आजकल यह आम चलन बन चुका है कि पत्रकार और पत्रकारिता संस्थानों के कर्मचारी अपने वाहनों, बाइकों और कारों पर “प्रेस” (PRESS) स्टिकर लगाकर चलते हैं. केवल वे ही नहीं, बल्कि पुलिस, आर्मी, एडवोकेट, और विभिन्न राजनीतिक दल, संगठन या संस्थान भी अपने वाहनों पर ऐसे स्टिकर या डिस्प्ले बोर्ड लगाते हैं. इस तरह के स्टिकर लगाने की मंशा केवल एक ही होती है – अतिरिक्त छूट या लाभ प्राप्त करना. उदाहरण स्वरूप, ट्रैफिक पुलिस या नाका चेकिंग वाली पुलिस अक्सर ऐसे वाहनों को बिना किसी पूछताछ या जांच के छोड़ देती है.
कभी-कभी यदि जांच की भी जाती है और वाहन चालक कागजात की कमी या नियमों के उल्लंघन के दोषी पाए जाते हैं, तो भी उनका चालान नहीं कटता, जुर्माना नहीं लगता और रिश्वत भी नहीं देनी पड़ती. इसके अलावा, ऐसे वाहनों को पार्किंग फीस से भी राहत मिल जाती है और वे आसानी से सुरक्षित, रिजर्व्ड या प्रतिबंधित क्षेत्र में पार्क कर सकते हैं। यह एक तरह से विशेषाधिकार का मामला बन जाता है.
तो सवाल यह उठता है कि क्या यह सब कुछ नियमानुसार है?
उत्तर सीधे और स्पष्ट है कि मोटर वाहन अधिनियम (Motor Vehicle Act) के नियमों के अनुसार, वाहन की पंजीकरण नंबर प्लेट पर किसी भी प्रकार के स्टिकर चिपकाने की अनुमति नहीं है, चाहे वह प्रेस, पुलिस, सेना या किसी भी अन्य संगठन का हो. एक जनहित याचिका मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने भी यह स्पष्ट किया है कि वाहनों पर पदनाम, संगठन, संस्थान या अन्य किसी प्रकार के स्टिकर, झंडे या बोर्ड लगाना कानून द्वारा स्वीकृत नहीं है, इसलिए यह अवैध हैं.
कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी को भी कानून का उल्लंघन करने या अनुशासनहीनता करने का कोई अधिकार नहीं है. मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 177 के तहत यह स्पष्ट रूप से वाहन पर किसी भी प्रकार के स्टिकर का उपयोग प्रतिबंधित करती है.
इसके अलावा, कुछ समाचार पत्र और पत्रिकाओं द्वारा प्रेस आई-कार्ड की अवैध खरीद-फरोख्त का मामला भी सामने आया है. कई छोटे समाचार पत्र और पत्रिकाएं, जिन्होंने आरएनआई रजिस्ट्रेशन करा रखा है, लोग उन्हें अपना प्रतिनिधि बनाकर प्रेस आई-कार्ड बेचने का काम कर रहे हैं.यह गतिविधि पूरी तरह से अवैध है और इससे मीडिया की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठते हैं. इसलिए, शासन-प्रशासन को सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है और आम समाज को भी इस मुद्दे पर गंभीर होना चाहिए.