‘उदयपुर फाइल्स’ फिल्म पर रोक की मांग, जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने खटखटाया हाईकोर्ट का दरवाजा

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना अरशद मदनी ने दिल्ली हाईकोर्ट के साथ ही मुंबई और गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करके उदयपुर फाइल्स फिल्म पर रोक लगाने की मांग की है. ये फिल्म 11 जुलाई को रिलीज हो रही है. बता दें कि ये उदयपुर फाइल्स की कहानी दर्जी कन्हैयालाल की हत्या, ज्ञानवापी और नूपुर शर्मा विवाद पर आधारित है.

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जमीअत के मुताबिक ‘उदयपुर फाइल्स’ जैसी नफरत फैलाने वाली फिल्म समाज में भाईचारे के खिलाफ हैं. जमीअत के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि इस फिल्म के ट्रेलर में अशोभनीय टिप्पणियां की गई हैं. ये फिल्म देश की अमन-शांति और आवाम के बीच सांप्रदायिक सौहार्द को आग लगाने के लिए बनाई गई है.

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मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि फिल्म के जरिए एक वर्ग विशेष और धार्मिक शैक्षणिक संस्थानों की छवि को नुक़सान पहुंचाने की साज़िश रची गई है. उन्होंने आश्चर्य जताया कि सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म को मंजूरी कैसे दे दी. उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि इस फिल्म के पीछे कुछ ताक़तें और लोग हैं, जो एक विशेष समुदाय की छवि खराब कर देश की बहुसंख्यक आबादी के बीच उनके खिलाफ ज़हर भरना चाहते हैं.

‘हमने क़ानूनी लड़ाई का रास्ता चुना’

मौलाना मदनी ने कहा कि फिल्म का 2 मिनट 53 सेकंड का जो ट्रेलर जारी किया गया है, वह ऐसे डायलॉग्स और दृश्यों से भरा है जो देश में सांप्रदायिक सौहार्द को नुक़सान पहुंचा सकते हैं. फिल्म में 2022 में उदयपुर में हुई एक घटना को आधार बनाया गया है. लेकिन ट्रेलर से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि फिल्म का मकसद एक विशेष धार्मिक समुदाय को नकारात्मक और पक्षपाती रूप में पेश करना है, जो उस समुदाय के लोगों के सम्मान के साथ जीने के मौलिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन है. हमने इस फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाने के लिए क़ानूनी लड़ाई का रास्ता चुना है और सेंसर बोर्ड को भी इसमें एक पक्षकार बनाया है, क्योंकि उसका अपराध उन लोगों से कम नहीं है, जिन्होंने इस घृणित फिल्म को बनाया है.

ट्रेलर जारी होते ही उठी बैन की मांग

बता दें कि उदयपुर में दर्जी कन्हैयालाल की हत्या की घटना पर आधारित फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ का ट्रेलर जारी होते ही इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग ज़ोर पकड़ने लगी है. इस फिल्म के ट्रेलर में नूपुर शर्मा का वह विवादित बयान भी शामिल है, जिसकी वजह से न केवल देश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ा था.

फिल्म में इन विवादों का भी जिक्र

फिल्म में ‘ज्ञानवापी मस्जिद’ जैसे मामलों का भी उल्लेख है. ये मामले वर्तमान में वाराणसी की ज़िला अदालत और सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हैं. फिल्म को सेंसर बोर्ड से प्रमाणपत्र जारी होने के बाद 11 जुलाई को रिलीज किया जाना है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका में केंद्र सरकार, सेंसर बोर्ड, जॉनी फायर फॉक्स मीडिया प्रा. लि. और एक्स कार्प्स को पक्षकार बनाया गया है, जो फिल्म के निर्माण और वितरण से जुड़े हैं.

‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का दुरुपयोग’

याचिका वकील फ़ुजैल अय्यूबी ने तैयार की है. याचिका में कहा गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का दुरुपयोग करते हुए फिल्म में ऐसे दृश्य दिखाए गए हैं, जिनका इस्लाम, मुसलमानों और देवबंद से कोई लेना-देना नहीं है. ट्रेलर से साफ़ झलकता है कि यह फिल्म मुस्लिम-विरोधी भावनाओं से प्रेरित है.

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