सालों से बैंकिंग सिस्टम में लोन एजेंटों का बड़ा रोल रहा है, जिनकी लोन वसूली के लिए बैंकों की ओर से हायरिंग होती है. हालांकि कई बार इन्हें लेकर विवाद खड़ा हुआ है कि एजेंट्स अनैतिक तरीके से लोन की वसूली करते हैं. वे अक्सर लोन के लिए लोगों को धमकी देने, उत्पीड़न करने और गोपनीयता की परवाह नहीं करते हुए पेरशान करते रहे हैं, जिसे लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने भी कड़ी आलोचना की है.
सर्वोच्च न्यायालय ने बैंकों की बार-बार आलोचना की है कि वे लोन वसूली का काम थर्ड पार्टी के एजेंटों को सौंप देते हैं, जो अक्सर दबाव डालने वाली रणनीति अपनाते हैं और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हैं.
मीडिया रिपोर्ट ने वित्तीय सेवा विभाग (DFS) से सूचना का अधिकार (RTI) के तहत जानकारी मांगी थी कि टैक्सपेयर्स द्वारा फंडेड पब्लिक सेक्टर्स के बैंक वसूली एजेंटों पर कितना खर्च कर रहे हैं?
सभी बैंकों को भेजे गए सवाल एक जैसे और सीधे थे. जिसमें पिछले पांच सालों में वसूली एजेंटों द्वारा किए गए सालाना खर्च, नियुक्त एजेंटों की संख्या और भुगतान नियम या पॉलिसी जैसे सवाल शामिल थे. RTI के तहत सरकारी बैंकों द्वारा कई अलग-अलग खुलासे हुए हैं, जो आपको हैरान कर सकते हैं.
बैंक ऑफ महाराष्ट्र
बैंक ऑफ महाराष्ट्र सिर्फ एक ऐसा प्रमुख बैंक है, जो रिकवरी एजेंटों पर स्पष्ट सालाना खर्च की जानकारी देता है. यह 2019-20 में 14.26 करोड़ रुपये था, जो बढ़कर 2023-24 में 31.08 करोड़ रुपये हो गया. 2020-21 में खर्च 16.94 करोड़ रुपये, 2021-22 में 21.23 करोड़ रुपये और 2022-23 में 21.38 करोड़ रुपये रहा. वहीं एजेंटों की संख्या 2022-23 में 476 से बढ़कर 2023-24 में 547 हो गई.
हालांकि इस बैंक ने ‘व्यसायिक गोपनीयता’ और ‘आंतरिक संचलन’ का हवाला देते हुए पेमेंट डिटेल, परफॉर्मेंश सब्सिडी या आंतरिक नीतियों को शेयर करने से इनकार कर दिया.
सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने रिकवरी एजेंटों पर खर्च का पांच साल की डिटेल पेश की है, जो 2019-20 में 2.42 करोड़ रुपये से बढ़कर 2023-24 में 5.87 करोड़ रुपये हो गया. अंतरिम सालों में खर्च 2020-21 में 2.38 करोड़ रुपये, 2021-22 में 3.0 करोड़ रुपये और 2022-23 में 4.05 करोड़ रुपये रहा. एजेंटों की संख्या 2019-20 में 184 से बढ़कर 2020-21 में 159, 2021-22 में 170, 2022-23 में 201 और 2023-24 में 279 हो गई.
हालांकि बैंक ने ‘व्यावसायिक विश्वास’ और संस्थागत हितों को संभावित नुकसान का हवाला देते हुए पेमेंट स्ट्रक्चर, परफॉर्मेंश सब्सिडी या आंतरिक नीतियों पर विवरण साझा करने से इनकार कर दिया.
इंडियन बैंक
इंडियन बैंक ने रिकवरी एजेंटों को दिए गए कमीशन पर कम डेटा शेयर किया. इसने 2021-22 में 33.20 करोड़ रुपये, 2022-23 में 59.40 करोड़ रुपये और 2023-24 में 68.74 करोड़ रुपये खर्च किए. 2021-22 में एजेंटों की संख्या 867, 2022-23 में 988 और 2023-24 में 934 थी.
