मऊगंज : एक ओर जहां सरकार “लाडली बहना योजना” के तहत महिलाओं के सशक्तिकरण और सम्मान की गाथा गा रही है, वहीं ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयान कर रही है. मऊगंज जनपद के बधाईयां गांव की एक गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा के दौरान खाट पर लिटाकर कीचड़ और कांटों के रास्ते अस्पताल ले जाया गया — क्योंकि न एंबुलेंस पहुंच सकी और न ही प्रशासन.
गांव के वार्ड क्रमांक 9 में सड़कों का अस्तित्व नहीं, बल्कि कांटेदार तारों की दीवारें हैं जो न सिर्फ रास्ता रोकती हैं, बल्कि इंसानियत को भी लहूलुहान करती हैं। परिजनों के अनुसार, रास्ते पर जब-जब सुधार की मांग की गई, प्रशासन ने कानों में रूई ठूंस ली.
कांटों पर चलती ज़िंदगी, सिस्टम बना मूकदर्शक
बधाईयां गांव में कुछ प्रभावशाली लोगों द्वारा रास्तों पर अवैध रूप से कांटेदार तारें लगा दी गई हैं, जिससे आमजन का निकलना भी मुश्किल हो गया है। नतीजा – मरीजों, बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं को या तो घर में तड़पना पड़ता है या फिर खाट पर उठा कर कीचड़ और कांटों के बीच से अस्पताल ले जाया जाता है.
एक वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि कैसे एक महिला प्रसव पीड़ा से तड़प रही है और गांववाले उसे कांटों के बीच से उठाकर ले जा रहे हैं.यह दृश्य किसी इंसानी बस्ती का नहीं, मानो किसी त्रासदी से ग्रस्त युद्ध क्षेत्र का हो.
वोट के बाद ‘ग़ायब’ जनप्रतिनिधि, पीड़ा में ‘लाचार’ जनता
जनता का सवाल है, चुनावों के वक्त घर-घर दस्तक देने वाले नेता अब कहां हैं? गांव की यह स्थिति कोई एक दिन की नहीं, वर्षों से चली आ रही है.लेकिन न कोई विधायक दिखा, न सरपंच की सुनवाई हुई, और न ही कोई अधिकारी आया।
“खाट पर ज़िंदगी और कांटों के बीच मौत” — यही है मऊगंज का सच?
क्या यही है सरकार की लाडली बहनों का सम्मान? क्या यह वही ‘विकास’ है जिसके गीत प्रचार में गाए जाते हैं? क्या ग्रामीणों की जिंदगी अब खाट, कीचड़ और कांटों के सहारे ही चलेगी?