सोनभद्र : कोन वन रेंज में इन दिनों ‘जंगलराज’ नहीं, बल्कि ‘भ्रष्टाचारराज’ का बोलबाला है. वन माफियाओं के हौसले इतने बुलंद हैं कि वन विभाग या तो ‘आंखें मूंदे’ बैठा है, या फिर उनकी ‘मिलीभगत’ से ही ये सब ‘खेल’ चल रहा है.
‘चांचीकला’ में ‘चाचा’ बने ‘कब्जाधारी’
ताज़ा मामला कोन वन रेंज के चांचीकला/नरहटी का है, जहाँ ‘स्थानीय कर्मचारियों’ की ‘कृपा’ से लोग वन भूमि पर ‘महल’ बना रहे हैं. अंगद, प्रदीप, मानिकचंद, इंद्रदेव, विनोद, नंदलाल जैसे स्थानीय निवासियों ने तो यहाँ तक आरोप लगा दिया है कि कर्मचारी ‘हरे-भरे’ पेड़ों का ‘कत्लेआम’ करवाकर ‘धन उगाही’ कर रहे हैं.
‘शिकायत’ बनी ‘शिकायत-पत्र’
शिकायतकर्ता बार-बार विभाग को ‘गुहार’ लगा रहे हैं, लेकिन ‘वन देवता’ तो ‘मौन’ धारण किए बैठे हैं, नाम न छापने की शर्त पर कुछ लोगों ने बताया कि वन माफियाओं के सामने विभाग ‘घुटने टेक’ चुका है. वन भूमि पर ‘अवैध खनन’, ‘कीमती पेड़ों की कटाई’ और ‘बबूल के नाम पर सागौन की तस्करी’ जैसे ‘धंधे’ खूब फल-फूल रहे हैं.
‘लिखित शिकायत’ और ‘घर बैठे जांच’
वन रेंज के कोन, बागेसोती, भालुकुदर, हर्रा जैसे इलाकों में भी ‘कब्जे’ जारी हैं. विभाग ‘शिकायतकर्ताओं’ को ‘लिखित शिकायत’ का ‘लॉलीपॉप’ थमा देता है. और जब ‘लिखित शिकायत’ होती है, तो ‘जांच अधिकारी’ घर बैठे-बैठे ‘माफियाओं’ के ‘पक्ष’ में ‘रिपोर्ट’ तैयार कर देते हैं.
‘मुख्यमंत्री’ की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति ‘फेल’
सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि विभाग इन ‘माफियाओं’ पर ‘कार्रवाई’ क्यों नहीं करता? जबकि मुख्यमंत्री जी ने ‘भ्रष्टाचारियों’ को ‘मिट्टी में मिलाने’ का ‘संकल्प’ लिया है. कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति यहाँ ‘फेल’ हो रही है.
अधिकारी’ बने ‘मूक दर्शक’
जब इस बारे में ‘प्रभागीय वनाधिकारी’ से बात की गई, तो उन्होंने ‘क्षेत्रीय वनाधिकारी’ से संपर्क करने को कहा। लेकिन ‘क्षेत्रीय वनाधिकारी’ जी का ‘मोबाइल’ तो ‘पहुंच से बाहर’ था.
अब देखना यह है कि ‘प्रभागीय वनाधिकारी’ जी का ‘कार्रवाई’ का ‘आश्वासन’ सिर्फ ‘कागज़ों’ तक ही सीमित रहता है, या फिर ‘जंगल’ में भी कुछ ‘हरकत’ होती है.