1820 में अंग्रेजों ने बनाई थी अफीम फैक्ट्री, आज भी जस की तस; आखिर अब क्यों हो रही है चर्चा?

1820 में अंग्रेजों ने गाजीपुर में अफीम फैक्ट्री की नींव डाली थी जो अब करीब 200 साल की हो चुकी है. यह फैक्ट्री गंगा के किनारे होने के कारण अब तक न जाने कितनी बार बाढ़ का सितम सह चुकी है. अब तक इसके दीवारों को सुरक्षित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया लेकिन अब पहली बार इसकी दीवारों की सुरक्षा को लेकर बोल्डर और पिचिंग का कार्य शुरू किया गया है. जिसके लिए करीब 8 करोड रुपए खर्च किए जाने की योजना है.

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गाजीपुर का अफीम एवं क्षारोद कारखाना जो अंग्रेजी हुकूमत में अंग्रेजों ने व्यवसाय के मद्देनजर गंगा किनारे बनवाया था, के लिए गाजीपुर के नगसर इलाके के कई गांव में अफीम की खेती की जाती थी. उस अफीम को गंगा के रास्ते अफीम फैक्ट्री तक लाकर इसका ट्रीटमेंट कर दवा के बनाकर विदेश में भेजा जाता था. अंग्रेजी शासन खत्म हुआ लेकिन अंग्रेजों के द्वारा बनाया गया कारखाना आज भी लगातार चल रहा है. जो वित्त मंत्रालय भारत सरकार की देखरेख में चलता है. यहां पर दवा के उपयोग के लिए कच्चे अफीम का ट्रीटमेंट कर दवा योग्य बनाया जाता है. फिर इसे विदेश में या फिर देश के कुछ अन्य दवा कंपनियों को भेजा जाता है.

200 साल पहले बनी फैक्ट्री

बात करें अफीम फैक्ट्री के निर्माण की तो यह फैक्ट्री 1820 में अंग्रेजी हुकूमत में बनाई गई थी. जानकार बताते हैं कि उस वक्त यातायात के लिए एकमात्र साधन गंगा नदी या फिर छोटी लाइन की रेल मार्ग हुआ करती थी. अंग्रेजों ने इसी का लाभ उठाया और गंगा के किनारे इस अफीम के कारखाने को स्थापित कराया था. जो एशिया का सबसे बड़ा अफीम कारखाना भी कहा जाता है. हालांकि अब गाजीपुर में अफीम की खेती नहीं होती. मध्य प्रदेश के नीमच या अन्य जगह से कच्ची अफीम रेल के माध्यम से यहां लाई जाती है और फिर उसका यहां पर ट्रीटमेंट कर दवा योग्य बनाया जाता है.

इन 200 सालों में न जाने कितनी बार बाढ़ आई और चली गई लेकिन अंग्रेजों की बनाई हुई दीवार आज भी गंगा के थपेड़े को सहती चली आ रही है. अब सिंचाई विभाग ने इन दीवारों की मजबूती के लिए बोल्डर पिचिंग का कार्य करने के साथ ही साथ इसके दीवार के पास एक गंगा घाट भी बनाने का कार्य कर रही है जो करीब 60 से 65 फीट चौड़ा हो सकता है.

इस संबंध में सिंचाई विभाग के अधिशासी अधिकारी राजेंद्र प्रसाद से बात की गई तो उन्होंने बताया कि फैक्ट्री के पीछे की दीवार की लंबाई करीब 575 मीटर है. इसके आसपास ददरी घाट से लेकर शिव मंदिर तक का इलाके में विभाग की तरफ से बोल्डर और पिचिंग का काम करावाया जा रहा है. जिससे कि आने वाले दिनों में अफीम फैक्ट्री की दीवारों को कोई नुकसान न पहुंके. इस कार्य में लॉन्चिंग अप्रोच और पत्थर पिचिंग का कार्य ठेकेदार के माध्यम से किया जा रहा है.

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