बैतूल जिले में नाबालिग बच्चियों और अविवाहित युवतियों का बलपूर्वक या बहला-फुसला कर किस प्रकार शारीरिक शोषण किया जा रहा है, इसका अंदाजा प्रसव करवाने जिला अस्पताल पहुंचने वाली नाबालिगों और अविवाहित युवतियों की संख्या को देखकर लगाया जा सकता है. साल 2024 के आठ महीनों में अभी तक अकेले जिला अस्पताल में ही 114 नाबालिग या अविवाहित युवतियां डिलीवरी करवाने भर्ती हुई हैं. ये आंकड़े अकेले जिला अस्पताल के हैं. इसके अलावा जिले में एक सिविल अस्पताल, नौ सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, 39 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में 48 स्थानों पर भी प्रसव होता है. अगर इन सभी 48 प्रसव केन्द्रों के साथ प्रायवेट अस्पतालों में इस तरह के डिलीवरी की जानकारी जुटाई जाए….. तो यह आंकड़ा कहां पहुंचेगा ? इसकी कल्पना मात्र ही की जा सकती है.
बहला-फुसला कर हवस का शिकार
बढ़ते आंकड़ों पर ASP कमला जोशी कहती हैं कि कुछ मामले ऐसे होते हैं जिसमें बच्चियों को बहला-फुसलाकर ले जाया जाता है. जब हमें लड़की मिलती है, तो वह प्रेग्नेंट होती है. इसके अलावा अविवाहित युवतियां लिव-इन रिलेशनशिप में रहती हैं. ऐसे में वह भी प्रेग्नेंसी के बाद मामला दर्ज करवाती हैं. दूसरा, बैतूल जिला आदिवासी बाहुल्य है, यहां से बड़ी संख्या में नाबालिग बच्चियों के जाने के मामले सामने आए हैं.
नज़दीकी रिश्तों में भी बलात्कार
समाज सेविका मीरा एंथोनी की माने तो आज जो नाबालिगों के आंकड़े हम देख रहे हैं, यह भयावह हैं. यह हम सबको एक चिंता में डाल रहा है कि हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है और हम कैसे इसमें सुधार ला सकते हैं. मैंने ज़मीनी हकीकत भी देखी है, जहां पिता की ही हवस का शिकार हो गई बेटी. इनका कहना है कि नज़दीकी रिश्ते ही बच्चियों को कलंकित कर रहे हैं.
चमकीली ज़िंदगी की तरफ खिंचाव
एक कारण और है कि गांव के इलाके की लड़कियां 10वीं के बाद शहर आ जाती हैं…. होस्टल में रहती हैं. होस्टल में उन्हें गांव से अलग एक चमकीला वातावरण मिलता है, जिसमें वह बहक जाती हैं. इनका भी मानना है कि सबके पास मोबाइल है और मोबाइल से शोषण की शुरुआत होती है. मीरा एंथोनी कहती हैं कि जितने भी सरकारी अवेयरनेस के कार्यक्रम चल रहे हैं, वे सब कागज़ों तक ही सीमित हैं.
मोबाइल पर 18+ कंटेंट भी ज़िम्मेदार
डॉक्टर ईशा डेनियल के मुताबिक, सरकारी अस्पताल में जो आंकड़े बढ़े हैं, उसके पीछे इंटरनेट एक बड़ी वजह है क्योंकि हर छोटे बच्चे के हाथ में मोबाइल है और एक कारण OTT प्लेटफार्म भी है. इन सोशल साइट्स पर कुछ भी प्रतिबंधित नहीं है. इस उम्र में बदलाव भी होता है और जानने की चाह भी रहती है, तो यह गलत साइट्स पर जाकर चीज़ें ढूंढते हैं और देखते हैं. उसका असर उनके दिमाग पर पड़ता है. यही कारण है कि इस तरह के केस बढ़ रहे हैं.