जब आप लेबनान का नाम सुनते हैं तो आपके दिमाग में शायद हिज्बुल्लाह लड़ाकों और एक युद्ध-ग्रस्त देश की छवि उभरती है. लेकिन कुछ दशक पहले तक यह पश्चिम एशियाई देश, खासकर इसकी राजधानी बेरूत, दुनिया के सबसे अमीर पर्यटकों के लिए आकर्षण का एक केंद्र था. उस समय का लेबनान समुद्र तटों, भीड़भाड़ वाली सड़कों और आजादी से घूमने वाले लोगों के बारे में था. लेकिन मिडिल ईस्ट का स्विट्जरलैंड कहे जाने वाले लेबनान को राजनीतिक और आर्थिक संकट ने इसे आज के दौर में दुर्दशा की ओर धकेल दिया.
बेरूत, जिसे कभी ‘मिडिल ईस्ट का पेरिस’ कहा जाता था, के कुछ अवशेष आज भी बचे हैं. हालांकि, अब यह हिंसा और खून-खराबों की खबरों से पटा पड़ा है. फिर भी लेबनानी जनता की जीवटता ऐसी है कि जब बमबारी बंद होती है, तो पार्टी शुरू हो जाती है.
23 सितंबर को इजरायली द्वारा हिज्बुल्लाह के ठिकानों पर हुए हमले कर 492 लोग मारे गए. यह सीमा पार से हुए हमलों के हिसाब से सबसे घातक दिन था. हिज्बुल्लाह, जो ईरान समर्थित आतंकी संगठन है, ने उत्तरी इजराइल पर 200 रॉकेट दागकर जवाबी कार्रवाई की. इससे पहले हिज्बुल्लाह सदस्यों पर हजारों पेजर्स में विस्फोट कर नुकसान पहुंचाने का मामला सुर्खियों में आया था. पिछले 11 महीनों में हिज्बुल्लाह ने इजराइल पर 8,000 रॉकेट दागे हैं.
लेबनान में भारी तबाही के बाद लोग उस समय को याद कर रहे हैं जब इसे ‘मिडिल ईस्ट का स्विट्ज़रलैंड’ कहा जाता था. वहां की पुरानी फोटो और वीडियो वायरल हो रहे हैं जिनमें महिलाएं स्विमसूट में समुद्र किनारे आराम करती और क्लबों में पार्टी करती दिख रही हैं.
लेबनान: मिडिल ईस्ट का ‘पार्टी कैपिटल’
लेबनान की राजधानी बेरूत में 1930 के दशक में पहला बीच क्लब खुला था. सेंट जॉर्ज क्लब को समुद्र किनारे खोला गया था. सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार सेंट जॉर्ज होटल बेरूत दुनिया के सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख पर्यटकों की मेजबानी करता था. यह होटल लेबनान की बदलती छवि का प्रतीक बन गया था.
1950 के दशक में पैसा आने का सिलसिला बढ़ा जिसके बाद मिडिलटेरियन का अपना ‘ला डोल्से वीटा’ आकार लेने लगा. पांच सितारा होटल, नाइटक्लब और फाइन-डाइनिंग रेस्टोरेंट अमीर पर्यटकों के लिए खुलने लगे जो दुनिया भर से यहां आते थे. लेबनान की समृद्ध संस्कृति, फ्रेंच वास्तुकला, विश्व स्तरीय खाना और फैशन, और शानदार जीवनशैली ने उच्च-वर्गीय पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित किया.
1960 के दशक में बेरूत ने खुद को पार्टी हब वाली जगह के रूप में स्थापित किया. Lonely Planet की रिपोर्ट के अनुसार यही वह समय था जब फ्रेंच अभिनेत्री ब्रिजिट बार्डोट और अमेरिकी स्टार मार्लन ब्रैंडो ने तेल के कारोवार पर पकड़ रखने वाले शेखों और जासूसों के साथ समुद्र किनारे होटल पूल में समय बिताया.
