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मॉब लिंचिंग को धर्म से जोड़ना गलत, मत बनिए सिलेक्टिव: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि मॉब लिंचिंग की घटनाओं को धर्म के आधार पर नहीं देखा जाना चाहिए. जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच मॉब लिंचिंग से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

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नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमन (NFIW) ने पिछले साल यह याचिका लगाई थी. इसमें अल्पसंख्यकों के खिलाफ भीड़ की हिंसा की घटनाओं में बढ़ोतरी पर चिंता जताई गई थी. साथ ही मॉब लिंचिंग में जान गंवाने वाले पीड़ितों के परिवारों के लिए मुआवजे की मांग की गई थी.

कोर्ट के पूछने पर याचिकाकर्ता ने बताया था कि याचिका में उदयपुर के कन्हैया लाल हत्याकांड का जिक्र नहीं है. इस पर कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में सिलेक्टिव मत बनिए, क्योंकि यह मामला सभी राज्यों से जुड़ा है.

कोर्ट ने महाराष्ट्र, उड़ीसा, राजस्थान और बिहार से मॉब लिंचिंग मामलों में की गई कार्रवाई को लेकर 6 हफ्ते में जवाब भी मांगा है. कोर्ट ने कहा कि हमने पिछले साल 6 राज्यों से जवाब देने को कहा था, लेकिन अब तक सिर्फ मध्य प्रदेश और हरियाणा ने ही जवाब दिया है. अगली सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की गर्मियों की छुट्टियों के बाद होगी.

वकील निजाम पाशा ने कोर्ट में याचिकाकर्ता का पक्ष रखा. सुनवाई के दौरान पाशा ने कहा कि मध्य प्रदेश में मॉब लिंचिंग की घटना हुई थी, लेकिन पीड़ितों के खिलाफ गोहत्या की FIR दर्ज की गई. अगर राज्य सरकार मॉब लिंचिंग की घटना से ऐसे ही इनकार करती रही तो 2018 के तहसीन पूनावाला मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन कैसे होगा.

पूनावाला मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को भीड़ खासकर गौरक्षकों द्वारा हत्या की घटनाओं की जांच करने के लिए कई निर्देश जारी किए थे. कोर्ट ने आदेश में राज्य सरकार को पीड़ितों को 1 महीने के अंदर मुआवजा देने का निर्देश दिया था.

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