आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने मंगलवार को कहा कि भारत के पास अपनी ‘प्राण शक्ति’ है, लेकिन यह कई लोगों को दिखाई नहीं देती है, क्योंकि उनकी चेतना में 500 साल के संस्कार गहराई से समाए हुए हैं. एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि यह भारत की ‘प्राण शक्ति’ है, जो दुनिया के किसी भी हिस्से में संकट आने पर मदद के लिए दौड़ने के लिए मजबूर करती है, बिना यह विचार किए कि ऐसी स्थिति का सामना कर रहा देश शत्रुतापूर्ण है या मित्रवत.
उन्होंने लोगों से अपनी और देश की प्राण शक्ति को महसूस करने के लिए भारतीय आध्यात्मिक प्रथाओं का पालन करने का आह्वान करते हुए कहा, “भारत के पास भी एक प्राण शक्ति है, जो हमारी आंखों के सामने है, लेकिन यह दिखाई नहीं देती है.
भागवत ने इस साल 22 जनवरी को अयोध्या में हुए राम मंदिर के अभिषेक का परोक्ष संदर्भ देते हुए कहा, “भारत की प्राण शक्ति आम आदमी और छोटी-छोटी चीजों में दिखाई देती है. यह 22 जनवरी को आश्चर्यजनक रूप से प्रकट हुई.”
बता दें कि यह कार्यक्रम दिल्ली विश्वविद्यालय के परिसर में एक पुस्तक बनाएं जीवन प्राणवाण के विमोचन के लिए आयोजित किया गया था, जिसे आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी मुकुल कानिटकर ने लिखा है.
कार्यक्रम के आयोजक के अनुसार, यह पुस्तक पाठकों को भारतीय परंपराओं के वैज्ञानिक और दार्शनिक आधारों को जानने की यात्रा पर ले जाती है. यह जीवन, विचार और क्रिया के गहन अंतर्संबंधों पर प्रकाश डालती है तथा प्राण को समझने के महत्व पर जोर देती है – वह जीवन शक्ति जो सभी शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक घटनाओं का आधार बनती है.
पुस्तक के प्रकाशन की सराहना करते हुए भागवत ने कहा कि अध्यात्म और विज्ञान के बीच कोई संघर्ष नहीं है. उन्होंने कहा, “जानें और फिर विश्वास करें. अंधविश्वास के लिए कोई जगह नहीं है.”