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क्या नॉन वेजिटेरियन गायों का दूध भी है भारत-अमेरिका ट्रेड डील का रोड़ा? जानें क्यों उठ रहे हैं सवाल

“कल्पना कीजिए कि आप एक ऐसी गाय के दूध से बना मक्खन खा रहे हैं जिसे दूसरी गाय का मांस और खून खिलाया गया हो.”, “मान लीजिए आज पूजा करने के लिए गाय का दूध खरीद रहे हों लेकिन आपको पता चले कि इस गाय को चारे के रूप में नॉन वेज खाना दिया गया है.” ऐसी आशंकाएं इसलिए जताई जा रही हैं क्योंकि भारत-अमेरिका के बीच ट्रेड डील के लिए होने वाली बातचीत के दौरान ऐसे मुद्दे भी सामने आ रहे हैं.

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दोनों देश के शीर्ष वार्ताकार कृषि और डेयरी के मुद्दों पर सहमति कायम करने के लिए एक साझा आधार तलाश रहे हैं. भारत के सामने किसानों के हितों की रक्षा के अलावा, “मांसाहारी दूध (Non veg milk)” को लेकर सांस्कृतिक-धार्मिक संवेदनशीलता भी एक बड़ा मुद्दा है. जबकि वाशिंगटन डीसी नई दिल्ली पर अपना डेयरी बाजार खोलने के लिए दबाव बना रहा है.

लेकिन भारत चाहता है कि ऐसे प्रोडक्ट पर इस बात की स्पष्ट सूचना लिखी हो कि अमेरिका से आयात किया गया ये दूध उन गायों से आता है जिन्हें मांस या खून से बने चारे नहीं खिलाए गए हैं. धार्मिक और सांस्कृतिक संवेदनशीलताओं के कारण भारत ऐसी सूचना को अपने उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए “कभी भी समझौता न किए जाने वाला रेड लाइन” मानता है.

गायों को नॉन वेज चारा खिलाता है अमेरिका

गौरतलब है कि अमेरिका में गायों चारे में नॉन-वेज प्रोडक्ट खिलाए जाने की परंपरा है. भारत-अमेरिका दोनों देश ट्रेड डील को संभव बनाने के लिए काम कर रहे हैं. जिसका उद्देश्य एक समझौते तक पहुंचना और 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 अरब डॉलर तक बढ़ाना है. इस ट्रेड डील की सबसे बड़ी बाधा डेयरी और कृषि क्षेत्र के मुद्दे बन रहे हैं.

इस गतिरोध का मूल कारण भारत द्वारा अमेरिकी प्रोडक्ट पर सख्त सर्टिफिकेट का सिस्टम लागू करना है. जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि आयातित डेयरी उत्पाद उन गायों से बनाए गए हैं जिन्हें मांस या खून जैसे पशु-आधारित उत्पाद नहीं खिलाए जाते हैं.

नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इंस्टीट्यूट (GTRI) के अजय श्रीवास्तव ने बताया, “कल्पना कीजिए कि आप उस गाय के दूध से बना मक्खन खा रहे हैं जिसे किसी दूसरी गाय का मांस और खून पिलाया गया हो. भारत शायद इसकी कभी अनुमति न दे.” भारत में डेयरी उत्पाद सिर्फ़ खाने के लिए ही नहीं, बल्कि रोजमर्रा के धार्मिक अनुष्ठानों का भी एक अभिन्न अंग हैं.

इस बीच वाशिंगटन डीसी ने डेयरी और कृषि पर भारत के अड़ियल रवैये को “अनावश्यक व्यापार बाधा” करार दिया है. वहीं दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश भारत अपने लाखों छोटे डेयरी किसानों की रक्षा के लिए पूरी तरह तैयार है.

भारत ने खींच दी है रेड लाइन

शीर्षस्थ सरकारी सूत्रों के अनुसार भारत ने डेयरी क्षेत्र में किसी भी तरह की नरमी बरतने से साफ़ इनकार कर दिया है. यह क्षेत्र 1.4 अरब से ज़्यादा लोगों की रोजाना की जरूरतों से जुड़ा है और 8 करोड़ से ज़्यादा लोगों खासकर छोटे किसानों को रोजगार देता है. एक वरिष्ठ सरकारी सूत्र ने जुलाई की शुरुआत में बताया था, “डेयरी क्षेत्र में नरमी बरतने का सवाल ही नहीं उठता. यह एक लक्ष्मण रेखा है.”

भारत सरकार का ये रुख भारतीयों, खासकर यहां की विशाल शाकाहारी आबादी की सांस्कृतिक और आहार संबंधी प्राथमिकताओं का नतीजा है. भारत की ये आबादी गायों को नॉन वेज चारे को खिलाने को अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप नहीं मानती है. ये लोग इस गाय के दूध से बने किसी भी प्रोडक्ट को खाना पसंद नहीं करते हैं.

रिपोर्ट के अनुसार भारत अभी विदेश से आयात होने वाले डेयरी प्रोडक्ट पर उच्च टैरिफ लगाता है. जैसे पनीर पर 30%, मक्खन पर 40% और दूध पाउडर पर 60%. भारत की इस पॉलिसी की वजह से न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश जहां डेयरी प्रोडक्ट सस्ते हैं वहां से भी भारत डेयरी प्रोडक्ट मंगाना अव्यावहारिक हो जाता है. क्योंकि ये उत्पाद भारत आकर काफी महंगे हो जाते हैं.

