उज्जैन: महाकाल बाबा के शहर को आज हम उज्जैन के नाम से जानते हैं, लेकिन बहुत से लोग नहीं जानते कि इस शहर का नाम उज्जैन कैसे पड़ा. उज्जैन का नाम पहले उज्जयिनी था. विद्वानों के अनुसार उज्जयिनी का मतलब होता है ‘विजेता’. दूसरे शब्दों में इसे ‘जयनगरी’ के नाम से जाना गया. ऐसा कहा जाता है कि प्राचीनकाल में भगवान ब्रह्मा से मिले वरदान के बाद त्रिपुर नाम का राक्षस देवताओं को परेशान करता था.
त्रिपुर ने अपनी सारी हदें पार कर दी थीं. तब सभी देवताओं ने मिलकर भगवान शिव से उन्हें त्रिपुर राक्षस से मुक्ति दिलाने के लिए प्रार्थना की. तब शिव जी ने देवताओं को चण्डिका देवी की पूजा कर उन्हें मनाने के लिए कहा. देवताओं की इस खास पूजा से चण्डिका देवी खुश हो गईं और उन्होंने भगवान शिव को महापाशुपता नाम का एक शस्त्र दे दिया.
इसी शस्त्र की सहायता से भगवान शिव ने त्रिपुर नाम के राक्षस के तीन टुकड़े कर दिए. उस दौर में त्रिपुर राक्षस को हराने वाले को उज्जिन नाम दिया गया था जिसका अर्थ था पराजित करना और इसी उज्जिन शब्द से उज्जयिनी शब्द बना जिसका अर्थ है विजेता और जिस स्थान पर त्रिपुर राक्षस मारा गया था उसे उज्जयिनी नाम दिया गया. इस तरह उज्जैन को पहला नाम उज्जयिनी मिला था. समय गुजरने के साथ उज्जयिनी बन गया उज्जैन.
उज्जैन का इतिहास
उज्जैन के इतिहास की बात की जाए तो इसका अपना प्राचीन इतिहास है. इतिहासकारों ने इस शहर के अस्तितव की पहचान करने के लिए इस शहर की खुदाई की. इस दौरान इतिहासकारों को इस शहर के लौह युग के दौरान होने के सबूत मिले थे. वहीं हिंदुओं के पवित्र ग्रंथ महाभारत में भी इस शहर के बारे बताया गया है. महाभारत के अनुसार भगवान कृष्ण अपने भाई बलराम के साथ गुरु सांदीपनी के पास पढ़ने के लिए आए थे. वहीं उज्जैन को भगवान कृष्ण की ससुराल के रुप में भी जाना जाता है. भगवान कृष्ण की शादी उज्जैन की राजकुमारी मित्रवृन्दा के साथ हुई थी. उज्जैन प्रद्योत वंश के शासन के बाद मगध राजाओं के आधीन रहा.
जैन धर्म में उज्जैन का महत्तव
जैन धर्म के विद्वानों के अनुसार उज्जैन पर 386 ईसा पूर्व राजा खादिरसार का राज पूरे मगध पर हुआ करता था. राजा ने मगध की राजधानी उज्जैन को बनाया गया था. राजा खादीरसार ने अपनी पत्नी चेलमा से प्रभावित होने पर जैन धर्म को अपना लिया और महावीर स्वामी के भक्त बन गए. इससे पहले राजा खादीरसार बौद्ध धर्म को मानते थे. मगध पर राजा खादीरसार के बाद राजा गंधर्वसेन का शासन हुआ.
राजा गंधर्वसेन ईसा पूर्व पहली शाताब्दी में मगध के सिंहासन पर बैठे थे जिनकी वीरता की कहानी पूरे भारत में मशहूर थी. उनके बाद उज्जैन और मगध के सिंहासन पर सम्राट विक्रमादित्य बैठे. सम्राट विक्रमादित्य के दरबार में संस्कृत के महान कवि कालिदास नवरत्नों में से एक रत्न हुआ करते थे. अपनी कविताओं में कालिदास ने उज्जयिनी के बारे में बहुत ही सुंदर वर्णन किया था.
उज्जैन के इतिहास का प्रमाण
उज्जयिनी शहर के इतिहास के प्रामण ईसा से 600 वर्ष पूर्व के मिले हैं. उस समय भारत में 16 जनपद हुआ करती थी. उन्हीं 16 जनपदों में से एक जनपद थी अवंति. अवंति दो भागों उत्तर और दक्षिण में बंटी हुई थी. उत्तरी अवंति की राजधानी उज्जैन हुआ करती थी, वहीं दक्षिणी अवंति की राजधानी महिष्मति को बनाया गया था. उस समय अवंति पर राजा चंद्रप्रद्योत का शासन था जो ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी तक हुआ करता था.
मौर्य साम्राज्य का उदय
ईसा पूर्व 300वीं शताब्दी में मौर्य राजवंश का शासन हुआ और महान अर्थशास्त्री और राजनीतिज्ञ विद्वान आचार्य चाणक्य के मार्ग दर्शन में मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य मगध के सिंहासन पर बैठे. सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के बाद उनके बेटे बिंदुसार ने मगध के शासन की कमान संभाली. इस दौरान उन्होंने मगध और उज्जैन के विकास के लिए कई योजनाओं पर काम किया. बिंदुसार की मृत्यु के बाद उनके बेटे महान सम्राट अशोक मगध के सिंहासन पर बैठे. सम्राट अशोक ने अपने शासन के दौरान उज्जयिनी के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. इसके बाद उज्जैन पर गुप्त राजाओं ने शासन किया.
उज्जैन का नया इतिहास
1000 से 1300 ईसवी तक पूरे मालवा पर परमार राजाओं ने शासन किया और उन्होंने अपनी राजधानी को ही उज्जैन रखा. अपने शासन के दौरान परमार शासकों ने यहां के साहित्य, कला एवं संस्कृति को काफी प्रोतसाहन दिया था. दिल्ली की तख्त पर खिलजियों के हमले के चलते मालवा से भी परमार वंश का शासन खत्म हो गया.
इसके बाद 1235 में दिल्ली के राजा शमसुद्दीन इल्तुतमिश ने विदिशा पर जीत दर्ज करने के बाद उज्जैन पर जोरदार हमला कर दिया था. इस हमले से उज्जैन की संस्कृति काफी हद तक तहस-नहस हो गई. 1406 में एक बार फिर से मालवा स्वतंत्र हो गया. वहीं मुगल काल के दौरान सम्राट अकबर ने मालवा पर हमला कर के उसे अपने अधीन कर लिया और उज्जैन को मुगल शासन का प्रांतीय मुख्यालय बना दिया.
उज्जैन पर सिंधिया का शासन
1737 में राणोजी सिंधिया ने उज्जैन पर जीत हासिल कर अपना शासन स्थापित कर लिया. उज्जैन पर सिंधिया वंश ने 1880 तक राज किया. इस दौरान सिंधिया राजाओं ने उज्जैन के विकास के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी. वहीं उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर का भी नए सिरे से जीर्णोद्धार किया. राजा राणोजी ने जिस महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार किया था वो आज भी मौजूद है. 1810 में सिंधिया वंश ने अपनी राजधानी उज्जैन से हटा कर ग्वालियर बना ली थी. इसके बाद भी सिंधिया शासकों ने उज्जैन के सांस्कृतिक और धार्मिक विकास में कोई कमी नहीं छोड़ी.