एक 16 साल 6 महीने की नाबालिग लड़की ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अपनी जबरन कराई गई शादी को रद्द करने की गुहार लगाई है. याचिका में कहा गया है कि उसकी शादी 32 साल के एक व्यक्ति से उसकी मर्जी के खिलाफ कराई गई, जबकि वह अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती थी. लड़की ने ससुराल में शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का भी आरोप लगाया है. यह मामला बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत न्याय की मांग करता है.
मां की ओर से दर्ज हुई एफआईआर
लड़की की मां ने 4 अप्रैल को पटना के पिपलावा थाने में एफआईआर (संख्या 59/25) दर्ज कराई थी. इसमें लड़की के दोस्त सौरभ कुमार और उसके परिवार पर अपहरण का आरोप लगाया गया. याचिका में दावा किया गया है कि यह एफआईआर इसलिए दर्ज की गई ताकि लड़की को जबरन ससुराल वापस भेजा जा सके. लड़की ने सुप्रीम कोर्ट से इस एफआईआर के आधार पर किसी भी तरह की दमनात्मक कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग की है. साथ ही उसने खुद, सौरभ और उसके परिवार की सुरक्षा की भी गुहार लगाई है.
संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की मांग
याचिका में संविधान के अनुच्छेद 32 और 142 का हवाला दिया गया है. अनुच्छेद 32 मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए कोर्ट में याचिका दायर करने का अधिकार देता है, जबकि अनुच्छेद 142 कोर्ट को विशेष परिस्थितियों में न्याय के लिए आदेश पारित करने की शक्ति प्रदान करता है. लड़की ने कोर्ट से अनुरोध किया है कि वह उसके हित में हस्तक्षेप करे और बाल विवाह को रद्द करे, ताकि उसके शिक्षा और स्वतंत्रता के अधिकार सुरक्षित रहें.
बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई
यह मामला बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीति के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कदम है. भारत में बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत 18 साल से कम उम्र की लड़की और 21 साल से कम उम्र के लड़के की शादी गैरकानूनी है. इसके बावजूद कई जगहों पर जबरन बाल विवाह के मामले सामने आते हैं. इस याचिका के जरिए नाबालिग लड़की ने न केवल अपने अधिकारों की रक्षा की मांग की है. बल्कि समाज में जागरूकता फैलाने का प्रयास भी किया है.