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‘गरीबी को कभी बोझ नहीं समझा…’, लेक्स फ्रिडमैन के सवालों पर बोले PM मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज रविवार को अमेरिकी पॉडकास्टर लेक्स फ्रिडमैन के साथ पॉडकास्ट इंटरव्यू में कहा कि बचपन में गरीबी में रहने के बावजूद हमने इसे कभी बोझ माना ही नहीं. लगातार कठिनाइयों के बीच रहने के दौरान भी उन्होंने कभी अभाव की भावना का अनुभव नहीं किया.

बचपन के दिनों को याद करते हुए पीएम मोदी ने कहा, “मैं अपने परिवार, अपने माता-पिता, भाई-बहनों, अपने चाचाओं और अपने दादा-दादी के बारे में सोचता हूं, तब हम सभी एक छोटे से घर में एक साथ रहते थे. जहां रहते थे वहां पर कोई खिड़की तक नहीं थी. वह जगह शायद इससे भी छोटी थी जहां हम अभी बैठे हैं. घर के लिए बस एक छोटा सा दरवाजा हुआ करता था.”

बेहद गरीबी में गुजारा बचपनः PM मोदी

उन्होंने आगे बताया, “वहीं पर मेरा जन्म हुआ. वहीं पर मैं पला-बढ़ा और बड़ा हुआ. अब, जब लोग गरीबी की बात करते हैं, तो सार्वजनिक जीवन के संदर्भ में इस विषय पर चर्चा करना स्वाभाविक हो जाता है, और उन मानकों के अनुसार, शुरुआती जीवन में हम अत्यंत गरीबी में जी रहे थे, लेकिन हमें कभी गरीबी का बोझ महसूस ही नहीं हुआ.” उन्होंने याद किया कि कैसे कठिनाइयों के बीच रहने के दौरान भी उन्होंने कभी अभाव की भावना का अनुभव नहीं किया.

पीएम मोदी ने अपने बचपन के एक किस्से को साझा किया और बताया कि कैसे गरीबी उनके लिए कभी भी मुश्किल नहीं रही. उन्होंने याद करते हुए कहा, “एक दिन मैं स्कूल जा रहा था और पैरों में जूते नहीं थे, तो मेरे मामा ने मुझे जूते लाकर दिए. सफेद कैनवास के जूते थे तो वो जल्दी गंदे हो जाते थे. तो जब भी मैं स्कूल जाता तो वहां पर कुछ देर के लिए रूक जाता और फिर स्कूल में फेंके गए चाक से जूते पर पॉलिश कर दिया करता था. तब ये जूते मेरे लिए बड़ी संपत्ति की तरह थी.”

जीवन के हर चरण को कृतज्ञता के साथ अपनाया: PM मोदी

लेक्स फ्रिडमैन के साथ पॉडकास्ट में पीएम मोदी ने इस बात पर भी जोर दिया कि उन्होंने जीवन के हर चरण को कृतज्ञता के साथ अपनाया और गरीबी को कभी भी संघर्ष के रूप में नहीं देखा.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से अपने जुड़ाव के बारे में पीए मोदी कहा, “मैं इसके लिए खुद को बेहद सौभाग्यशाली मानता हूं कि मैंने आरएसएस जैसे प्रतिष्ठित संगठन से जीवन का सार और मूल्य सीखा. मुझे इसके जरिए उद्देश्यपूर्ण जीवन मिला. बचपन में संघ की सभाओं में जाना हमेशा अच्छा लगता था. मेरे मन में हमेशा एक ही लक्ष्य रहता था, देश के काम आना. संघ ने मुझे यही सब सिखाया.

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