70 के दशक के मध्य तक यह पार्टी बेरोकटोक चलती रही. और यहीं से लेबनान की दुखद यात्रा शुरू हुई. 1975 से 1990 तक चले गृहयुद्ध, अस्थिर सरकारों और अवैध वित्तीय गतिविधियों व भ्रष्टाचार की वजह से लेबनान आज के संकट में फंस गया.
लेबनान को निगल गया गृहयुद्ध
लेबनानी गृहयुद्ध एक जटिल और बहुआयामी संघर्ष था जो 1975 से 1990 तक चला और इसमें विभिन्न आंतरिक और बाहरी ताकतें शामिल थीं. इसने 1,50,000 लोगों की जान ली. यह 13 अप्रैल, 1975 को तब शुरू हुआ, जब मरोनाइट क्रिश्चियन मिलिशिया ने एक बस पर हमला किया, जिसमें फिलिस्तीनी शरणार्थी कैंप जा रहे थे. इस घटना ने पहले से ही तनावपूर्ण स्थिति को एक व्यापक संघर्ष में बदल दिया.
यह युद्ध ईसाइयों और मुसलमानों के बीच गहरे धार्मिक विभाजन, आर्थिक असमानता और लेबनान में फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (PLO) की मैजूदगी पर आधारित था. PLO की भूमिका महत्वपूर्ण थी. लेबनान के मुसलमान और वामपंथी इसका समर्थन करते थे, जबकि ईसाई इसका विरोध करते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि इससे उनकी राजनीतिक स्थिति कमजोर हो जाएगी.
1982 में इजराइल ने PLO को हटाने के लिए लेबनान पर आक्रमण किया, जिसके बाद बेरूत की घेराबंदी हुई और अंततः PLO को अंतर्राष्ट्रीय निगरानी में निष्कासित कर दिया गया. इसी समय शिया समूहों का उदय हुआ, जिसमें ईरान समर्थित हिज्बुल्लाह भी शामिल था.
1976 से 1988 के बीच आंतरिक संघर्ष और शांति के प्रयास विफल रहे, जिससे स्थिति और जटिल हो गई. 1989 में अरब लीग की देख रेख में हुई ताइफ समझौते ने युद्ध के अंत की शुरुआत की और एक नए राष्ट्रपति, एलियास ह्रावी का चुनाव हुआ. धीरे-धीरे मिलिशिया का सफाया किया गया, लेकिन हिज्बुल्लाह एक शक्तिशाली ताकत बना रहा.
अमीरों ने कैसे लेबनान को आर्थिक संकट में फंसा दिया
गृहयुद्ध के बाद सरकार कर्ज में डूबती चली गई और लेबनान एक गहरे आर्थिक संकट में फंस गया. बैंक दिवालिया हो गए और लोग अपनी बचत से हाथ धो बैठे. रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार इसका कारण था कि लेबनान के धर्म आधारित अमीर नेता जिनके उपर भारी उधारी थी और इसके बावजूद उन्होंने कर्ज लेना जारी रखा.
विशेषज्ञों ने लेबनान की वित्तीय प्रणाली को एक राष्ट्रीय स्तर पर संचालित पोंजी स्कीम कहा है, जहां नए धन का उपयोग पुराने कर्ज को चुकाने के लिए किया जाता था. यह तब तक काम करता रहा जब तक नया पैसा आना बंद नहीं हो गया. इस बीच लेबनान ने अपनी अर्थव्यवस्था को पर्यटन, विदेशी सहायता और वित्तीय उद्योग से चलाया.
2011 में जब शिया आतंकी संगठन हिज्बुल्लाह का प्रभाव बढ़ा, तब सुन्नी देशों ने लेबनान से दूरी बना ली. लेबनान का आर्थिक पतन तब शुरू हुआ जब नेताओं ने 2018 के चुनाव से पहले सरकारी कर्मचारियों की वेतन वृद्धि को मंजूरी दी और जरूरी सुधार न होने के कारण विदेशी मदद रेक दी गई.
