जासूसी के खेल में ISI का कोड हुआ डिकोड… फर्जी नाम पर पासपोर्ट, PAK एजेंट बना वीजा अफसर

भारत में पाकिस्तान उच्चायोग में तैनात एक अधिकारी को लेकर खुफिया एजेंसियों के हाथ बड़ी जानकारी लगी है. वीजा डेस्क पर तैनात एहसान उर रहमान उर्फ दानिश, दरअसल पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI का प्रशिक्षित एजेंट था, जो अपनी पहचान छुपाकर भारत में खुफिया नेटवर्क सक्रिय करने के मिशन पर भेजा गया था.

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सूत्रों के अनुसार, दानिश की नियुक्ति और पहचान दोनों संदिग्ध हैं. उसका पासपोर्ट इस्लामाबाद से जारी हुआ था और उसे भारत का वीजा जनवरी 2022 में दिया गया था. दस्तावेज यह भी संकेत देते हैं कि उसका जन्मस्थान पाकिस्तान के नारोवाल में है. भारतीय एजेंसियों को आशंका है कि दानिश के रूप में सामने आया यह व्यक्ति, वीजा प्रक्रिया से जुड़ी भूमिका के अलावा, जासूसी गतिविधियों और लोगों को अपने प्रभाव में लेने के काम में भी शामिल रहा है.

नाम असली या कोडनेम

जांच एजेंसियों के मुताबिक, यह अब तक स्पष्ट नहीं हो सका है कि दानिश का असली नाम एहसान उर रहमान है या फिर ISI द्वारा दिया गया कोड नेम. एजेंसियों को शक है कि यह नाम और पहचान दोनों ही भारत में जासूसी गतिविधियों को संचालित करने के उद्देश्य से गढ़ी गई थीं. यह पहला मौका नहीं है जब पाकिस्तान हाई कमीशन में तैनात कोई अधिकारी जासूसी में संलिप्त पाया गया हो. 31 मई 2020 को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और मिलिट्री इंटेलिजेंस (MI) ने पाक हाई कमीशन के दो अफसरों आबिद हुसैन और ताहिर खान को जासूसी करते हुए रंगे हाथों पकड़ा था. दोनों ‘वीजा अधिकारी’ के तौर पर भारत आए थे, लेकिन असल में वे भी ISI के प्रशिक्षित एजेंट थे. भारत सरकार ने दोनों को ‘परसोना नॉन ग्रेटा’ घोषित करते हुए देश से बाहर निकाल दिया था. इस कार्रवाई के बाद पाकिस्तान हाई कमीशन के स्टाफ की संख्या लगभग 180 से घटाकर 90 कर दी गई थी. यह कदम भारत सरकार द्वारा विदेशी मिशनों में सक्रिय संदिग्ध गतिविधियों पर नकेल कसने की दिशा में अहम माना गया था.

हाई कमीशन के नाम पर खुफिया ठिकाना

भारतीय खुफिया एजेंसियों को लगातार इनपुट मिलते रहे हैं कि पाकिस्तान हाई कमीशन में वीजा अफसर, कुक, ड्राइवर और कल्चरल स्टाफ जैसे पदों के पीछे ISI के एजेंट तैनात किए जाते हैं. ये एजेंट अपने असली नाम, रैंक और पहचान को छिपाकर भारत में आते हैं और कूटनीतिक सुरक्षा का फायदा उठाकर जासूसी नेटवर्क संचालित करते हैं. एहसान उर रहमान का मामला भी इसी कड़ी का हिस्सा माना जा रहा है. वह कहने को वीजा डेस्क पर काम कर रहा था, लेकिन उसका असली मकसद भारत में सेंसिटिव जानकारियों को इकट्ठा करना और लोगों को हनी ट्रैप या अन्य तरीकों से फंसाना था.

