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इटली समेत ज्यादातर यूरोपीय देशों सरोगेसी पर प्रतिबंध, फिर क्यों जंग के बीच भी यूक्रेन में फल-फूल रही ये प्रैक्टिस?

कैथोलिक चर्च के प्रमुख पोप फ्रांसिस ने साल की शुरुआत में सरोगेसी पर यूनिवर्सल बैन लगाने की बात की. उन्होंने कहा कि ये मां और बच्चे की गरिमा के खिलाफ है. यूरोप के कई देशों ने पहले ही इसपर पाबंदी लगाई हुई है. अब इटली की सीनेट ने भी अपने देश ये प्रैक्टिस बंद करवा दी. यहां तक कि इटलीवासी दूसरे देश, जहां इसकी इजाजत है, वहां जाकर भी सरोगेट हायर नहीं कर सकेंगे. दूसरी तरफ यूक्रेन और मैक्सिको जैसे देशों में इसका बड़ा मार्केट बन चुका है.

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पीएम जॉर्जिया मेलोनी की पार्टी ने सत्ता में आने से पहले ही सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाने की बात की थी, अब 16 अक्टूबर को सीनेट से इसे पास भी कर दिया. सरकार का मानना है कि ये प्रैक्टिस शादी की पवित्रता को खत्म करती है, साथ ही मां-बच्चे की गरिमा के भी खिलाफ है. पोप फ्रांसिस ने साल की शुरुआत में और भी बड़ा बयान देते हुए इसे अजन्मे बच्चे की ट्रैफिकिंग तक कह दिया था. अब इटली की पीएम ने भी इसकी तुलना नरसंहार और मानवाधिकार हनन से कर दी. साथ ही कहा कि इंसानी जीवन कमोडिटी नहीं है, जिसे बेचा-खरीदा जाए. हालांकि विपक्षी दल ने इस प्रतिबंध का विरोध करते हुए तर्क दिया कि ये बच्चों की इच्छा रखते पेरेंट्स के साथ नाइंसाफी है.

यूरोपियन यूनियन के अधिकांश देशों में सरोगेसी पर कड़े कानून या प्रतिबंध हैं. कई देश इसे अनैतिक तक मानते हैं, खासकर कमर्शियल सरोगेसी को. जैसे, जर्मनी, फ्रांस और स्पेन में सरोगेसी पर कंप्लीट बैन है. यूनाइटेड किंगडम में सरोगेट हो तो सकती हैं लेकिन जिसमें पैसों का लेनदेन न हो. पोलैंड, ऑस्ट्रिया, स्वीडन, नॉर्वे और स्विटजरलैंड में भी कमर्शियल सरोगेसी बैन है.

एक तरफ यूरोप में इसपर प्रतिबंध कड़े हो रहे हैं, दूसरी तरफ यूक्रेन में इसका बाजार फल-फूल रहा है. यहां तक कि रूस से जंग के बीच भी यहां सरोगेट मांओं की तलाश में लोग आ रहे हैं. द गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार यहां रोमानिया, जर्मनी और ब्रिटेन से सबसे ज्यादा लोग आ रहे हैं. सरोगेसी क्लिनिक के डेटा के मुताबिक, जंग छिड़ने के बाद भी 1,000 से ज्यादा बच्चों का जन्म सरोगेसी के जरिए ही हुआ. ये डेटा साल 2023 की शुरुआत का है, यानी अनुमान लगा सकते हैं कि इसमें बढ़त ही हुई होगी. यहां तक कि सरोगेसी क्लिनिक के साथ ही बम शेल्टर बनाए जा चुके, जहां सारे इंतजाम हैं.

जर्नल ऑफ पब्लिक एंड इंटरनेशनल अफेयर्स का कहना है कि यूक्रेन अकेला ही ग्लोबल सरोगेसी मार्केट का एक चौथाई से बड़ा हिस्सा हो चुका. यहां का कानून इसकी इजाजत देता है और इसे मेडिकल टूरिज्म की तरह देखा जाता है. खासकर, भारत, नेपाल और थाइलैंड ने जबसे विदेशियों के लिए सरोगेसी पर बैन लगाया, तब से यूक्रेन बड़े डेस्टिनेशन की तरह उभरा. यहां सरोगेट को लीगल मां माना जाता है लेकिन चूंकि ये देश सरोगेसी-फ्रैंडली है इसलिए जन्म के साथ ही पेरेंटल ऑर्डर के जरिए पेरेंटहुड ट्रांसफर हो जाती है.

इसके अलावा मैक्सिको दूसरा बड़ा देश है, जहां विदेशी सरोगेसी के लिए जा रहे हैं. इनमें ज्यादातर गे जोड़े होते हैं. यहां बर्थ सर्टिफिकेट पर जन्म देने वाली मां की बजाए इंटेंडेड पेरेंट्स का नाम दिया जाता है ताकि कानूनी पचड़ा न हो.

सरोगेसी के इतिहास पर बहुत से अलग-अलग दावे हैं. कुछ स्कॉलर्स का कहना है कि इसकी शुरुआत बेबीलोन से ही हो चुकी थी, जो कि अब इराक का एक शहर है. भारतीय और विदेशी माइथोलॉजी में भी इसका जिक्र मिलता है.

हालांकि आधुनिक सरोगेसी की शुरुआत सत्तर के दशक में हुई थी, जब कैलीफोर्निया के एक कपल ने आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन के जरिए प्रेग्नेंसी का विज्ञापन निकाला. इस एड पर बहुतों ने जवाब भेजा, जिनमें से एक को चुना गया. इसके लिए दुनिया का पहला सरोगेसी कॉन्ट्रैक्ट बना और बदले में मां को फीस और मेडिकल खर्च भी दिया गया. इसके बाद पूरे अमेरिका में सरोगेसी पर बहस छिड़ गई. अब भी इसपर कोई फेडरल कानून नहीं, बल्कि हर राज्य अपने मुताबिक फैसले लेता है. कहीं केवल मदद के लिए सरोगेसी को इजाजत है तो कहीं कमर्शियल को भी छूट मिली हुई है.

हमारे यहां सरोगेसी को सरोगेसी (रेगुलेशन) अधिनियम, 2021 के तहत कंट्रोल किया जाता है. इसमें कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध है, जबकि केवल मदद के लिए ही ये काम किया जा सकता है. इसमें भी विदेशी जोड़े यहां आकर सरोगेट नहीं चुन सकते. सरोगेट मदर के लिए कई शर्तें हैं, जैसे केवल करीबी रिश्तेदार सरोगेट हो सकती है, जिसका पहले से एक बच्चा हो, और जिसकी उम्र 25 से 35 के बीच हो. इसके अलावा क्लिनिक को ये बताना भी जरूरी है कि वे सरोगेसी में सहायता करते हैं.

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