौक: बचपन से ही तीरंदाजी, तलवारबाजी, शिकार और राज्य प्रबंधन में रुचि.

अपने पिता राजा कीरत राय से शिकार और शासन कला की शिक्षा प्राप्त की.

विवाह: गढ़ा मंडला के शासक दलपत शाह से 1542 में

पुत्र: 1545 में वीर नारायण का जन्म.

शासन: 1550 में पति की मृत्यु के बाद रानी ने अपने 5 वर्षीय पुत्र को गद्दी पर बैठाकर राज्य का नेतृत्व किया.

कैसे पहुंचे :

सड़क मार्ग: जबलपुर शहर से बस या टैक्सी.

रेल मार्ग: जबलपुर रेलवे स्टेशन से नजदीकी दूरी.

हवाई मार्ग: जबलपुर का निकटतम हवाई अड्डा.

रानी दुर्गावती का जीवन साहस, पराक्रम और बलिदान का प्रतीक है. उनका जीवन न केवल एक योद्धा रानी के रूप में प्रेरणा देता है, बल्कि इतिहास के उन गौरवशाली पन्नों में शामिल है, जो हमारी संस्कृति और धरोहर को अमूल्य बनाते हैं. रानी दुर्गावती की वीरता को महसूस करने के लिए मदन महल किला और उनकी समाधि स्थल पर जाएं. यह स्थान न केवल ऐतिहासिक महत्व रखता है, बल्कि परिवार और बच्चों के लिए भी ज्ञानवर्धक है.

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