प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में स्वच्छता अभियान की शुरुआत की थी. केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सीआर पाटिल का दावा है कि इस अभियान के शुरू होने के बाद से देश में हर परिवार के लगभग 50 हजार रुपये बचे हैं. उन्होंने कहा कि शौचालय के निर्माण की वजह से लोगों के सेहत में काफी अनूकूल प्रभाव पड़ा है. इससे सेहत पर होने वाले खर्चों में कमी आई है.
केंद्रीय शहरी विकास मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि इस बार स्वच्छता अभियान के तहत 2 लाख स्थानों को चिन्हित किया जाएगा. उन्हें स्वच्छ किया जाएगा. इसके लिए चार विभागों शहरी विकास, जलशक्ति, ग्रामीण विकास मंत्रालय को शामिल किया गया है. उन्होंने कहा कि ‘एक पेड़ मां के नाम’ से भी अभियान चलाया जाएगा.
कितना फायदेमंद रहा है यह अभियान?
सीआर पाटिल ने कहा कि डब्ल्यूएचओ के अध्ययन के मुताबिक साल 2014 से 2019 के बीच डायरिया से 3 लाख मौतें टाली गईं. साथ ही गैर-ओडीएफ क्षेत्रों में बच्चों में कुपोषण के मामले 58 प्रतिशत अधिक पाए गए. यूनिसेफ के अध्ययन के मुताबिक, 93 प्रतिशत महिलाओं ने इस अभियान के बाद से सुरक्षित महसूस करने की बात कही है. साथ ही आम लोगों द्वारा भूजल संदूषण की संभावना 12.70 गुना कम हुई है. साथ ही कुछ संस्थाओं की ओर से इस बात का भी दावा किया गया है कि प्रतिवर्ष 60 हजार से 70 हजार बच्चों की मृत्यु टाली गई है.
कितने शौचालय बने?
केंद्रीय शहरी विकास मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि पांच साल में 100 करोड़ से अधिक व्यक्तिगत घरेलू शौचालय बनाए गए हैं. उन्होंने कहा कि स्वच्छता कवरेज 2014 में 39 प्रतिशत से बढ़कर 2019 में 100 प्रतिशत हो गया. इस बीच 6 लाख गांवों को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया गया. स्वच्छता ही सेवा को 10 साल पूरे होने जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि देश में 49 प्रतिशत से अधिक गांव ऐसे हैं जो ओडीएफ प्लस की श्रेणी में आ चुके हैं.
इंदौर अब नहीं होगा सबसे स्वच्छ शहर!
सुनने में यह अजीब लगे लेकिन केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने स्वच्छ शहरों को लेकर नया फॉर्मूला बनाया है. मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि पिछले 10 साल से स्वच्छता में अव्वल आने वाले शहरों को गोल्डेन सिटी क्लब में शामिल जाएगा. इसका मतलब यह है कि स्वच्छता सर्वे में गोल्डेन सिटी में शामिल शहर पहले दूसरे पायदान में नहीं रहेंगे. इसका फायदा यह होगा कि नए शहरों को स्वच्छता रैंकिंग में पहले पायदान पर आने का मौका मिलेगा.