गर्मी में गंगा ग्लेशियर से नहीं बल्कि भूजल से बहती है… IIT की स्टडी

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने हाल ही पर्यावरण मंत्रालय और अन्य विभागों से पूछा कि गर्मियों में गंगा नदी के प्रवाह को बनाए रखने में भूजल की क्या भूमिका है. यह सवाल आईआईटी रुड़की के एक नए अध्ययन पर आधारित है, जिसमें पाया गया कि गर्मी में गंगा का प्रवाह ग्लेशियरों के पिघलने से नहीं, बल्कि भूजल से चलता है. एनजीटी ने इस मामले में 10 नवंबर 2025 को अगली सुनवाई तय की है.

एनजीटी का कदम और निर्देश

एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव ने इस मुद्दे को 1 अगस्त 2025 को छपी एक खबर के आधार पर स्वतः संज्ञान में लिया. खबर में आईआईटी रुड़की के अध्ययन का हवाला था, जिसने गंगा के प्रवाह पर नई रोशनी डाली. एनजीटी ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, जल संसाधन विभाग, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन और केंद्रीय भूजल बोर्ड को निर्देश दिया कि वे 3 नवंबर तक अपनी रिपोर्ट जमा करें. अगर कोई विभाग सीधे रिपोर्ट देता है, तो उनके अधिकारी को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई में शामिल होना होगा.

आईआईटी रुड़की का अध्ययन: भूजल है गंगा की रीढ़

आईआईटी रुड़की के अर्थ विज्ञान विभाग के प्रोफेसर अभयानंद सिंह मौर्य के नेतृत्व में हुआ यह अध्ययन गंगा और उसकी सहायक नदियों के आइसोटोप विश्लेषण पर आधारित है. इसे हाइड्रोलॉजिकल प्रोसेसेज जर्नल में प्रकाशित किया गया. यह पहला ऐसा अध्ययन है, जिसमें गंगा के हिमालय से लेकर डेल्टा तक के प्रवाह का पूरा वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया. मुख्य निष्कर्ष इस प्रकार हैं…

  • ग्लेशियरों का योगदान कम: हिमालय से निकलने के बाद गंगा के मैदानी इलाकों में ग्लेशियरों का पानी लगभग नगण्य है. हिमालय की तलहटी से पटना तक गंगा का प्रवाह भूजल पर निर्भर है.
  • भूजल की ताकत: भूजल के रिसाव से गंगा की जलधारा मैदानों में 120% तक बढ़ जाती है, जो नदी को जीवित रखता है.
  • वाष्पीकरण की समस्या: गर्मियों में गंगा का 58% पानी वाष्पीकरण से खत्म हो जाता है, जो एक बड़ी चुनौती है.
  • स्थिर एक्वीफर: उत्तरी भारत में भूजल संकट की बात होती है, लेकिन दो दशकों के फील्ड डेटा से पता चलता है कि गंगा के मध्य मैदानी क्षेत्रों में एक्वीफर स्थिर हैं, जो हैंडपंपों से लगातार पानी दे रहे हैं.
  • गंगा के सूखने का कारण: अध्ययन में कहा गया कि गंगा का सूखना भूजल की कमी से नहीं, बल्कि अत्यधिक निकासी, सहायक नदियों की उपेक्षा और बैराजों से पानी की अधिक रोक से हो रहा है.

Ganga Glacier Groundwater IIT NGT

गंगा संरक्षण के लिए नया दृष्टिकोण

यह अध्ययन गंगा को बचाने के लिए चल रहे प्रयासों, जैसे नमामी गंगे और जल शक्ति अभियान के लिए गेम-चेंजर है. पहले माना जाता था कि ग्लेशियर गंगा का मुख्य स्रोत हैं, लेकिन अब साफ है कि भूजल ही गर्मियों में नदी की जान है. विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि…

  • बैराजों से पर्याप्त पानी छोड़ना होगा.
  • सहायक नदियों को पुनर्जनन करना जरूरी है.
  • भूजल रिचार्ज और एक्वीफर प्रबंधन पर ध्यान देना होगा.
  • आर्द्रभूमियों (वेटलैंड्स) की बहाली से गंगा को सहारा मिलेगा.

गंगा की चुनौतियां

गंगा भारत की सांस्कृतिक और आर्थिक धरोहर है, लेकिन प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और अत्यधिक दोहन से इसका अस्तित्व खतरे में है. नमामी गंगे मिशन के तहत 2026 तक 7000 MLD सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स का लक्ष्य है, लेकिन भूजल प्रबंधन पर और काम चाहिए. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, गंगा के कई हिस्सों में जैविक प्रदूषण का स्तर सुरक्षित सीमा से ज्यादा है.

Ganga Glacier Groundwater IIT NGT

एनजीटी का यह कदम और आईआईटी रुड़की का अध्ययन गंगा संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम है. भूजल को गंगा की रीढ़ मानकर नीतियां बनानी होंगी. 10 नवंबर की सुनवाई में विभागों की रिपोर्ट से इस मुद्दे पर नई रणनीति बन सकती है. गंगा को बचाना केवल पर्यावरण की जरूरत नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और आर्थिक जिम्मेदारी, ताकि यह पवित्र नदी आने वाली पीढ़ियों के लिए बनी रहे.

 

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