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‘G-7 हो सकता है तो BRICS क्यों नहीं…’, जयशंकर ने यूरोप में सुनाई दो टूक

अपनी बेबाकी और हाजिरवाबी के लिए मशहूर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिका समेत पश्चिमी देशों को एक बार आईना दिखाने का काम किया है. गुरुवार को यूरोपीय देश स्विट्जरलैंड के शहर जेनेवा में बोलते हुए उन्होंने इस तर्क को खारिज किया कि रूस, चीन और भारत जैसे देशों का संगठन BRICS गैर जरूरी संगठन है.

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दरअसल, उनसे सवाल किया गया कि जी-20 में पहले से ही ब्रिक्स के सभी देश शामिल थे तो फिर नए संगठन की जरूरत क्यों पड़ी. इस सवाल पर विदेश मंत्री ने अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के संगठन जी-7 का हवाला देते हुए कहा कि जी-20 के रहते हुए जब ये ब्लॉक बन सकता है तो ब्रिक्स क्यों नहीं. साथ ही उन्होंने कहा कि आप लोगों यानी जी-7 के देशों ने किसी अन्य देश को अपने ब्लॉक में आने की अनुमति नहीं दी इसलिए भारत जैसे देशों ने अपना नया ब्लॉक ही बना लिया. एस. जयशंकर ने यह बात थिंक टैंक जेनेवा सेंटर फॉर सिक्योरिटी पॉलिसी में राजदूत जीन-डेविड लेविटे के साथ बातचीत में कही.

ब्रिक्स की स्थापना 2009 में ब्राजील, रूस, भारत और चीन ने मिलकर की थी जिसमें बाद में दक्षिण अफ्रीका भी शामिल हो गया था. इस साल जनवरी में, पांच नए देश – ईरान, सऊदी अरब, मिस्र, यूएई और इथियोपिया – इस समूह में शामिल हुए. ग्लोबल जीडीपी में ब्रिक्स देशों का हिस्सा 27%है.

 

BRICS क्लब क्यों?

जीन-डेविड लेविटे ने विदेश मंत्री से पूछा कि जब पहले से ही जी-20 ब्लॉक था तो एक नए क्लब ब्रिक्स की जरूरत क्या पड़ी? जवाब में एस जयशंकर ने तीखे तेवर में कहा, ‘क्लब क्यों? क्योंकि एक और क्लब था…. इसे G7 कहा जाता था और आप किसी और को उस क्लब में शामिल नहीं होने देंगे. इसलिए, हमने अपना खुद का क्लब बनाया.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मुझे तो हैरानी होती है कि जब आप ब्रिक्स की बात करते हैं तो ग्लोबल नॉर्थ (अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, यूरोपीय यूनियन, दक्षिण कोरिया जैसे देश) कितना असुरक्षित महसूस करने लगता है. किसी न किसी तरह यह लोगों के मन में खटकता रहता है. आप जरा सोचिए… जी-20 पहले से मौजूद है तो क्या जी-7 खत्म हो गया? क्या इसकी बैठकें बंद हो गई हैं? नहीं, यह अभी भी जारी है. जी-7, जी-20 के साथ-साथ चल रहा है. फिर, जी-20 के साथ ब्रिक्स का अस्तित्व क्यों नहीं हो सकता?’

‘दूसरे ब्लॉक्स की तुलना में यूनिक है BRICS’

विदेश मंत्री ने कहा कि ब्रिक्स का विकास स्वाभाविक रूप से हुआ है क्योंकि देशों ने इसके महत्व को पहचाना है. यह ब्लॉक बाकी अन्य ब्लॉक्स से यूनिक है जिसने एक-दूसरे से बिल्कुल अलग देशों को एक साथ लाने का काम किया है. उन्होंने कहा कि समय के साथ ब्रिक्स का महत्व बढ़ा है क्योंकि बाकी देशों ने भी इसकी कीमत पहचानी है.

इस दौरान विदेश मंत्री ने ग्लोबल साउथ (चीन, भारत, इंडोनेशिया, ब्राजील जैसे विकासशील देश) के बारे में भी बात की. उन्होंने कहा, ‘ग्लोबल साउथ के ज्यादातर देश उपनिवेश-मुक्त देश हैं. इनमें से ज्यादातर विकासशील देश हैं.’ उन्होंने कहा कि ग्लोबल साउथ के देश एक-दूसरे को समझते हैं.

विदेश मंत्री अपने तीन देशों के दौरे के तीसरे और अंतिम चरण में हैं. उन्होंने सऊदी अरब में पहली भारत-खाड़ी सहयोग परिषद मंत्रिस्तरीय बैठक के साथ अपने दौरे की शुरुआत की और फिर वो जर्मनी पहुंचे. वहां उन्होंने अपनी जर्मन समकक्ष अन्नालेना बैरबॉक के साथ चर्चा की और जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज से भी मुलाकात की. विदेश मंत्री दो दिवसीय स्विटजरलैंड दौरे पर 12 सितंबर को पहुंचे थे.

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