हालांकि इसने पिछले वर्षों के आंकड़ों को रोक दिया और RTI अधिनियम की धारा 8(1)(D) और 8(1)(J) के तहत छूट का हवाला देते हुए प्रोत्साहन संरचना, प्रदर्शन वेतन या नीति दिशानिर्देशों पर जानकारी का खुलासा नहीं किया.
पंजाब नेशनल बैंक
पंजाब नेशनल बैंक (pnb) ने सबसे व्यापक और पारदर्शी जानकारी दी. जहां ज्यादा पब्लिक सेक्टर के बैंकों ने या तो जानकारी छिपाई, कानूनी छूट का हवाला दिया, या ऐसे आंकड़े संकलित करने में व्यावहारिक कठिनाइयों का दावा किया, वहीं पीएनबी ने विस्तृत, सालाना वित्तीय और परिचालन आंकड़े उपलब्ध कराए.
2019–20: 514 एजेंसियों को 37.03 करोड़ रुपये
2020–21: 602 एजेंसियों को 36.71 करोड़ रुपये
2021–22: 626 एजेंसियों को 57.95 करोड़ रुपये
2022–23: 787 एजेंसियों को 81.57 करोड़ रुपये
2023–24: 590 एजेंसियों को 49.62 करोड़ रुपये
PNB ने यह भी स्पष्ट किया कि वसूली एजेंटों को कोई परफॉर्मेंस बेस्ड सब्सिडी नहीं दिया जाता है. इसके बजाय, कमीशन का भुगतान बैंक के अप्रूवल आंतरिक दिशानिर्देशों के अनुसार ही किया जाता है. हालांकि PNB ने RTI अधिनियम की धारा 8(1)(D) का हवाला देते हुए वास्तविक आंतरिक दिशानिर्देश और संबंधित लेखा परीक्षा या नीति दस्तावेजों को रोक लिया, जिसमें कहा गया कि इनमें कमर्शियल गोपनीयता में रखी गई जानकारी शामिल है, जिसके खुलासे से बैंक को नुकसान हो सकता है.
पीएनबी को जो बात अलग बनाती है, वह यह है कि हर साल कमीशन भुगतान और एजेंसियों की संख्या के बारे में सटीक आंकड़े जारी करता है, जिससे एक अग्रणी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक में रिकवरी एजेंट परिचालन के पैमाने और लागत के बारे में दुर्लभ जानकारी मिलती है. दूसरी ओर, कुछ प्रमुख पब्लिक सेक्टर के बैंकों ने ऐसी जानकारी शेयर करने से इनकार कर दिया.
बैंक ऑफ बड़ौदा
बैंक ऑफ बड़ौदा (BOB) ने रिकवरी एजेंट के खर्च पर कोई भी समेकित जानकारी देने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि डेटा केंद्रीय रूप से नहीं रखा जाता है. बैंक ने RTI अधिनियम की धारा 7(9) का हवाला देते हुए कहा कि ऐसी जानकारी जमा करने से ‘संसाधनों का अनुचित रूप से दुरुपयोग होगा.’ इसके अलावा, उसने धारा 8(1)(D) का हवाला देते हुए इन विवरणों को ‘व्यावसायिक गोपनीयता’ के रूप में रखा और इस प्रकार, सार्वजनिक प्रकटीकरण के दायरे से बाहर कर दिया.
बैंक ऑफ इंडिया
बैंक ऑफ इंडिया ने कोई भी आंकड़े या पॉलिसी जारी करने से इनकार कर दिया, यह तर्क देते हुए कि मांगी गई जानकारी व्यापक जनहित के बिना आंतरिक मामलों से संबंधित है. बैंक ने सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले का भी हवाला दिया जिसमें तर्क दिया गया था कि इस तरह के खुलासे से प्रशासन पर अनावश्यक बोझ नहीं पड़ना चाहिए. इसलिए, उसने अधिनियम की धारा 8(1)(डी) के तहत आंकड़े रोक लिए.
