खान आशु/ भोपाल। कांग्रेस आलाकमान ने तमाम विरोध और नाराजगियां झेलकर प्रदेश टीम में जो बदलाव किए थे, अब उनकी तुलाई का मौका सामने है. चुनाव में अपना लचर प्रदर्शन दिखाने वाली प्रदेश कांग्रेस टीम विधानसभा सत्र में क्या रुख अपनाती है, अब इस पर तीखी नजर गढ़ी हुई है. नेताओं की तुलाई में महज पीसीसी चीफ ही नहीं, बल्कि कुछ और नेता भी चढ़ने वाले हैं.
विधानसभा चुनाव तक जारी पीसीसी व्यवस्था में प्रदेश में कांग्रेस के हाथ आई हार के बाद बदलाव किए गए थे. बुजुर्ग होते जा रहे पूर्व पीसीसी चीफ को रिप्लेस कर कांग्रेस आला कमान ने युवा जीतू पटवारी पर भरोसा जताया था. उम्मीद थी कि इस बदलाव से प्रदेश कांग्रेस में जोश भी आएगा और कार्यकर्ताओं को उत्साह भी मिलेगा. लेकिन 6 महीने की भागदौड़ के बाद भी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के हिस्से खाली हाथ ही आए. हालांकि जीतू को बल देने वाले उनके साथियों ने तैयारियों के लिए मिले समय को बहुत कम करार देते हुए उनका बचाव कर लिया.
World War 3 will be for language, not land! pic.twitter.com/0LYWoI3K0r
— India 2047 (@India2047in) July 4, 2025
चर्चा इस्तीफे की भी उठी
लोकसभा चुनाव में मिली करारी मात के बाद कांग्रेस के ही एक धड़े ने जीतू के नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिए थे. चर्चा यहां तक भी पहुंची कि दिल्ली में आला नेताओं की बैठक के दौरान जीतू पटवारी पीसीसी चीफ पद से इस्तीफा दे देंगे. खबरों में इसकी प्रबल संभावनाएं भी उकेरी गईं लेकिन बाद में सब कुछ सामान्य होता गया.
अब विपक्ष के रुख पर नजर
नर्सिंग घोटाला, NEET, पेपर लीक, मंहगाई से लेकर बिगड़ी कानून व्यवस्था जैसे दर्जनों मुद्दों के साथ मप्र विधानसभा का मानसून सत्र शुरू हो रहा है.ऐसे में प्रदेश कांग्रेस की युवा टोली कितनी विपक्षीय भूमिका निभा पाएगी, इस पर सबकी नजर है. विधायक और मंत्री रहते हुए छोटी छोटी बातों पर बड़े प्रदर्शन के माहिर रहे जीतू पटवारी पीसीसी चीफ की भूमिका में कितनी दमदारी से विधानसभा में पेश आते हैं, इसका इंतजार भी जन से लेकर आला कमान तक को है.
परीक्षा इनकी भी
जीतू पटवारी के हाथ मजबूत करने के लिए प्रदेश में जुटाई गई युवा टीम से भी इस सत्र में उम्मीदें लगाई जा रही हैं. नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंधार और उप नेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे की योग्यता, सामर्थ्य और ताकत का अंदाज भी इसी विधानसभा सत्र में लगाया जाना है. हालांकि नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंधार नर्सिंग घोटाले को लेकर पिछले कई दिनों से मैदान में हैं.लेकिन सदन के भीतर उनका जोश और उत्साह किस हद तक जाता है, यह सत्र शुरू होने पर ही नजर आएगा.
बुजुर्ग नेताओं की विपरीत नीति
जहां विपक्ष से उम्मीद की जा रही है कि वह सड़कों पर उतर कर विभिन्न मुद्दों पर सरकार की घेराबंदी करें, वहीं कांग्रेस के बुजुर्ग नेता सड़कों पर जाने की बजाए संघ की तर्ज पर घर घर जाकर लोगों के मन में जगह बनाने की समझाइश देते नजर आ रहे हैं.