दुनिया के प्राचीनतम शहरों में शुमार गंगा-जमुनी तहजीब के शहर वाराणसी ने आज एक ऐसा पैगाम दिया, जो नफरत फैलाने वालों के लिए एक सबक है. वाराणसी में रंगों के नाम पर नफरत फैलाने वालों को मुस्लिम महिलाओं ने प्रेम और भाईचारे का पैगाम दिया है. मुस्लिम महिलाओं ने सनातनियों के साथ जमकर फूलों और गुलाल से होली खेली. नफरती बयानबाजी और देश को तोड़ने वाले बयानों के बीच काशी ने भाईचारे और एकता का संदेश दिया है.
मुस्लिम महिलाओं ने कहा कि होली हमारे पूर्वजों का त्योहार है. होली नहीं खेलेंगे तो जन्नत में जाकर क्या जबाव देंगे? मुस्लिम महिलाओं ने हिंदू महिलाओं के साथ होली के गीत गाए और कहा कि नफरत की आग होली के रंग से ही बुझेगी. जिनकी जिंदगी बदरंग है वो होली अवश्य खेलें.
होली के रंग से नफरत की आग बुझाएंगे, होली भी खेलेंगे और जन्नत भी जाएंगे… इन लाइनों को अमली जामा पहनाते हुए वाराणसी ने गंगा-जमुनी तहजीब का संदेश दिया है. धर्म की आड़ में नफरत की आग लगाने वाले कट्टरपंथी अब संस्कृति और संबंधों के लिए खतरा बन चुके हैं. अब ये कट्टरपंथी तय करेंगे कि कौन होली खेलेगा, कौन गुजिया खाएगा और कौन किसके घर जाएगा? निजी जीवन और निजी संबंधों में दखल देने वालों के नफरती बयान से सीने में जो विद्वेष की आग जल रही है, उसको आगे बढ़ने से काशी की हिंदू-मुस्लिम महिलाओं ने प्रेम और सौहार्द से रोक दिया.
गुलाब की पंखुड़ियों से खेली होली
मुस्लिम महिला फाउण्डेशन एवं विशाल भारत संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में मुस्लिम महिलाओं का होली उत्सव लमही के सुभाष भवन में आयोजित किया गया. गुलाब की पंखुड़ियां, हरे-लाल गुलाल और गुलाब जल का मिश्रण मिलाकर होली में प्रेम का रंग बनाया गया था. पहले तो ढोल की थाप पर फाल्गुन गीत.. “गूंजे होली खेले रघुराई अवध में, कृष्ण कन्हाई गोकुल में हो”.
इनके हंसी ठिठोली को देखकर कहीं नहीं लगता है कि नफरत की आग लगाने वाले कट्टरपंथियों का कोई भी प्रभाव इनके ऊपर है. न उनकी धमकियों से डरीं, न उनकी बात सुनीं. मुस्लिम महिलाओं ने खुलेआम ऐलान कर दिया कि होली भी खेलेंगे और जन्नत भी जाएंगे.
दरअसल, कट्टरपंथी मौलानाओं ने सबको जन्नत भेजने का ठेका ले रखा है. इसलिए हर किसी के जिंदगी में दखल देकर यह बताते रहते और धमकी देते हैं कि क्या करने से मुसलमान जन्नत जाएगा और क्या करने से नहीं जाएगा. उसी में यह अफवाह किसी ने फैला दी है कि जो मुसलमान होली पर रंग लगाएगा, उतना मांस उसका जन्नत में काट लिया जाएगा. मुस्लिम महिला फाउण्डेशन की नेशनल सदर नाजनीन अंसारी ने कहा कि होली हमारे पूर्वजों और महान भारतीय संस्कृति का त्योहार है. नहीं खेलेंगे तो हम जन्नत में जाकर अपने पूर्वजों को क्या जबाव देंगे.
हमने अपना वतन नहीं बदला
हम न अरबी हैं, न ईरानी और न तुर्की. इसलिए हम उनकी संस्कृति किसी कीमत पर नहीं मानेंगे. यहां जिसको जैसे रहना है, वो खुद तय कर लेगा. इनकी वजह से कई देश बर्बाद हो गए. अब इनके बहिष्कार का समय आ गया है. होली, दिवाली तो हम मनाएंगे ही. जब हम अपना वतन नहीं बदल पाए, अपने पूर्वज नहीं बदल पाए, अपना खून नहीं बदल पाए तो त्योहार मनाने के लिए किसी के सलाह की जरूरत नहीं. हम प्रेम और खुशियांबांटना चाहते हैं.