नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस बात पर दुख जताया कि छत्तीसगढ़ के एक गांव में एक व्यक्ति को अपने पिता को ईसाई रीति-रिवाजों से दफनाने के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा, क्योंकि अधिकारी इस मुद्दे को सुलझाने में विफल रहे. अदालत ने कहा कि बीते वर्षों और दशकों में क्या हुआ और क्या स्थिति थी. आपत्ति अब ही क्यों उठाई जा रही है?
मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने सवाल किया, “किसी व्यक्ति को किसी खास गांव में क्यों नहीं दफनाया जाना चाहिए? शव 7 जनवरी से मुर्दाघर में पड़ा हुआ है. यह कहते हुए दुख हो रहा है कि एक व्यक्ति को अपने पिता को दफनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट आना पड़ रहा है.”
पीठ ने कहा, “हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि न तो पंचायत, न ही राज्य सरकार या हाईकोर्ट इस समस्या का समाधान कर पाए. हम हाईकोर्ट की इस टिप्पणी से हैरान हैं कि इससे कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा होगी. हमें यह जानकर दुख हो रहा है कि एक व्यक्ति अपने पिता को दफनाने में असमर्थ है और उसे सुप्रीम कोर्ट आना पड़ रहा है.”
छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि गांव में ईसाइयों के लिए कोई कब्रिस्तान नहीं है और मृत व्यक्ति को गांव से 20 किलोमीटर दूर किसी स्थान पर दफनाया जा सकता है
सुप्रीम कोर्ट रमेश बघेल की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिन्होंने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया. हाईकोर्ट ने उनके पिता, जो पादरी थे, को गांव के कब्रिस्तान में ईसाइयों के लिए निर्धारित क्षेत्र में दफनाने की मांग वाली उनकी याचिका को खारिज कर दिया था. बघेल ने अपनी याचिका में कहा कि ग्रामीणों ने उनके पादरी पिता को कब्रिस्तान में दफनाने पर उग्र विरोध किया था. साथ ही पुलिस ने उन्हें कानूनी कार्रवाई की धमकी दी थी.
सोमवार को सुनवाई के दौरान बघेल की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत हलफनामे से पता चलता है कि उनके परिवार के सदस्यों को भी गांव में दफनाया गया था और मृतक को दफनाने की अनुमति नहीं दी जा रही थी, क्योंकि वह ईसाई थे. गोंजाल्विस ने स्पष्ट किया कि उनके मुवक्किल अपने पिता को गांव के बाहर दफनाना नहीं चाहते हैं.
इस पर राज्य सरकार के वकील मेहता ने कहा कि पादरी का बेटा आदिवासी हिंदुओं और आदिवासी ईसाइयों के बीच अशांति पैदा करने के लिए अपने पिता को अपने परिवार के पैतृक गांव के कब्रिस्तान में दफनाने पर अड़ा हुआ है.
गांव वालों की तरफ से आपत्ति
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि शव 7 जनवरी से मुर्दाघर में है, समाधान क्या है? जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि अगर गांव वालों की तरफ से कोई आपत्ति नहीं होती तो वे चुपचाप जाकर दफना देते. मेहता ने कहा कि उनकी याचिका में कहा गया है कि गांव वालों की तरफ से आपत्ति है. इस पर जस्टिस नागरत्ना ने कहा, “सदियों से कोई आपत्ति नहीं रही है.”
मेहता ने अदालत से अनुरोध किया कि मामले की सुनवाई मंगलवार या बुधवार को की जाए और वे बेहतर हलफनामा दाखिल करेंगे. जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि अदालत उन्हें (याचिकाकर्ता को) जाने और दफनाने की अनुमति दे सकता है, और मामला समाप्त हो जाएगा. हालांकि, मेहता ने अदालत से मामले में जल्दबाजी में फैसला न सुनाने का आग्रह किया और अनुच्छेद 25 का हवाला देते हुए कहा कि इसका उद्देश्य अराजकता पैदा करना नहीं है. मेहता ने कहा कि समाधान यह है कि गांव में ईसाई जो कुछ भी कर रहे हैं, याचिकाकर्ता को भी वही करना चाहिए.
जस्टि नागरत्ना ने हाईकोर्ट का हवाला देते हुए कहा, “कानून और व्यवस्था के नाम पर रिट याचिका खारिज की जाती है.” इस पर मेहता ने कहा कि हम इसे आंदोलन बनने की अनुमति नहीं दे सकते और यह किसी एक व्यक्ति के बारे में नहीं है.
दलीलें सुनने के बाद पीठ ने मामले की अगली सुनवाई बुधवार को तय की.
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने ग्राम पंचायत के सरपंच द्वारा जारी प्रमाण पत्र पर भरोसा करते हुए पादरी को गांव के कब्रिस्तान में दफनाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था. हाईकोर्ट का कहना था कि इससे आम जनता में अशांति और असामंजस्य पैदा हो सकता है. सरपंच अपने प्रमाण पत्र में कहा था कि गांव में ईसाइयों के लिए अलग से कोई कब्रिस्तान नहीं है.