भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने शुक्रवार को सिंगापुर में आयोजित 22वें शांग्री-ला डायलॉग में हिस्सा लिया और आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान को आईना दिखाया है. जनरल चौहान ने कहा, सिर्फ भारत नहीं बदला, रणनीति भी बदली है.
शांग्री-ला डायलॉग एशिया का प्रमुख रक्षा मंच है, जिसका आयोजन शुक्रवार से रविवार तक हो रहा है. इस महत्वपूर्ण संवाद के दौरान जनरल चौहान ने ‘भविष्य के युद्ध और युद्धकला’ विषय पर संबोधन दिया. उन्होंने एक विशेष सत्र में भी हिस्सा लिया, जिसमें उन्होंने ‘भविष्य की चुनौतियों के लिए डिफेंस इनोवेशन सॉल्यूशन’ विषय पर अपनी बात रखी.
‘भारत आज आगे, यह रणनीति का नतीजा’
न्यूज एजेंसी के मुताबिक, सीडीएस जनरल चौहान ने साफ कहा कि भारत अब बिना रणनीति के नहीं चल रहा है. अगर पाकिस्तान की तरफ से सिर्फ दुश्मनी ही मिले तो दूरी ही सबसे बेहतर रणनीति हो सकती है. उन्होंने आगे कहा, जब हमने आजादी पाई थी, तब पाकिस्तान सामाजिक विकास, GDP, प्रति व्यक्ति आय से लेकर हर पैमाने पर हमसे आगे था. लेकिन आज भारत अर्थव्यवस्था, मानवीय विकास, सामाजिक समरसता समेत हर मोर्चे पर आगे है. यह संयोग नहीं, बल्कि रणनीति का नतीजा है.
‘ताली के लिए दो हाथ की जरूरत’
सीडीएस जनरल चौहान ने 2014 की कूटनीतिक पहल को याद दिलाया, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शपथ ग्रहण में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को आमंत्रित किया था. जनरल चौहान का कहना था कि लेकिन तालियां बजाने के लिए दो हाथ चाहिए होते हैं. उन्होंने कहा, अगर बदले में सिर्फ शत्रुता ही मिले तो फिलहाल दूरी बनाए रखना भी एक समझदारी भरी रणनीति है.
जनरल चौहान ने सिंगापुर में आयोजित कार्यक्रम के दरम्यान ऑस्ट्रेलिया, यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी, इंडोनेशिया, जापान, नीदरलैंड्स, न्यूजीलैंड, फिलीपींस, सिंगापुर, ब्रिटेन समेत कई देशों के वरिष्ठ रक्षा अधिकारियों और सैन्य नेताओं के साथ द्विपक्षीय बैठकें भी की. इन बैठकों में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सैन्य सहयोग बढ़ाने, रक्षा साझेदारी को मजबूत करने और साझा सुरक्षा चुनौतियों से निपटने पर चर्चा हुई.
भारत-अमेरिका के बीच बातचीत
CDS जनरल अनिल चौहान ने अमेरिका के इंडो-पैसिफिक कमांड (INDOPACOM) के कमांडर एडमिरल सैमुअल जे. पापारो से मुलाकात की और रक्षा संबंधों को नई मजबूती दी. इस दौरान दोनों देशों के बीच बढ़ते सहयोग, क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों और खास तौर पर ऑपरेशन सिंदूर पर गहन चर्चा हुई. इस मुलाकात में मिलिट्री-टू-मिलिट्री कोऑपरेशन को विस्तार देने और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में साझेदारी के नए अवसरों पर बातचीत हुई. बदलते क्षेत्रीय सुरक्षा परिदृश्य को देखते हुए दोनों नेताओं ने उभरती चुनौतियों का मिलकर सामना करने के प्रति सांझे संकल्प को दोहराया.
‘चीन ने बदली रणनीति’
शांग्री-ला डायलॉग में 47 देशों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं, जिनमें 40 से अधिक मंत्री-स्तरीय प्रतिनिधि शामिल हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन इस बार अपने रक्षा मंत्री डोंग जुन को सम्मेलन में नहीं भेज रहा. इसके बजाय पीपल्स लिबरेशन आर्मी की नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी का एक प्रतिनिधिमंडल तीन दिवसीय सम्मेलन में हिस्सा ले रहा है. हाल के वर्षों में इस मंच पर चीन की रणनीति में महत्वपूर्ण बदलाव माना जा रहा है. सम्मेलन में अमेरिका और चीन के बीच ताइवान और दक्षिण चीन सागर में समुद्री अधिकारों को लेकर जारी तनाव पर विशेष चर्चा होगी.
यह पहली बार है जब चीन 2019 के बाद अपने रक्षा मंत्री को इस मंच पर नहीं भेज रहा है. साथ ही यह पहला अवसर है जब किसी यूरोपीय नेता (फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों) को इस सुरक्षा सम्मेलन में उद्घाटन भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया.
इमैनुएल मैक्रों गुरुवार को सिंगापुर पहुंच गए थे. सिंगापुर और फ्रांस के बीच राजनयिक संबंधों के 60 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में कई कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहीम भी शनिवार को सम्मेलन में संबोधन देंगे. अमेरिकी रक्षा सचिव पीट हेगसेथ का भाषण विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि वह ट्रंप प्रशासन की इंडो-पैसिफिक रक्षा नीति को पेश करेंगे.
तीन दिवसीय सम्मेलन में कुल सात पूर्ण सत्र और तीन विशेष सत्र आयोजित किए जा रहे हैं. शांग्री-ला डायलॉग का आयोजन लंदन स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ (IISS) द्वारा 2002 से किया जा रहा है, जिसमें एशिया-प्रशांत क्षेत्र की प्रमुख सुरक्षा चुनौतियों पर चर्चा होती है. 2024 में इसमें 45 देशों ने हिस्सा लिया था.