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शेयर बाजार के अपने जोखिम, निवेश की वसूली के लिए FIR दर्ज करना गलत: हाई कोर्ट

यूपी के आगरा में एक शख्स ने शेयर मार्केट के लाइसेंसधारी ब्रोकर व अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी. मामला दोनों पक्षों के बीच लेन-देने को लेकर था. इसके खिलाफ ब्रोकर व अन्य ने इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि शेयर बाजार के अपने जोखिम हैं. निवेश की गई रकम की वसूली के लिए शेयर ब्रोकर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करना सही नहीं है. कोर्ट ने लाइसेंसधारी ब्रोकर और प्रतिभूति कंपनी के निदेशक/मालिक के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई रद्द कर दी है.

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जितेंद्र कुमार केसरवानी के खिलाफ इक्विटी शेयर लेनदेन के संबंध में आईपीसी की धारा-420 और 409 के तहत थाना हरि पर्वत, आगरा में एफआईआर दर्ज हुई थी. मामला कोर्ट में पहुंचा. इसमें जस्टिस अनीश कुमार गुप्ता ने कहा कि आवेदक एक शेयर ब्रोकर था. विरोधी पक्ष शेयरों में निवेश के परिणामों से पूरी तरह वाकिफ थे.

इसकी एफआईआर नहीं होगी: हाई कोर्ट

तर्क दिया गया कि एफआईआर में धारा-420 और 409 आईपीसी के कोई तत्व नहीं हैं. पक्षों के बीच विवाद एक व्यापारिक लेनदेन से संबंधित था. इसलिए यह मामला भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) अधिनियम, 1992 के दायरे में आता है. इसकी एफआईआर नहीं होगी.

SEBI अधिनियम एक विशेष अधिनियम है

हाई कोर्ट ने कहा कि एक ही आरोप के आधार पर किसी व्यक्ति को धारा-409 आईपीसी के साथ-साथ धारा-420 आईपीसी के तहत अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. दोनों अपराध विरोधाभासी हैं. सेबी अधिनियम एक विशेष अधिनियम है, जो आईपीसी या सीआरपीसी जैसे सामान्य अधिनियम पर प्रभावी होगा.

प्रोफेसर के प्रमोशन में देरी पर कुलपति से जवाब तलब

एक अन्य मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बीएचयू के कुलपति को हलफनामा दाखिल कर यह बताने के लिए कहा है कि एक सहायक प्रोफेसर के प्रमोशन को लेकर देरी क्यों की जा रही है. जबकि कार्यकारी परिषद प्रस्ताव पारित कर चुका है. फिर इसे लागू करने में देरी क्यों है.

विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद ने सहायक प्रोफेसर और याचिकाकर्ता के प्रमोशन को लेकर 4 जून, 2021 को प्रस्ताव पारित किया था. याचिकाकर्ता के मुताबिक कार्यकारी परिषद की बैठक में उनके प्रमोशन स्टेज-2 से स्टेज-3 में करने की सिफारिश की गई थी. मगर, अभी तक इसे लागू नहीं किया गया. तीन साल से अधिक का समय बीत गया है.

कुलपति की ओर से पेश हुए अधिवक्ता ने बताया कि कार्यकारी परिषद का प्रस्ताव अस्तित्व में है. मगर, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के 2021 के पत्र में पुनर्विचार किए जाने की जरूरत की बात कही गई है. कोर्ट ने कुलपति को एक सप्ताह के भीतर व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है.

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