भारत में छात्रों के आत्महत्या के मामले एक गंभीर चिंता का विषय बनते जा रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के 2022 के आंकड़े बताते हैं कि देश में कुल आत्महत्याओं का 7.6 प्रतिशत हिस्सा छात्रों का था। हालांकि 2021 में यह आंकड़ा 8 प्रतिशत था, मगर मामूली गिरावट के बावजूद इन मामलों की संख्या चिंताजनक बनी हुई है।
हर साल बढ़ रहा आत्महत्या का ट्रेंड
2021 में जहां 13,089 छात्रों ने आत्महत्या की, वहीं 2022 में यह आंकड़ा 13,044 रहा। 2013 की तुलना में यह संख्या लगभग दोगुनी हो गई है। 2013 में 6,654 छात्रों ने आत्महत्या की थी। यह एक दशक में 64 फीसदी की वृद्धि दर्शाता है। छात्र आत्महत्याएं हर साल औसतन 4 प्रतिशत की दर से बढ़ रही हैं, जो कुल आत्महत्याओं के 2 प्रतिशत के मुकाबले दोगुनी है।
तीन राज्यों में सबसे ज्यादा मामले
2022 में करीब एक-तिहाई छात्र आत्महत्याएं केवल महाराष्ट्र (1,764), तमिलनाडु (1,416) और मध्य प्रदेश (1,340) में हुईं। दक्षिणी राज्यों में कुल मामलों का 29 प्रतिशत हिस्सा था। महिला छात्रों की आत्महत्याओं में भी 7 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।
लैंगिक असमानता और सामाजिक दबाव
आत्महत्या करने वाले छात्रों में 53 प्रतिशत पुरुष थे, लेकिन आंकड़े लैंगिक असंतुलन की ओर भी इशारा करते हैं। दिल्ली के सर्वोदय सह-शिक्षा विद्यालय के प्रधानाचार्य अवधेश कुमार झा ने बताया कि शैक्षणिक दबाव, कड़ी प्रतिस्पर्धा और विफलता का डर छात्रों को मानसिक रूप से कमजोर बना देता है। अंक और सफलता का सामाजिक दबाव छात्रों को तोड़ देता है।
परीक्षा में असफलता से जुड़ी आत्महत्याएं
NCRB के अनुसार, 2022 में नाबालिगों की 1,123 आत्महत्याएं परीक्षा में असफलता से जुड़ी थीं। इसमें महाराष्ट्र (378), मध्य प्रदेश और झारखंड प्रमुख राज्य रहे। बोर्ड परीक्षाएं और प्रतियोगी परीक्षाएं छात्रों के मानसिक संतुलन को गहरा प्रभावित कर रही हैं।
प्रतिष्ठित संस्थानों में भी आत्महत्याएं
IIT और केंद्रीय विश्वविद्यालयों जैसे संस्थानों में भी आत्महत्या के मामले थमे नहीं हैं। 2019 से 2023 के बीच IITs में 98 और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में रैगिंग के चलते 122 मौतें हुई हैं, जो कि संस्थानों के भीतर मानसिक स्वास्थ्य की कमजोर स्थिति की ओर इशारा करती हैं।
मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी पहल
इस स्थिति को गंभीर मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व न्यायाधीश एस. रवींद्र भट की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय कार्यबल गठित किया है, जो छात्रों की मानसिक सुरक्षा के लिए सुधारों की सिफारिश करेगा। राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति (NSPS 2022) का लक्ष्य है कि 2030 तक आत्महत्या दर में 10 फीसदी की कमी लाई जाए।
परामर्श और करियर गाइडेंस को पाठ्यक्रम से जोड़ने की जरूरत
IC3 मूवमेंट के संस्थापक गणेश कोहली और स्कूल प्राचार्य अवधेश झा दोनों ने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षण संस्थानों में करियर गाइडेंस और मानसिक परामर्श सेवाएं अनिवार्य की जाएं। निम्हांस के डॉ. वी. सेंथिल कुमार रेड्डी ने कहा कि स्कूलों को छात्रों के लिए ‘सुरक्षित स्थान’ बनाना होगा, जहां वे भावनात्मक रूप से खुलकर बात कर सकें।