राजस्थान में छोटी काशी के नाम से मशहूर जयपुर को जल्द ही आस्था की नई सौगात मिलने जा रही है. गुलाबी नगरी में मोती डूंगरी, गोविंददेव जी समेत कई प्रसिद्ध मंदिरों के बाद अब गुप्त वृंदावन धाम भी जल्द ही श्रद्धालुओं के लिए खुलने जा रहा है. जगतपुरा में हरे कृष्णा मार्ग पर बन रहे गुप्त वृंदावन धाम का 70 फीसदी काम पूरा हो चुका है. यह 17 मंजिला भव्य मंदिर 2027 में जयपुर स्थापना की 300वीं वर्षगांठ के अवसर पूरा होगा. खास बात ये है कि यह राजस्थान का सबसे बड़ा मंदिर और सांस्कृतिक परिसर होगा.
गौरतलब है कि जयपुर को प्राचीन काल से ही गुप्त वृंदावन कहा जाता है, क्योंकि वृंदावन से गोविंददेवजी और गोपीनाथजी की प्रतिमाएं लाई गई थीं, इसलिए 1974 में गुरु भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद ने महावीर प्रसाद जयपुरिया को पत्र लिखा था, जिसमें यहां पर गुप्त वृंदावन बसाने की इच्छा जाहिर की थी. उनकी मनोकामना पर ही जगतपुरा में गुप्त वृंदावन बनाने का काम शुरू किया है.
खास बात यह है कि गुप्त वृंदावन के गर्भ गृह के भीतर जहां ठाकुरजी की प्रतिमाएं स्थापित की जाएंगी. वहां पर ‘श्रीराम’ लिखी हुई 14 हजार ईंटें लगाई जा रही हैं. यह ईंटें विशेष रूप से चाकसू के पास निजी तौर पर तैयार करवाई गई हैं. सात तीर्थों का जल और मिट्टी से गर्भ गृह बनवाया जा रहा है.
6 एकड़ जमीन पर बनकर हो रहा है तैयार
यह मंदिर जगतपुरा में हरे कृष्ण मार्ग पर 6 एकड़ भूमि पर 300 करोड़ की लागत से बनाया जा रहा है. इसका उद्घाटन जयपुर की स्थापना की 300वीं वर्षगांठ के अवसर पर 2027 में किया जाएगा. खास बात यह है कि यह राजस्थान का सबसे बड़ा मंदिर और सांस्कृतिक परिसर होगा.
बलराम संग विराजे राधा- कृष्ण
6 एकड़ भूमि पर बन रहे इस भव्य मंदिर में श्री कृष्ण-बलराम, राधा-श्यामसुंदर और गौरी-निताई की भव्य प्रतिमाएं स्थापित की जाएंगी. साथ ही इस मंदिर में एक विशाल धार्मिक स्थल होगा, जहां हजारों भक्त एक साथ बैठकर भक्ति का आनंद ले सकेंगे. इसमें एक सांस्कृतिक और शैक्षणिक केंद्र भी होगा, जहां भक्तों को कृष्ण लीला एक्सपो, गीता प्रदर्शनी, हरिनाम मंडप और प्रमात्मा हॉल जैसी खास जगहें देखने को मिलेंगी. इसके साथ ही कृष्ण लीला एक्सपो, हरिनाम मंडप और गीता प्रदर्शनी का अनुभव भी मिलेगा.
‘मयूर द्वार’ पर बनेंगे 108 मोर
मंदिर में 6 द्वार होंगे. मयूर द्वार मुख्य होगा. द्वारिका के मंदिरों की तरह इस पर 108 मोर बनाए जाएंगे. दूसरा ‘हंस द्वार’ होगा. जगन्नाथपुरी मंदिर की तरह पूरब और पश्चिम में 2-2 द्वार होंगे, जिन्हें सिंह द्वार, व्याघ्र द्वार, हस्ति द्वार, अश्व द्वार नाम दिए जाएंगे.
शिखर पर होगी कमान छतरी
धाम में राजस्थानी शैली और आधुनिक डिजाइनों से जुड़ा आर्किटेक्चर देखने को मिलेगा, शिखर पर 30 मीटर लंबाई की राजस्थानी आर्किटेक्चर में छतरी बनेगी, दीवारों पर फसाड़ कांच लगेंगे. इस तरह से डिजाइन किया जा रहा है कि गुप्त वृन्दावन धाम हरित स्वर्ग कहलाए. इसीलिए यहां नीम, शीशम, कदम्ब, एलोवेरा, चन्दन, बरगद और अश्वगंधा के वृक्ष लगाए जाएंगे. गुप्त वृन्दावन धाम में आने वाले लोग प्रवेश करने से पहले हरिनाम जप मंडप में 108 बार हरे कृष्ण महामंत्र का जाप कर सकेंगे. आर्किटेक्ट मधु पंडित दास हैं, जिन्होंने विश्व का सबसे बड़ा वृंदावन चंद्रोदय मंदिर भी डिजाइन किया है.
4 हजार भक्त एक साथ कर सकेंगे दर्शन
गुप्त वृंदावन धाम के अध्यक्ष अमितासना दास ने बताया कि हरे कृष्ण मूवमेंट द्वारा निर्माणाधीन गुप्त वृन्दावन धाम में कृष्ण-बलराम, राधा-श्याम सुंदर सुंदर और गौरा-निताई की भव्य मूर्तियां स्थापित की जाएंगी। यहां पर 4 हजार भक्त एक साथ प्रभु के दर्शन कर सकेंगे। धाम के 5वें फ्लोर पर सात्विक रेस्त्रां होगा, जिसमे भक्त और तीर्थयात्री सात्विक भोजन का आनंद ले सकेंगे।
जयपुर को प्राचीन काल से ‘गुप्त वृंदावन’ क्यों कहा जाता है?
भगवान श्री कृष्ण के तीन प्रमुख विग्रह जयपुर और करौली के मंदिरों में प्रतिष्ठित हैं, जिनमें जयपुर में श्री गोविन्द देवजी और श्री गोपीनाथ जी, और करौली में श्री मदन मोहन जी का विग्रह शामिल हैं. इन विग्रहों का संबंध श्री कृष्ण के स्वरूप से है, जो पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के मुख, वक्षस्थल, बाहु और चरणों से मेल खाते हैं. ये विग्रह विशेष रूप से वृंदावन से लाए गए थे.
इन विग्रहों का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने किया था, जिन्होंने इनका निर्माण कराने के बाद तीन बार इन विग्रहों को सुधारने की कोशिश की. पहले विग्रह में भगवान के चरण ठीक थे, दूसरे में वक्षस्थल और बाहु, और तीसरे में नयनाभिराम मुखारबिंदू भगवान के समान था.
इतिहास में इन विग्रहों का सुरक्षा और पुनर्स्थापन भी महत्वपूर्ण है. मुगलों के आक्रमणों से बचाने के लिए इन्हें छिपाया गया था. 16वीं सदी में चैतन्य महाप्रभु के शिष्यों ने इन्हें फिर से खोजकर स्थापित किया. बाद में, राजा मानसिंह और मिर्जा जयसिंह के संरक्षण में इन विग्रहों को जयपुर और करौली में स्थापित किया गया. आज ये विग्रह जयपुर के सूर्य महल और करौली के राजभवन में विराजमान हैं, जहां इनकी पूजा अर्चना जारी है, और ये भगवान श्री कृष्ण के प्रति श्रद्धा
और आस्था का प्रतीक बने हुए हैं.