राणा मोहम्मद जीया का मामला भी आया था सामने

साल 2021 में भी ऐसा ही एक मामला सामने आया था जब दिल्ली पुलिस और MI ने राणा मोहम्मद जीया नाम के एक पाकिस्तानी मूल के वीजा अधिकारी को बेनकाब किया था, जो असल में ISI का ऑपरेटिव था. इस ऑपरेशन में सेना से जुड़े हबीब नाम के एक ठेकेदार को पोखरण से गिरफ्तार किया गया था, जो राणा के संपर्क में था.

क्या कहते हैं दस्तावेज

सूत्रों के अनुसार, एहसान उर्फ दानिश का जन्मस्थान नारोवाल, पाकिस्तान है. उसका पासपोर्ट इस्लामाबाद से जारी हुआ था और उसने भारत में पाक उच्चायोग में वीजा डेस्क पर ड्यूटी जॉइन की थी. लेकिन उसकी गतिविधियां संदिग्ध पाई गईं और अब केंद्रीय एजेंसियां उसकी भूमिका की गहराई से जांच कर रही हैं.

ज्योति भी मिली थी दानिश से

जासूसी के आरोप में गिरफ्तार हुई ज्योति की भी मुलाकात दानिश से हो चुकी थी. ज्योति को पाकिस्तान जाने का वीजा दिलाने में दानिश ने ही मदद की थी.हिसार पुलिस ने बताया कि अब तक ज्योति मल्होत्रा के मोबाइल फोन, लैपटॉप और अन्य डिजिटल उपकरणों का डेटा ही खंगाला जा रहा है. लेकिन इन उपकरणों से किसी प्रकार की सैन्य जानकारी, गुप्त दस्तावेज या रणनीतिक सूचनाओं के लीक होने का कोई स्पष्ट प्रमाण सामने नहीं आया है. फॉरेंसिक लैब से रिपोर्ट की प्रतीक्षा की जा रही है, और ये रिपोर्ट ही तय करेंगी कि आरोपी की गतिविधियों का दायरा कितना बड़ा है. व्हाट्सएप चैट को लेकर भी अभी कोई आधिकारिक टिप्पणी पुलिस द्वारा नहीं की गई है. ऐसे में यह अंदेशा जताया जा रहा है कि ज्योति की चैट हिस्ट्री में ऐसे सुराग हो सकते हैं जो आगे की जांच की दिशा तय करेंगे. सूत्रों की मानें तो पुलिस का फोकस अब ज्योति की ऑनलाइन गतिविधियों, संपर्क सूत्रों और डिजिटल फुटप्रिंट पर है. उसके सोशल मीडिया अकाउंट्स, ईमेल कम्युनिकेशन और इंस्टेंट मैसेजिंग ऐप्स के माध्यम से यह जानने की कोशिश की जा रही है कि उसने कब, कहां और किन माध्यमों से पाकिस्तान इंटेलिजेंस के संपर्क साधे.

चार बैंक खातों की पड़ताल जारी

जांच में यह सामने आया है कि ज्योति मल्होत्रा के चार अलग-अलग बैंक खाते हैं, जिनकी ट्रांजेक्शन हिस्ट्री की बारीकी से जांच की जा रही है. पुलिस जानना चाहती है कि क्या उसे पाकिस्तान इंटेलिजेंस से कोई आर्थिक सहायता मिली या नहीं. अब तक की जानकारी के अनुसार, इन खातों से किसी प्रकार का संदिग्ध लेन-देन नहीं मिला है, लेकिन ट्रांजेक्शन की जड़ तक जाने के लिए एफएसएल (Forensic Science Laboratory) और बैंकिंग एक्सपर्ट्स की मदद ली जा रही है. यह भी संभव है कि कोई डिजिटल वॉलेट, क्रिप्टोकरेंसी या मनी ट्रांसफर ऐप्स का इस्तेमाल हुआ हो, जिसकी जांच फिलहाल तकनीकी एजेंसियों द्वारा की जा रही है.

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