श्रीनगर: पिछले तीन दशकों से अधिक समय में पहली बार कश्मीरी प्रवासियों ने घाटी में अपने स्थायी निवास के लिए सरकार से मामूली दरों पर जमीन के लिए श्रीनगर में एक हाउसिंग सोसायटी रजिस्टर कराई है.
यह बात कश्मीरी पंडितों के बीच उनकी वापसी और पुनर्वास की सरकारी योजनाओं में हो रही देरी के कारण बढ़ती निराशा के बीच कही गई है. अब उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा समुदाय की उनके मूल स्थान पर वापसी की सुविधा प्रदान करने के वादे के मद्देनजर, उन्होंने औपचारिक रूप से जम्मू- कश्मीर में सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार के साथ ‘विस्थापित कश्मीरी निवासी आवास सहकारी, श्रीनगर’ नाम से समिति को पंजीकृत कराया है.
सोसायटी के सचिव और नई दिल्ली स्थित सतीश महालदार ने कहा कि इस पहल का उद्देश्य प्रवासियों को अलग-थलग बस्तियों में रहने के बजाय मुस्लिम आबादी के साथ एकीकृत करना है. इसमें 13 सदस्य शामिल हैं. इनमें दो सिख समुदाय से हैं और शेष कश्मीरी पंडित हैं.
ये 1989 के बाद से आरंभिक आतंकवाद और उसके बाद चुनिंदा अल्पसंख्यक हत्याओं के कारण घाटी से सामूहिक रूप से पलायन कर गए थे. 2010 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा में तत्कालीन सरकार ने दावा किया था कि घाटी में आतंकवादियों ने शीर्ष सरकारी अधिकारियों सहित 219 कश्मीरी पंडितों की हत्या कर दी थी.
इससे 62,000 से अधिक कश्मीरी पंडितों को अपना घर-बार छोड़कर जम्मू और नई दिल्ली और देश के दूसरे हिस्सों में सुरक्षा की तलाश में भागना पड़ा. समुदाय का दावा है कि उनके घरों को लूटा गया और उन पर अतिक्रमण किया गया. इससे कई लोगों को ‘संकट’ में अपनी संपत्तियां बेचने पर मजबूर होना पड़ा.
इसके लिए सरकार ने अगस्त 2021 में एक ऑनलाइन पोर्टल लॉन्च किया जिससे प्रवासी अतिक्रमण और संकट में बिक्री की रिपोर्ट कर सकते हैं. जम्मू और कश्मीर प्रवासी अचल संपत्ति (संरक्षण, सुरक्षा और संकटकालीन बिक्री पर रोक) अधिनियम, 1997 में उन्हें ‘प्रवासी’ के रूप में वर्णित किया गया है.
केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री विकास पैकेज-2015 और प्रधानमंत्री पुनर्निर्माण योजना-2008 के तहत घाटी में पंडितों के लिए 6,000 नौकरियां सृजित की. अगस्त 2024 के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, उनमें से 5724 कश्मीरी प्रवासियों को नियुक्त किया गया है. इसके अलावा, कर्मचारियों के लिए उत्तर, मध्य और दक्षिण कश्मीर में 6000 ट्रांजिट आवास बनाए जा रहे हैं.
हालांकि, इन उपायों के बीच, महालदार का मानना है कि घाटी में समुदाय की वापसी को बिना किसी प्रगति के राजनीतिक स्पेक्ट्रम में चुनावी लाभ के लिए राजनीतिकरण किया गया है. उनके अनुसार, उन्होंने 2019 में कश्मीर लौटने के लिए केंद्र सरकार को 419 परिवारों की सूची सौंपी थी.
लेकिन आज तक इस पर कोई प्रगति नहीं हुई है, उन्होंने ईटीवी भारत को बताया, ‘पिछले 4-5 वर्षों से सरकार दावा करती है कि सामान्य स्थिति लौट आई है और ऐसे में हम अब अपनी जड़ों की ओर लौटना चाहते हैं. लेकिन हममें से कई लोगों ने इन वर्षों में अपनी जमीन और घर बेच दिए हैं. ऐसे में हमने सरकार से मामूली दरों पर जमीन मांगने के लिए एक हाउसिंग सोसाइटी की स्थापना की है.
महालदार ने कहा, ‘उदाहरण के लिए हम 100 कनाल जमीन मांग सकते हैं. इससे प्रत्येक परिवार के लिए प्लॉट और सामुदायिक केंद्र की सुविधा प्रदान किया जा सकता है. हम पहले श्रीनगर से शुरुआत करेंगे और बाद में गांवों में जा सकते हैं. लेकिन इसमें सभी समुदायों से आने वाले किसी भी कश्मीरी प्रवासी को समायोजित किया जा सकता है.’
उनके अपने समुदाय में एक बड़ा वर्ग उनकी इस योजना का विरोध कर रहा है, क्योंकि उनका मानना है कि पिछले पांच वर्षों में आतंकवादियों द्वारा अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर की गई हत्याओं की घटनाएं स्पष्ट रूप से इस क्षेत्र में ‘इस्लामी कट्टरपंथ’ को दर्शाती है. लेकिन वह दोनों समुदायों के बीच विश्वास बहाली के प्रति आशावादी हैं, जो उनके अनुसार पिछले कई वर्षों से कष्ट झेल रहे हैं.