जमुई: 12 साल पहले जेल से भागा था ये नक्सली, आज पुलिस ने कर दिया ