संसद के शीतकालीन सत्र में केंद्र सरकार ने शुगर और नमक में माइक्रो प्लास्टिक के इस्तेमाल के बारे में कहा कि सरकार इस बारे में अवगत है. इस संबंध में कई अध्ययनों पर भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) के वैज्ञानिक पैनल में शामिल स्वतंत्र एक्सपर्ट द्वारा चर्चा की जाती है. खाद्य पदार्थों में शामिल होने वाले दूषित पदार्थों के रूप में माइक्रो और नैनो प्लास्टिक के मान्य पद्धतियों के इस्तेमाल और उसकी व्यापकता को समझने की कोशिश की जा रही है.
लोकसभा में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री से यह सवाल पूछा गया था कि क्या केंद्र सरकार को राजस्थान के टोंक-सवाई माधोपुर जिले समेत देश में खपत किए जाने वाले नमक और चीनी में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी की रिपोर्ट करने वाले अध्ययनों की जानकारी है और यदि हां, तो उसका ब्यौरा क्या है.
साथ ही यह भी पूछा कि खाद्य सामग्री में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी को परखने या इसके स्तर के आकलन को लेकर कोई शोध किया गया है. यही नहीं नमक, चीनी और अन्य आवश्यक खाद्य सामग्री में माइक्रोप्लास्टिक मिश्रण की निगरानी और विनियमन के लिए सरकार द्वारा क्या कदम उठाए गए या उठाए जाने का प्रस्ताव है.
सरकार का क्या रहा जवाब
इस संबंध में संसद के निचले सदन में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री प्रतापराव जाधव ने बताया कि सरकार नमक और चीनी के नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक का पता लगाने वाले अध्ययन से परिचित है. कई संगठनों की ओर से किए गए अलग-अलग अध्ययनों पर भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) के वैज्ञानिक पैनल में स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा सलाह मशविरा की जाती है. साथ ही एक्सपर्ट्स के द्वारा इन अध्ययनों की योग्यता के आधार पर मुद्दों पर विचार किया जाता है.
सरकार ने बताया कि FSSAI ने लखनऊ स्थित CSIR-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च, कोच्चि स्थित ICAR- सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फिशरीज टेक्नोलॉजी (ICAR-CIFT), और पिलानी के बिरला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान (BITS), की ओर से “Micro-and nano-plastics as emerging food contaminants: Establishing validated Methodologies and understanding the prevalence in different food matrices” नाम के प्रोजेक्ट की आर्थिक मदद कर रही है.
‘माइक्रो प्लास्टिक की पहचान पर जांच’
इस प्रोजेक्ट का मकसद है कि खाद्य मैट्रिक्स में माइक्रो या नैनो-प्लास्टिक की पहचान और उसकी मात्रा का निर्धारण करने के लिए विश्लेषणात्मक विधियों का विकास और सत्यापन किया जाए. साथ ही पहचाने गए खाद्य मैट्रिक्स में विकसित विधियों की इंटर और इंट्रा लैब में पड़ताल की जाए. इसके अलावा पहचाने गए खाद्य मैट्रिक्स में माइक्रो और नैनो-प्लास्टिक के जोखिम के लेवलों की निगरानी और निर्धारण किया जाए.