केनरा बैंक
केनरा बैंक ने RTI के सवालों को ‘अस्पष्ट’ बताया और आवेदक को अपनी वेबसाइट पर सामान्य जानकारी देखने के लिए कहा. इसके अलावा, उसने नीतिगत दस्तावेज या विशिष्ट जानकारी साझा करने से भी इनकार कर दिया और फिर से धारा 8(1)(डी) के तहत ‘व्यावसायिक विश्वास’ के तर्क का सहारा लिया.
इंडियन ओवरसीज बैंक
इंडियन ओवरसीज बैंक ने दावा किया कि मांगी गई जानकारी आसानी से उपलब्ध नहीं थी और कहा कि इसे जमा करने ‘अनुपातहीन रूप से संसाधनों का दुरुपयोग होगा’, इस प्रकार उसने आरटीआई अधिनियम की धारा 7(9) के तहत अनुरोध को अस्वीकार कर दिया.
पंजाब और सिंध बैंक
पंजाब एंड सिंध बैंक ने आरटीआई आवेदन को यह कहते हुए सिरे से खारिज कर दिया कि मांगी गई जानकारी पर्याप्त ‘विशिष्ट’ नहीं है और मांगी गई सभी जानकारियां देने से इनकार कर दिया.
भारतीय स्टेट बैंक
भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने आवेदक द्वारा आधिकारिक अपील दायर करने के बाद भी, वसूली एजेंट के खर्च के बारे में कोई भी जानकारी देने से इनकार कर दिया. शुरुआत में SBI ने तर्क दिया कि मांगी गई जानकारी बैंक के वाणिज्यिक विश्वास/व्यापार रहस्यों से संबंधित है, जिसके खुलासे से आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 8(1)(डी) के तहत छूट मिला है.
अपील पर SBI ने वाणिज्यिक विश्वास के आधार पर छूट का हवाला देते हुए अपना इनकार दोहराया. इस इनकार के कारण एसबीआई रिकवरी एजेंटो पर खर्च सबसे ज्यादा अस्पष्ट बैंकों में से एक बन गया है.
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने कहा कि वह रिकवरी एजेंट के खर्च पर समेकित डेटा नहीं रखता है और ऐसी जानकारी इकट्ठा करने से ‘संसाधनों का अनुचित रूप से दुरुपयोग होगा.’ बैंक ने पहुंच रोकने के लिए ‘व्यावसायिक विश्वास’ खंड की भी मदद ली.
यूको बैंक
यूको बैंक ने भी रिकवरी एजेंट के खर्च के बारे में कोई भी जानकारी शेयर करने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि ऐसे सभी डेटा व्यापार रहस्य और ‘व्यावसायिक गोपनीयता’ के रूप में संरक्षित हैं और धारा 8(1)(D) के तहत अनुरोध को अस्वीकार कर दिया.
यह क्यों मायने रखता है?
वसूली एजेंटों को नियुक्त करने की प्रथा, जिसकी अक्सर आक्रामक और कभी-कभी अनैतिक तरीकों के लिए आलोचना की जाती है. पूरे भारत में लाखों उधारकर्ताओं को सीधे प्रभावित करती है. फिर भी न सिर्फ खर्च डेटा अपारदर्शी है, बल्कि इन एजेंटों को कंट्रोल करने वाले प्रोत्साहन ढांचे और आंतरिक दिशानिर्देश भी व्यवसायिक गोपनीयता के तहत रखे गए हैं. ज्यादातर बैंक तो अपने ब्रांच पर ही एजेंटों को हायर कर लेते हैं और इसकी जानकारी सार्वजनिक तौर पर नहीं रखते हैं, जिससे पूरे आंकड़े नहीं मिल पाते हैं.
जबकि पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन बैंक यह दर्शाते हैं कि खुलासा संभव है, अधिकांश बैंक पारदर्शिता को रोकने के लिए RTI छूट या सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर निर्भर रहते हैं. पूरी जानकारी शेयर करने के मामले में कुछ बैंकों के जवाबों से पता चलता है कि सरकारी बैंक भी अक्सर गोपनीयता का बहाना लेकर वित्तीय जानकारी छुपा रहे हैं.