‘कोई सरकारी पद नहीं लूंगा और…’, CJI बीआर गवई ने बताया अपना रिटायरमेंट प्लान 

भारत के मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई ने शुक्रवार को कहा कि वह सेवानिवृत्ति के बाद कोई पद स्वीकार नहीं करेंगे. वह महाराष्ट्र के अमरावती जिले में अपने पैतृक गांव दारापुर में आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे. मुख्य न्यायाधीश के गांव वालों ने उनके सम्मान में इस कार्यक्रम का अयोजन किया था. मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा, ‘मैंने निर्णय लिया है कि सेवानिवृत्ति के बाद मैं कोई सरकारी पद स्वीकार नहीं करूंगा…सेवानिवृत्ति के बाद मुझे अधिक समय मिलेगा, इसलिए मैं दारापुर, अमरावती और नागपुर में अधिक समय बिताने का प्रयास करूंगा.’ सीजेआई गवई इस वर्ष नवंबर में सेवानिवृत्त होंगे.

Advertisement

इससे पहले दिन में, अपने पैतृक गांव दारापुर पहुंचने पर लोगों की भारी भीड़ ने भारत के मुख्य न्यायाधीश का स्वागत किया. उन्होंने अपने पिता, केरल और बिहार के पूर्व राज्यपाल आरएस गवई की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित की और कुछ पारिवारिक सदस्यों के साथ उनकी पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम में भाग लिया. उन्होंने दारापुर के रास्ते पर आरएस गवई के नाम पर बनाए जाने वाले एक भव्य द्वार की आधारशिला भी रखी. सीजेआई बीआर गवई ने अमरावती जिले के दरियापुर कस्बे में एक न्यायालय भवन का उद्घाटन किया. वह शनिवार को अमरावती जिला एवं सत्र न्यायालय में टी.आर. गिल्डा मेमोरियल ई-लाइब्रेरी का उद्घाटन करेंगे.

पिछले महीने की शुरुआत में सीजेआई गवई ने यूनाइटेड किंगडम के सुप्रीम कोर्ट में एक गोलमेज चर्चा के दौरान सेवानिवृत्त न्यायाधीशों द्वारा सरकारी नियुक्तियां लेने या चुनावी राजनीति में प्रवेश करने पर चिंता व्यक्त की थी. उन्होंने कहा था सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद न्यायाधीशों द्वारा सरकार नियुक्तियां स्वीकार करना या चुनावी राजनीति में प्रवेश करना महत्वपूर्ण नैतिक मुद्दे उठाती हैं और न्यायपालिका में जनता के विश्वास को नुकसान पहुंचाने का जोखिम पैदा करती हैं. मुख्य न्यायाधीश गवई ने चेतावनी दी थी कि सेवानिवृत्ति के बाद की इन भूमिकाओं से यह धारणा बन सकती है कि न्यायिक निर्णय भविष्य के राजनीतिक या सरकारी अवसरों को ध्यान में रखकर लिए जाते हैं.

रिटायरमेंट के बाद सरकारी पद लेने का करते रहे हैं विरोध

उन्होंने कहा था, ‘अगर कोई न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद सरकार में कोई अन्य पद ग्रहण कर लेता है, या चुनाव लड़ने के लिए पीठ से इस्तीफा दे देता है, तो इससे गंभीर नैतिक चिंताएं पैदा होती हैं और सार्वजनिक जांच की आवश्यकता होती है. किसी न्यायाधीश द्वारा किसी राजनीतिक पद के लिए चुनाव लड़ने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर संदेह पैदा हो सकता है, क्योंकि इसे हितों के टकराव या सरकार का पक्ष लेने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है. सेवानिवृत्ति के बाद की ऐसी गतिविधियों का समय और प्रकृति न्यायपालिका की ईमानदारी में जनता के विश्वास को कमजोर कर सकती है, क्योंकि इससे यह धारणा बन सकती है कि न्यायिक निर्णय भविष्य में सरकारी नियुक्तियों या राजनीतिक भागीदारी की संभावना से प्रभावित होते हैं.’

मुख्य न्यायाधीश गवई ने जोर देकर कहा था कि उन्होंने और उनके कई सहयोगियों ने सार्वजनिक रूप से यह वचन दिया है कि वे सेवानिवृत्ति के बाद सरकार से कोई भी भूमिका या पद स्वीकार नहीं करेंगे. उन्होंने कहा कि यह न्यायपालिका की विश्वसनीयता और स्वतंत्रता को बनाए रखने का एक प्रयास है. उनकी यह टिप्पणी लंबे समय से चली आ रही इस बहस के बीच आई है कि क्या न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद कोई दूसरा सरकार पद ग्रहण करना चाहिए या राजनीति में उतरना चाहिए? हाल के वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा पद छोड़ने के तुरंत बाद कार्यपालिका द्वारा दी जाने वाली भूमिकाएं स्वीकार करने से यह चिंता और गहरी हो गई है.

Advertisements