इसके अतिरिक्त भारत का पशुपालन एवं डेयरी विभाग खाद्य आयात के लिए पशु चिकित्सा प्रमाणन अनिवार्य करता है. इससे यह सुनिश्चित होता है कि आयात होने वाले प्रोडक्ट उन पशुओं के हैं जिन्हें जानवरों से बने चारे खाने के लिए नहीं दिए गए हैं. भारत के इस शर्तों की अमेरिका ने विश्व व्यापार संगठन में आलोचना की है.

अमेरिका दुनिया का प्रमुख डेयरी प्रोडक्ट का निर्यातक देश है. पिछले साल अमेरिका ने 8.22 बिलियन डॉलर के डेयरी प्रोडक्ट दुनिया को निर्यात किए. अमेरिकी सरकार अपने प्रोडक्ट के लिए भारत का बाजार खोलना चाहती हैं. भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक और उपभोक्ता है.

…तो होगा 1.03 लाख करोड़ रुपये का नुकसान

एक रिपोर्ट के अनुसार भारत का डेयरी बिजनेस अभी 16.8 बिलियन डॉलर का है. वैश्विक दूध उत्पादन (239 मिलियन मीट्रिक टन) का लगभग एक-चौथाई हिस्सा भारत से आता है और यह पेशा लाखों-करोड़ों लोगों की आजीविका का आधार है. अमेरिकी डेयरी आयात के लिए बाज़ार खोलने से भारत में सस्ते उत्पादों की बाढ़ आ सकती है जिससे घरेलू कीमतें गिर सकती हैं और छोटे किसानों की आर्थिक सेहत को खतरा पैदा हो सकता है.

महाराष्ट्र के एक किसान महेश सकुंडे ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, “सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि दूसरे देशों से सस्ते आयात का असर हम पर न पड़े. अगर ऐसा हुआ तो पूरे डेयरी उद्यो को नुकसान होगा और हमारे जैसे किसानों को भी.”

रिपोर्ट के अनुसार एसबीआई के एक विश्लेषण में अनुमान लगाया गया है कि अगर भारत अपने डेयरी क्षेत्र को अमेरिकी आयात के लिए खोलता है तो उसे सालाना 1.03 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा. भारत का डेयरी उद्योग ग्रामीण अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग है. इसका मूल्य 7.5-9 लाख करोड़ रुपये के बराबर है. चारे में मीट खाने वाली गायों का दूध भारत को नहीं चाहिए. अगर भारत दूध और डेयरी प्रोडक्ट से आयात प्रतिबंध हटाता है तो इसके बाद डेयरी उपभोक्ताओं की चिंताओं को लेकर गंभीर समस्या पैदा हो सकती है.

आहार संबंधी, सांस्कृतिक और धार्मिक संवेदनशीलताएं अमेरिका से डेयरी आयात के मुद्दे को जटिल बनाती हैं, खासकर जब बात उन पशुओं से मिले उत्पादों की हो जिन्हें भारतीय समुदायों के मानदंडों के अनुसार नहीं पाला गया हो. दूध और इसके बाइ प्रोडक्ट से जुड़ी ये चिंताएं गहरी हैं.

भारत में दूध और घी सहित डेयरी उत्पादों का उपयोग रोजमर्रा के धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है. इन्हें महज व्यापारिक बाधाओं के रूप में खारिज नहीं किया जा सकता, क्योंकि ये आहार प्रतिबंधों, पारंपरिक प्रथाओं और आस्था को प्रभावित करती हैं.

“गायों को अभी भी ऐसा चारा खाने दिया जाता है जिसमें सूअर, मछली, मुर्गी, घोड़े, यहां तक कि बिल्लियों या कुत्तों के अंग भी शामिल हो सकते हैं. यहां मवेशी प्रोटीन के लिए सूअर और घोड़े का खून साथ ही चर्बी बढ़ाने के स्रोत के रूप में चर्बी जो मवेशियों के अंगों से प्राप्त एक कठोर वसा है, को खाना जारी रख सकते हैं,” ऐसा अमेरिकी अखबार द सिएटल टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है जिसका शीर्षक था, ‘Cattle feed is often a sum of animal parts-मवेशी चारा अक्सर जानवरों के अंगों का मिश्रण होता है’. कुछ मामलों में मुर्गी के कूड़े, गिरा हुआ चारा, पंख और उनके बीट को भी गायों को खिलाया जाता है. इसका इस्तेमाल अमेरिका में सस्ते चारे के रूप में किया जाता है. एएनआई की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत ने उन डेयरी उत्पादों के आयात पर सख्ती से प्रतिबंध लगा रखा है जो वैसे गायों से बनती है जो आहार के रूप में दूसरे पशुओं के अंगों से बने प्रोडक्ट खाती हैं.

भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता के बीच अमेरिकी आयात के लिए अपने डेयरी क्षेत्र को खोलने का भारत का विरोध सिर्फ़ आर्थिक ही नहीं है. अमेरिका से सस्ते डेयरी आयात के लिए इस क्षेत्र को खोलना बहुसंख्यक भारतीयों की सांस्कृतिक, धार्मिक और आहार संबंधी मान्यताओं के भी विपरीत है. जैसे-जैसे दोनों देश व्यापक समझौते पर ज़ोर दे रहे हैं, “मांसाहारी दूध” को लेकर यह खाई पाटना सबसे मुश्किल साबित हो रहा है.

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