लोक सभा चुनावों की काउंटिंग का आधा दिन बीत चुका. इतनी देर में चौंकाने वाले उलटफेर की संभावनाएं दिख रही हैं, जो कि एग्जिट पोल्स के दावों से काफी अलग हैं. नाटकीय मोड़ लेते हुए INDI गठबंधन भारत के दो सबसे बड़े और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली राज्यों, यूपी और महाराष्ट्र में आगे हो रहा है. लोकसभा में ये दोनों राज्य कुल 128 सीटें रखते हैं, जो पूरा का पूरा राजनैतिक परिदृश्य बदल सकते हैं.
उत्तर प्रदेश में क्या है स्थिति
इलेक्शन कमीशन के अब तक जारी आंकड़ों के अनुसार, बीजेपी 35 सीटों पर आगे है, जबकि समाजवादी पार्टी को मिलकार INDI अलायंस 41 सीटों पर आगे है. ये 80 सीटों लोकसभा सीटों वाला राज्य है, जहां साल 2019 में हुए चुनावों में भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए ने 62 सीटें जीत ली थीं. सपा को तब केवल 5 सीटें मिल सकीं थीं.
पिछले इलेक्शन में अमेठी से कांग्रेस लीडर राहुल गांधी भाजपा की स्मृति ईरानी से हार गए थे. जबकि इस बार ईरानी कांग्रेस के ही किशोरी लाल शर्मा से पीछे चल रही हैं. कुल मिलाकर, इस बार सपा और कांग्रेस ने हाथ मिलाकर अलग ही स्थिति पैदा कर दी.नब्बे के दशक में सपा के गठन के बाद से यह अब तक का सबसे शानदार प्रदर्शन माना जा रहा है.
यूपी में इस बदलाव के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिनमें से अहम है दो लड़कों यानी राहुल और अखिलेश यादव का गठबंधन. सपा लंबे से यादवों के साथ मुस्लिम वोटरों को भी जोड़े हुए थी. इसका सीधा फायदा दिख रहा है. उत्तर प्रदेश की राजनीति में सामाजिक समीकरण बेहद महत्वपूर्ण माना जाता रहा है. टिकट बंटवारे में सपा और कांग्रेस ने इस बात को बेहद अहम माना. इसके अलावा भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल की छवि बेहतर हुई, जिसका असर भी इन रुझानों में झलक रहा है.
यहां 5 चरणों में चुनाव हुआ, जो अप्रैल से लेकर मई तक चला. ईसी के डेटा के मुताबिक, कांग्रेस 12 सीटों से आगे है. इसके बाद बीजेपी 11 सीटें, शिव सेना (यूबीटी) 11 सीटें, एनसीपी (शरद पवार) 7 सीटें, शिवसेना (एकनाथ शिंदे) 5 सीट्स और एनसीपी (अजित पवार) को एक सीट मिली है. महायुति में बीजेपी समेत अजित पवार को तगड़ा झटका लगा. ये इसलिए भी करारा झटका माना जा रहा है क्योंकि साल 2019 में बीजेपी ने यहां काफी बढ़िया प्रदर्शन करते हुए 23 सीटें जीती थीं, जबकि उसका सहयोगी दल शिव सेना (तब अविभाजित) 18 पर आकर रुका. तत्कालीन अविभाजित राकांपा को चार निर्वाचन क्षेत्र मिले थे, जबकि कांग्रेस सिर्फ एक सीट जीत सकी थी.
लोकसभा में यह यूपी (80 सीट्स) के बाद दूसरा बड़ा निर्वाचन क्षेत्र (48) है. यहां जो बदलेगा, उसका असर केंद्र पर निश्चित तौर पर होगा. या ये भी कह सकते हैं कि इसकी मदद के बगैर सत्ता में आना मुमकिन नहीं.
एक और कारण है जिसके कारण महाराष्ट्र में भाजपा की कमजोर स्थिति चौंका रही है. वहां नितिन गडकरी, नारायण राणे, पीयुष गोयल, कपिल पाटिल, नवनीत राणा, अजीत पवार और उज्ज्वल निकम जैसे कई बड़े नाम थे, जिनसे उम्मीदें थीं.
बीजेपी और गठबंधन को जितनी सीटों पर जीतने की उम्मीद थी, वो पूरी होती नहीं दिख रही. इसमें कई कारण मिल-जुलकर काम कर रहे हैं. इसमें से एक है अजित पवार की आक्रामक रणनीति और भारी चुनाव प्रचार. पवार की एनसीपी ने यहां 10 सीटों पर चुनाव लड़ा था, और लगातार आगे चल रही है. वहीं अजित पवार की एनसीपी ने 4 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन वे केवल नाम के रहे.
कांग्रेस गठबंधन ने की निगेटिव कैंपेनिंग
इसकी एक वजह ये भी हो सकती है कि कम सीटें मिलने के कारण वे धुंधाधार प्रचार नहीं कर सके. दूसरी तरफ शरद पवार के कार्यकर्ता काफी एक्टिव रहे. बीजेपी ने भी उन्हें अपने उम्मीदवारों के लिए बहुत ज्यादा प्रचार करने नहीं दिया क्योंकि इंडिया ब्लॉक ने इस बात का खूब प्रचार किया कि जिस अजित पवार पर भ्रष्टाचार का आरोप था, वो बीजेपी की वॉशिंग मशीन में जाकर साफ हो गए. इसलिए प्रचार हो या फिर लोकप्रियता दोनों मामलों में इस चुनाव मे अजित पवार की तुलना मे शरद पवार ही बाजी मारते दिखे.
शिवसेना और एनसीपी में टूट का नुकसान
लगातार छह महीने चली सुनवाई के बाद चुनाव आयोग ने अजित पवार गुट को असली एनसीपी करार दे दिया. बता दें कि सालभर पहले ही अजित ने बगावत करते हुए एनसीपी दो फाड़ कर दी थी और अपने गुट को असली एनसीपी बताया था. इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष ने भी अजिट गुट को असली एनसीपी करार दे दिया था. इस फैसले को शरद पवार गुट ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. बाद में इलेक्शन कमीशन ने अजित के पक्ष में फैसला दिया, और शरद को अपनी पार्टी को नया नाम देना पड़ा. हालांकि अब जनादेश साफ कर रहा है कि अजित का ये तरीका उसे खास पसंद नहीं आया, खासकर वरिष्ठ नेता के साथ.
शिवसेना यूबीटी के नेता उद्धव ठाकरे को मिली सहानुभूति का का सीधा नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ा. असल में सीएम पद जाने और पार्टी छिनने के बाद भी ठाकरे रुके नहीं, बल्कि आक्रामकता के साथ खुद को पेश किया. शिवसैनिकों के मनोबल को बढ़ाते हुए जंग में उनका पूरा परिवार शामिल हो गया. इससे कमजोर पड़ी पार्टी मजबूत हुई.
आम लोगों से जुड़े मुद्दे भी
खेती से जुड़े कारणों से भी महाराष्ट्र में केंद्र सरकार के खिलाफ गुस्सा रहा. जैसे, एशिया की सबसे बड़ी प्याज मंडी, नासिक के व्यापारी लगातार नाराजगी जताते रहे कि केंद्र ने प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया और इसकी कीमतें काफी अधिक गिर गईं.