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संसद में गूंजी इंदौर की सतलजी गूंज… सभी को ज्ञान बांटा जा रहा है!

भोपाल। संसदीय कार्यवाहियों के बीच अक्सर शेर ओ शायरी का सहारा लिया जाता रहा है। जहां सत्ताधीश अपनी पार्टी के लिए कसीदे पढ़ने में इसका इस्तेमाल करते आए हैं तो विपक्ष ने इसको सत्ता पक्ष को घेरने का सहारा बनाया है। मौजूदा लोकसभा सत्र के दौरान सदन की दीवारों से फिर एक शेर टकराया। मप्र की धरती से ताल्लुक रखने वाले शायर सतलज राहत द्वारा कहा गया शेर, सभी को ज्ञान बांटा जा रहा है, यह हिंदुस्तान बांटा जा रहा है… देश के मौजूदा हालात पर गहरा कटाक्ष माना जा रहा है। आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने इस शेर को सत्ता पक्ष को घेरने का हथियार बनाया है।

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सतलज राहत का यह शेर कुछ समय पहले उस समय चर्चाओं में आया था, जब लोकसभा चुनाव की आगामी तस्वीर को उकेरने और देखने के लिए एक निजी चैनल ने इंदौर में एक टॉक शो आयोजित किया। एंकर ने जब कार्यक्रम में मौजूद शायर सतलज से आगामी परिदृश्य पर उनके विचार जाने तो उन्होंने अपनी बात की शुरुआत इसी शेर से की। उन्होंने कहा कि सभी को ज्ञान बांटा जा रहा है, अपना हिंदुस्तान बांटा जा रहा है…! शेर कार्यक्रम की सुर्खियों में तो रहा ही, इसको कार्यक्रम में मौजूद लोगों ने खूब सराहा और पसंद भी किया। इसके बाद यह लगातार सोशल मीडिया पर वायरल भी होता रहा।

कांग्रेस ने बनाया हथियार
सतलज के इस शेर को कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में अपना हथियार बना लिया। सोशल मीडिया के अनेक प्लेटफार्म पर यह शेर लहराता रहा। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से लेकर यूथ कांग्रेस और अलग अलग नेताओं ने इसको अपनी टिप्पणी और कमेंट्स के साथ खूब शेयर किया।

पहले राहत ने मचाई थी धूम
दुनिया भर में अपने शेर ओ कलाम और अपने खास अंदाज के लिए पहचाने एवं पसंद किए जाने वाले शायर डॉ राहत इंदौरी का एक शेर, सभी का खून शामिल है, इस मुल्क की मिट्टी में, किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है… भी पिछली लोकसभा में खूब लहराया था। साउथ की एक महिला सांसद द्वारा पढ़ी गई इन लाइनों को उनके गैर हिंदी भाषी होने और खास अंदाज ए बयां की वजह से खूब ट्रोल किया गया था।

राहत बने द्रोणाचार्य, सतलज एकलव्य
महीने के अठाइस दिन मुशायरों में मसरूफ़ रहने वाले राहत इंदौरी दो दिन के लिए भी शहर में होते थे तो उनका ज्यादातर वक्त अपने चाहने वालों के बीच ही गुजरता था। न कभी दुलार के साथ बच्चों को गोद बिठाने की फुर्सत निकाल पाते और न ही उंगली थमाकर उन्हें अपने नक्श-ए-कदम पर चलने की तरबियत ही उन्होंने दी। वजह भी साफ़ थी, जिस दौर-ए-मसरूफ़ियत को उन्होंने जिया, वह जिन्दगी वे अपने बच्चों के लिए कभी नहीं चाहते थे। लेकिन हवा का रास्ता कौन रोक पाया है, पानी को बहने से रोकना किसके बस में है, घटाओं की दिशा बदलने का दावा कैसे किया जा सकता है। सतलज ने अपना रास्ता बना लिया, वह वालिद डॉ राहत इंदौरी से छिप-छिपकर ही मंच तक का सफर पूरा कर गए।

शुरुआती दौर में अपने मुहल्ले कालोनी में बराए एतराफ-ए-राहत पढ़ा लिए गए सतलज के लिए अब देश का हर बड़ा शहर और अदब का हर नामी मंच आसान है, अदबी दुनिया की बड़ी शख्सियतों की सरपरस्ती, रहनुमाई और साथ अब उसकी झोली में है। बीते कुछ ही सालों में सतलज ने देश नापने का दौर शुरू कर दिया है। सतलज में नए राहत को देखते लोग उसके कलाम को दाद भी दे रहे हैं और हौसला भी बढ़ा रहे हैं। सतलज ने राहत के बीच राह छोड़े उस पथ पर भी कदम बढ़ा दिए हैं, जिसे लोग माया नगरी कहते हैं। फिल्म के रुपहले पर्दे ने राहत के लिए सारे रास्ते खोल दिए थे, कई हिट फिल्मों के मशहूर गीत उनकी कलम की रोशनाइ से जन्म लेकर लोगों की जुबान पर शहद घोलने लगे थे, लेकिन राहत को मंच की त्वरित वाहवाही की ललक ने उस नगरी में रुकने नहीं दिया। अब सतलज ने उस सफर को आगे बढ़ाया है।

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