तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने अपने उत्तराधिकारी को लेकर चल रही अटकलों पर विराम लगाते हुए शनिवार को कहा कि उन्हें Avalokiteshvara (बोधिसत्व करुणा) का आशीर्वाद प्राप्त है और वह आने वाले 30 से 40 वर्षों तक और जीवित रहकर जनकल्याण का कार्य करना चाहते हैं. दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो ने रविवार को मनाई जाने वाली अपनी 90वीं जयंती से पहले मुख्य मंदिर त्सुगलाखांग, मैक्लोडगंज में आयोजित दीर्घायु प्रार्थना समारोह के दौरान यह बात कही.
उन्होंने कहा, “कई भविष्यवाणियों को देखते हुए मुझे यह स्पष्ट संकेत और विश्वास है कि Avalokiteshvara की कृपा मुझ पर बनी हुई है. मैंने अब तक अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया है और आपकी प्रार्थनाओं का फल मिला है. मुझे उम्मीद है कि मैं अब भी 30-40 साल और जीवित रह सकूंगा, जब तक 130 साल का नहीं हो जाता.”
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— India 2047 (@India2047in) July 4, 2025
दलाई लामा ने यह भी कहा, “हालांकि हमने अपना देश खो दिया है और अब भारत में निर्वासन में रह रहे हैं, लेकिन यहीं रहते हुए मैंने काफी लोगों की सेवा की है, खासकर धर्मशाला में रह रहे लोगों की. मेरा प्रयास रहेगा कि मैं यथासंभव प्राणियों की सेवा करता रहूं.”
सुर्खियों में दलाई लामा के उत्तराधिकारी का मामला
दरअसल, दलाई लामा के उत्तराधिकारी (पुनर्जन्म) का मामला फिर से एक बार सुर्खियों में है. तिब्बती बौद्धों की सर्वोच्च धर्मगुरु दलाई लामा ने चीन और अपने अनुयायियों को साफ़ संदेश दिया है कि दलाई लामा की संस्था जारी रहेगी. धर्मगुरु दलाई के इस बयान के बाद चीन, भारत से लेकर अमेरिका तक हलचल तेज हो गई है. वहीं, तिब्बत के लामाओं के बीच खुशी की लहर दौड़ गई है.
तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रमुख पेन्पा त्सेरिंग ने दलाई लामा के पुनर्जन्म के मामले में हस्तक्षेप करने की कोशिश का सख्त विरोध किया है. उन्होंने चीन के दखलंदाज़ी को बिल्कुल बेमतलब बताया और कहा कि पुनर्जन्म एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है. ऐसे में चीन कैसे तय कर सकता है कि अगला दलाई लामा कहां पैदा होगा. आध्यात्मिक गुरु ख़ुद तय करते हैं कि उन्हें कहां पैदा होना है.
उन्होंने कहा कि चीन को पहले तिब्बती संस्कृति, बौध धर्म और मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में अध्ययन करने की ज़रूरत है. अगर चीन वाक़ई में पुनर्जन्म के प्रक्रिया पर विश्वास करता है तो उन्हें सबसे पहले अपने नेताओं जैसे माओ ज़ेदोंग, जियांग ज़ेमिन और और के पुनर्जन्म को खोजने की कोशिश करनी चाहिए.
‘आजाद देश से चुना जाएगा अगला दलाई लामा’
धर्मशाला से जारी एक वीडियो संदेश के जरिए दलाई लामा ने साफ किया कि गार्डेन पोडरन ट्रस्ट के पास भविष्य के दलाई लामा को पहचानने का पूरा अधिकार होगा. उन्होंने यह भी कहा है कि नए दलाई लामा के चयन में किसी भी दूसरे का कोई भी अधिकार नहीं होगा. दलाई लामा ने यह भी स्पष्ट किया है कि इस बार का दलाई लामा किसी लोकतांत्रिक और आजाद देश से चुना जाएगा.
इसका मतलब यह हुआ कि दलाई लामा चीन या फिर तिब्बत से नहीं होगा क्योंकि चीन लोकतांत्रिक नहीं है और तिब्बत आजाद नहीं है, इस पर चीन का अधिकार है. चीन इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना चाहता है क्योंकि दलाई लामा तिब्बत के धार्मिक और प्रशासनिक प्रमुख होते हैं.
मौजूदा दलाई लामा 1959 में चीन के कब्जे के बाद भारत आए थे और तब से हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में निर्वासित तौर पर रह रहे हैं. चीन को लगता है कि अगर दलाई लामा उसके पक्ष में होगा तो तिब्बत पर शासन करना उसके लिए आसान होगा. दलाई लामा ने दोहराया है कि ‘गार्डेन फोर्डेन ट्रस्ट के पास पुनर्जन्म को मान्यता देने का एकमात्र अधिकार है. इस मामले में किसी और को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है.
तिब्बती बौद्ध धर्म में ढूंढा जाता है दलाई लामा का उत्तराधिकारी
तिब्बती बौद्ध धर्म में दलाई लामा को चुना नहीं बल्कि ढूंढ़ा जाता है. ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद दलाई लामा नए शरीर में पुनर्जन्म लेते हैं. वरिष्ठ भिक्षु आध्यात्मिक संकेतों का अध्ययन कर बच्चे की तलाश करते हैं, जिसमें सपनों का विश्लेषण, शव की दिशा, दाह संस्कार के धुएं की दिशा शामिल है. पहचान होने पर बच्चे को दलाई लामा की प्रिय वस्तुएं दी जाती हैं और सही चयन करने पर उसे संभावित पुनर्जन्म माना जाता है.