राजनीतिक और सामाजिक संकट
गृहयुद्ध के समय से ही लेबनान में सीरिया का प्रभाव बना रहा. 1976 में सीरियाई सेनाएं आईं और 2005 तक उन्होंने अपना नियंत्रण बनाए रखा. 2005 में पूर्व प्रधानमंत्री रफीक अल-हरीरी की हत्या के बाद, सीरियाई सेनाओं ने लेबनान छोड़ दिया. हालांकि, 2006 में इजराइल और हिज्बुल्लाह के बीच फिर से युद्ध छिड़ गया. लेबनान ने 2014 से 2016 तक राष्ट्रपति के बिना सरकार चलाई, और 2022 से राष्ट्रपति पद फिर से खाली है.
संकट के बीच भी मजबूत दिख रहा है बेरूत
इस संकट का सामाज पर गहरा प्रभाव पड़ा. कई लेबनानी नागरिक देश छोड़ने के लिए बेताब हैं. कुछ लोग खतरनाक रास्तों से यूरोप पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. जो शहर कभी समृद्ध थे अब वहां गरीबी की झलक दिखाई देती है. बच्चों को सड़कों पर भीख मांगते देखा जा सकता है और परिवार बुनियादी जरूरतें पूरी करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. जब राज्य की ओर से कोई सहायता नहीं मिल रही है, तो सिविल सोसाइटी द्वारा खाना और स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराई जा रही हैं.
हालांकि, कई रिपोर्टों के अनुसार बेरूत की नाइटलाइफ अब भी मिडिल ईस्ट में बेहतरीन मानी जाती है. मई में, यूके के Metro की एक रिपोर्ट के अनुसार बेरूत में बार और क्लब सामान्य रूप से काम कर रहे थे, जहां सुबह तक म्यूजिक बजती रहती है. बेरूत के Clique क्लब के मालिक गेब्रियल एल मुर ने Metro को बताया, ‘क्लब ही एकमात्र ऐसी जगह हैं जहां धार्मिक मतभेद मायने नहीं रखते. वहां हम सब भाई-बहन की तरह होते हैं.’ हालांकि, इन्हें संवेदनहीन होने के आरोप भी झेलने पड़ते हैं.
कैसे लेबनान, जिसे कभी मिडिल ईस्ट का पेरिस कहा जाता था, एक आधुनिक दौर के दुःस्वप्न में बदल गया, इसका प्रतिबिंब सेंट जॉर्ज होटल बेरूत की इमारत पर देखा जा सकता है. यह वही होटल है जिसने कभी हॉलीवुड सितारे एलिजाबेथ टेलर, रिचर्ड बर्टन और मार्लन ब्रैंडो, और फ्रेंच अभिनेत्री ब्रिजिट बार्डोट, जॉर्डन के राजा हुसैन और ईरान के शाह जैसे शाही मेहमानों की मेजबानी की थी. अब यह इमारत बमबारी से क्षतिग्रस्त दिखाई देता है.
रफीक अल-हरीरी की 14 फरवरी 2005 को इसी होटल के बाहर एक बड़े कार बम विस्फोट में हत्या कर दी गई थी. होटल के मालिक, फादी खोरी, इस हमले में मामूली रूप से घायल हुए थे, लेकिन उन्होंने बताया कि इस हमले में उन्हें करोड़ों डॉलर का नुकसान हुआ. लगभग 1,800 किलोग्राम टीएनटी का इस्तेमाल विस्फोट में किया गया था, और आसपास की सभी इमारतों के साथ-साथ इस प्रतिष्ठित होटल को भी नुकसान पहुंचा.
यह लेबनानी समाज का हर तरफ से पतन था, राजनीतिक से लेकर आर्थिक स्तर तक. लेबनान जो कभी कला, संस्कृति और भव्य जीवनशैली का प्रतीक था, अब वह हिज्बुल्लाह के गढ़ के रूप में परिभाषित हो चुका है.