इंडियन आर्मी सीमाओं पर खासतौर से पहाड़ी इलाकों पर खच्चरों की मदद से अपना सामान एक से दूसरी जगह पहुंचाती है. अब जानवरों पर निर्भरता कम करने के लिए रोबोटिक खच्चरों (Robotic Mule) का सहारा लिया जाएगा. ये रोबोटिक खच्चर ही फॉर्वर्ड पोस्ट्स पर जवानों के लिए सामान लेकर जाएंगे. ऐसे रोबोटिक खच्चर की क्षमता का वीडियो नीचे यहां देखिए…
इसके अलावा सेना लॉजिस्टिक ड्रोन्स यानी माल ढोने वाले ड्रोन्स खरीदने पर भी विचार कर रही है. ताकि सुदूर इलाकों में आने-जाने की लागत कम हो. साथ ही जल्दी से सामान पहुंच जाए. पहाड़ी इलाकों में सेना जानवरों से ट्रांसपोर्ट कराने का काम अब ट्रक्स, ऑल-टरेन व्हीकल्स (ATV) और रग्ड टरेन व्हीकल्स (RTV) से कर रही है.
ऊंचे दुर्गम पहाड़ों पर माल ढोने के लिए खच्चरों ने ऐतिहासिक मदद की है. जैसे-जैसे ढांचागत विकास होता गया, जानवरों के जरिए यातायात में काई आती गई. इनकी जगह ATV और RTV ले रहे हैं. इनसे सामान जल्दी पहुंच जाता है. जानवरों को कोई कष्ट भी नहीं होता. अब मशीनी मालवाहकों में नया नाम जोड़ा जा सकता है.
IISc बेंगलुरु कर रहा है ऐसे रोबोटिक खच्चर बनाने में मदद
रोबोटिक खच्चर किसी भी तरह के ऊंचे-नीचे रास्तों पर चल सकते हैं. 70 से 80 किलोग्राम वजन उठा सकते हैं. बड़े रोबोट्स लिए गए तो उनकी क्षमता ज्यादा होगी. फिलहाल जिस रोबोटिक खच्चर का ट्रायल चल रहा है. वो 70-80 किलोग्राम वजन उठा लेता है. इसे इंडियन इंस्टूट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरू बना रहा था.
पूरी तरह से एडवांस रोबोटिक खच्चर की मांग, जो ऑटोमेटेड हो
इसका प्रोटोटाइप का इस बार गर्मियों में ट्रायल किया गया है. सेना ने पिछले साल जनवरी में 100 रोबोटिक खच्चरों की जरूरत बताई थी. इसके लिए रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (RFP) भी जारी किया था. प्रयास यही है कि ये रोबोटिक खच्चर किसी स्वदेशी कंपनी से लिए जाएं. सेना की मांग है कि रोबोटिक खच्चर ऐसे हों, जो किसी भी तरह के टरेन में चल सकें. जिनमें सेल्फ रिकवरी क्षमता हो. यानी गिरने पर उठकर वापस अपने रस्ते पर चल सकें. साथ ही उनमें किसी भी तरह की बाधा पार करने की ऑटोमैटिक क्षमता हो.
किसी भी तरह के तापमान में काम करने लायक हो रोबोटिक खच्चर
सबसे खास बात ये है कि रोबोटिक खच्चर माइनस 20 डिग्री सेल्सियस से 45 डिग्री सेल्सियस या उससे ऊपर के तापमान पर काम कर सके. कम से कम तीन घंटे तक चलने वाली बैटरी हो. कई देशों में ऊंचाई पर जानवरों की जगह रोबोटिक खच्चरों का इस्तेमाल हो रहा है. ताकि माल ढोने में आसानी हो. सेना को उम्मीद है कि साल 2030 तक जानवरों द्वारा माल ढुलाने का काम 50 से 60 फीसदी तक कम हो जाएगा. लेकिन सीमाओं पर जरूरत रहेगी.
बहुत जल्द सेना के साथ दिखाई देंगे ये माल ढोने वाले रोबोट्स
जानवरों से माल डुलाई का काम कम करने का प्रयास सेना तेजी से कर रही है. जल्द ही सेना के साथ ये रोबोटिक खच्चर दिखाई देंगे. लेकिन पहाड़ों पर असली जानवरों की जरूरत पड़ेगी ही. क्योंकि सिक्किम में जब पिचली बार बादल फटे थे. सड़कें गायब हो गई थीं. खराब मौसम की वजह से हेलिकॉप्टर उड़ नहीं पा रहे थे. तब खच्चरों ने मदद की. मशीनी मदद से सेना एडवांस हो सकती है, लेकिन चरम परिस्थितियों में जानवरों की जरूरत पड़ेगी.