धर्मधानी उज्जैन में महालय श्राद्धपक्ष के पहले ही दिन रविवार को देशभर से आए हजारों श्रद्धालुओं ने रामघाट, सिद्धवट तथा गयाकोठा पर पितृकर्म किए। गयाकोठा स्थित सप्तऋषि मंदिर में दुग्धाभिषेक के लिए सुबह से दोपहर तक करीब एक किलोमीटर लंबी कतार लगी रही। तीर्थों पर पहले दिन प्रशासनिक व्यवस्था भी नजर आई।
गयाकोठा पर प्राचीन ऋषि तलाई की सफाई कराकर शुद्ध जल प्रवाहित किया गया। तीर्थों की दुर्दशा को लेकर लगातार प्रकाशित किए जा रहे थे, इसके बाद प्रशासन जागा और तीर्थ पर श्रद्धालुओं की सुविधा के इंतजाम कराए।
स्कंद पुराण के अवंतिखंड में उज्जैन में पितृकर्म का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है उज्जैन में सिद्धवट, रामघाट व गयाकोठा तीर्थ पर पितरों का र्तपण, पिंडदान करने से पितृ तृप्त होते हैं तथा उन्हें सद्गति की प्राप्त होती है। धर्मशास्त्र की मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम ने भी वनवास के दौरान उज्जैन आने पर मोक्षदायिनी शिप्रा के रामघाट पर पिशाचमोचन तीर्थ के निकट अपने पिता दशरथ के लिए भी तर्पण पिंडदान किया था।
गयाकोठा तीर्थ की विशेष महिमा
इसी कारण शिप्रा के इस घाट का नाम रामघाट पड़ा। शिप्रा का सिद्धवट घाट प्रेतशिला व शक्तिभेद तीर्थ के नाम से विख्यात है। यहां पितरों का श्राद्ध करने से वे शीघ्र तृप्त होतें हैं तथा उन्हें आदित्य लोक की प्राप्ति होती है। गयाकोठा तीर्थ की अपनी विशिष्ट महिमा है।
यहां ऋषि तलाई में फल्गुन नदी का गुप्त प्राकट्य माना गया है। इस स्थान पर सप्तऋषियों की साक्षी में पितरों का श्राद्ध करने से बिहार के बोद्ध गया में श्राद्ध करने का पुण्य फल प्राप्त होता है। पितृ प्रसन्न होकर अपने वंशजों को सुख, समृद्धि तथा वंशवृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। महालय श्राद्धपक्ष पक्ष में प्रतिदिन हजारों भक्त तीर्थ त्रिवेणी पर अपने पितरों का श्राद्ध करने आएंगे।