मध्यप्रदेश : विदिशा जिले में दशहरा पर्व को अलग अलग रूपों में मनाने की परंपरा है,कही रावण को जलाने पर पाबंदी और पूजा करने की परंपरा है,तो कही होता है पत्थरो से राम रावण युद्ध.विदिशा जिले के ग्राम काला देव में दशहरे के अवसर पर राम रावण युद्ध की परंपरा है .रावण की सेना राम की सेना पर गोपन से पत्थर बरसाती है.
राम रावण के इस युद्ध में खास बात यह कि राम की सेना को रावण की सेना द्वारा बरसाए पत्थर नही लगते,कहते हैं यहां अच्छे अच्छे निशानेबाजों की एक नही चलती,अच्छे से अच्छे गोपन चलाने वाले निशानेबाज कालादेव में असहाय नजर आते हैं.
World War 3 will be for language, not land! pic.twitter.com/0LYWoI3K0r
— India 2047 (@India2047in) July 4, 2025
यहां बंदूक से भी अचूक गोपन से निशाना लगाने वाले भील तथा बंजारा समाज के लोग रावण की सेना बनते हैं तथा ग्राम कालादेव के निवासी राम की सेना बनते हैं.इस युद्ध के दौरान रावण की सेना द्वारा मारा गया पत्थर अपनी दिशा बदल लेता है.और किसी भी राम की सेना में शामिल लोगो नही लगता है.
विदिशा जिले में लटेरी तहसील के ग्राम कालादेव में मनाए जाने वाले इस आयोजन में दशानन रावण को जलाया नहीं जाता, ग्राम कालादेव गांव में हर वर्ष दशहरे पर एक ऐसा आयोजन होता है जिसे लोग चमत्कार मानते हैं. इस गांव में रावण की एक विशालकाय प्रतिमा स्थित है।इसके सामने एक ध्वज लगाया जाता है. यह ध्वजा राम तथा रावण के युद्ध का प्रतीक होती है, राम की सेना ध्वज की परिक्रमा लगाती है , तो दूसरी ओर रावण की सेना पत्थर बरसाती है.
इस युद्ध के दौरान एक तरफ कालादेव के लोग रामदल के रूप में आगे बढ़ते परिक्रमा लागाते हुए इस ध्वजा को छूने का प्रयास करते हैं, तो वहीं दूसरी ओर रावण दल के लोग उन पर गोफन से पत्थरों की बरसात करते हैं.
लेकिन चमत्कार की बात यह कि, गोफन से निकले यह पत्थर रामादल के लोगों को नहीं लगते,बल्कि मैदान से अपनी दिशा बदलकर निकल जाते हैं.मध्य प्रदेश के कालादेव मे इस तरह के दशहरे की यह परम्परा कब से चली आ रही है इसके बारे में कोई नहीं जानता. मान्यता यह है कि पत्थरों की इस बौछार में रामादल का कोई भी व्यक्ति घायल नहीं होता.सदियों पुरानी इस परम्परा में रावण की सेना का प्रतिनिधित्व आसपास के आदिवासी और बंजारा समाज के लोग करते हैं .
आयोजन के प्रारम्भ होने के पहले ही रावण की प्रतिमा के पास आदिवासियों द्वारा पत्थरों का ढेर लगाकर अपनी गोफन तैयार कर ली जाती हैं.पत्थरों के इस हमले में रामादल का कोई भी व्यक्ति घायल नही होता और वे राम की जय जयकार कर अपने स्थान पर पहुंच जाते हैं.
भारत में दशहरा मनाने की लगभग एक जैसी परम्परा है. इसमें बुराईयों के प्रतीक रावण का दहन किया जाता है. लेकिन कालादेव में अनूठे ढंग से यह त्यौहार मनाने की परम्परा है. इस गांव में रावण की एक विशाल स्थाई प्रतिमा दशहरा मैदान में स्थित है. जिसके समक्ष राम और रावण के दलो में युद्ध होता है. राम दल के विजयी होने पर हजारों की संख्या में उपस्थित लोग जीत का जश्र मनाते है और एक दूसरे को दशहरा की बधाई देते है.