जबलपुर: स्मार्ट सिटी अस्पताल के संचालक स्वंयभू भाजपा नेता अमित खरे का नया फर्जीवाड़ा, सरकारी डॉक्टरों की आड़ और बीमा क्लेम में डाका!

जबलपुर: संस्कारधानी में स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर फर्जीवाड़ा और माफियागिरी का खेल खेलने वाले स्मार्ट सिटी अस्पताल के संचालक और स्वंयभू भाजपा नेता अमित खरे पर एक बार फिर गंभीर आरोपों की बौछार हो गई है. कभी फर्जी एमएलसी, कभी आयुष्मान कार्ड घोटाला और कभी खुलेआम गुंडागर्दी में खरे का काला चिट्ठा थमा ही नहीं था. अब उस पर सरकारी अस्पताल में पदस्थ डॉक्टरों की आड़ लेकर निजी अस्पताल का प्रचार करने और मरीजों को गुमराह कर भर्ती कराने का खुला आरोप सामने आया है.
सरकारी डॉक्टर का नाम बेचकर मरीजों को किया भ्रमित
मामला उस वक्त तूल पकड़ गया, जब जिला अस्पताल विक्टोरिया में पदस्थ डॉक्टर राहुल शुक्ला का नाम और फोटो खरे ने अपने निजी अस्पताल के पोस्टर में छपवाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया. पोस्टर देखकर मरीज यह समझ बैठे कि सरकारी डॉक्टर स्मार्ट सिटी अस्पताल में सेवाएं दे रहे हैं. जैसे ही इस मामले की भनक डॉ. शुक्ला को लगी, उन्होंने तत्काल सीएमएचओ से शिकायत की. शिकायत पर स्वास्थ्य विभाग ने खरे को जमकर फटकार लगाई और कड़ी कार्यवाही की चेतावनी दी. यह घटना साफ करती है कि खरे किस तरह सरकारी संसाधनों और नामचीन डॉक्टरों की आड़ में अपना निजी कारोबार चमकाने में जुटा है.
मरीज के बीमा क्लेम की राशि डकारने का आरोप
सिर्फ प्रचार ही नहीं, खरे पर मरीजों की बीमा राशि हड़पने का भी संगीन आरोप है. नरसिंहपुर निवासी उद्यमान सिंह गोंड़ ने पुलिस अधीक्षक जबलपुर को दी लिखित शिकायत में बताया कि 14 सितंबर 2021 को सड़क हादसे में घायल होने के बाद वह स्मार्ट सिटी अस्पताल में भर्ती हुआ. अस्पताल प्रबंधन ने इलाज का खर्च बीमा क्लेम से दिलाने का वादा किया था. लेकिन जब 2 लाख 60 हजार रुपये की राशि स्वीकृत हुई, तो उसमें से पीड़ित को पूरा पैसा नहीं मिला. आरोप है कि बार-बार मांगने पर खरे ने न केवल भुगतान टाला बल्कि पीड़ित को धमकियां भी दीं.
किराए की बिल्डिंग में करता है संचालन
एक ओर सरकारी डॉक्टरों का नाम बेचकर फर्जी प्रचार, दूसरी ओर गरीब मरीजों की बीमा राशि हड़पना यह सब खरे की करतूतों की लंबी फेहरिस्त में नए पन्ने जोड़ते हैं. वहीं यह बात भी खास है कि खरे किराए की बिल्डिंग को ही चुनता है और उसी में अस्पताल का संचालन करता है. न्यायालय के आदेश पर बंद हो चुका एप्पल अस्पताल हो या फिर दोबारा स्मार्ट सिटी अस्पताल का संचालन हो सब किराए के भवनों पर ही संचालित हो रहा है.
आखिर किसके दबाव में प्रशासन
सवाल यह है कि आखिर कब तक स्वास्थ्य माफिया राजनीतिक संरक्षण के सहारे कानून और मरीजों की जिंदगी से खेलता रहेगा. आखिर जिला प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग इतनी शिकायतों के बावजूद कार्रवाई करने से पीछे क्यों हट रहा है. यह समझ से परे है. जनता का गुस्सा अब साफ है इस बार कार्रवाई आधी-अधूरी नहीं, निर्णायक होनी चाहिए.
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