अन्नू कपूर की फिल्म ‘हमारे बारह’ थिएटर में रिलीज हो चुकी है. इस फिल्म को देखने का वैसे तो कोई इरादा नहीं था. लेकिन इससे जुड़ी कंट्रोवर्सी के बाद सोचा, क्यों न इस फिल्म को देखा जाए. फिर क्या था मुंबई की बारिश में हम पहुंच गए इस फिल्म की स्क्रीनिंग पर. लगभग 3 घंटे के लंबे इंतजार के बाद ये फिल्म शुरू हुई. क्योंकि सेंसर की तरफ से फिल्म के रिलीज के लिए जरूरी सर्टिफिकेट ही जारी नहीं किया गया था. उम्मीद थी कि फिल्म बोरिंग होगी. फिल्म में हिंदी-मुस्लिम को लेकर भद्दे डायलॉग होंगे, और इसे देखना एक टॉर्चर होगा. लेकिन ऐसा बिलकुल भी नहीं था. फिल्म एंगेजिंग है, जी हां कुछ चीजें जरूर खटकती है. लेकिन ये फिल्म बुरी नहीं है. इसे एक मौका दिया जा सकता है.
कहानी
11 बच्चों के बाद भी लखनऊ में रहने वाले नवाब साहब (अन्नू कपूर) को उम्मीद है कि अगर खुदा ने चाहा, तो जल्द उन्हें 12वां बच्चा भी हो जाएगा. वो किसी सरकारी नियम को नहीं मानते. उनका मानना है कि देश का विकास सरकार की जिम्मेदारी होती है, और परिवार का विकास मर्द की. वैसे तो वो अपने बच्चों को बहुत प्यार करते हैं, लेकिन न ही उन्होंने अपने बच्चों को स्कूल या कॉलेज जाने की अनुमति दी है, न ही उनकी बेटियों को अपना पसंदीदा काम करने की आजादी है. जब डॉक्टर नवाब साहब को उनकी दूसरी पत्नी की 5वीं प्रेग्नेंसी की खबर सुनाते हैं, तब उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता. उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि ये प्रेग्नेंसी उनकी पत्नी के लिए जानलेवा है, बच्चे को जन्म देने के बाद उनके बचने की कोई उम्मीद नहीं है. वो बस फैसला सुना देते हैं कि इस्लाम में अबॉर्शन करना गुनाह है. अपने पापा की इस सोच से तंग आकर, अपनी छोटी मां की जान बचाने के लिए नवाब साहब की बेटी अल्फिया कोर्ट जाने का फैसला कर लेती है. आगे क्या होगा ये जानने के लिए आपको थिएटर में जाकर ‘हमारे बारह’ देखनी होगी.
फिल्म में राइटर और निर्देशक ने ईमानदारी से ये दिखाने की कोशिश की है कि जनसंख्या नियंत्रण कानून की हमारे देश के लिए कितना जरूरी है. लेकिन ये फिल्म 20 साल पहले आती तो शायद चल भी जाती. पर अब लोग ज्यादा समझदार हो गए हैं. हमारे देश की दिन ब दिन बढ़ रही जनसंख्या किसी एक धर्म की नहीं बल्कि पूरे देश की समस्या है. और इसके लिए हम सभी जिम्मेदार हैं. किसी का धर्म अनुमति नहीं देता, तो किसी को वारिस चाहिए, बुढ़ापे का सहारा मिल जाए, इसलिए कुछ लोग अपनी पूरी जवानी बच्चे पैदा करने में खर्च कर देते हैं. ये फिल्म अगर एक धर्म तक सीमित नहीं रहती तो कुछ कमाल जरूर दिखाती. लेकिन यहां हमें सिर्फ एक ही धर्म के परिवार की कहानी बताई गई है, और इस वजह से फिल्म से नफरत की बू आती है.
अन्नू कपूर हमेशा की तरह इस फिल्म के लिए भी अपना 1000 प्रतिशत देते हुए नजर आए हैं. लेकिन वो सिर्फ अपना 100 प्रतिशत देते तो ही अच्छा था. क्योंकि कई जगह उनकी एक्टिंग जरूरत से ज्यादा लगती हैं. नवाब साहब की दूसरी बीवी के किरदार में अंकिता द्विवेदी ने जान लगा दी है. अल्फिया का किरदार निभाने वाली अदिति भटपहरी ने भी अपनी भूमिका को न्याय दिया है. पारितोष त्रिपाठी और राहुल बग्गा अपने किरदार को पूरी तरह से जस्टिफाई करते हैं. और अश्विनी कलसेकर और मनोज जोशी की एक्टिंग फिल्म को दो कदम आगे ले जाती है. रिपोर्टर की भूमिका में पार्थ समथान अच्छे हैं.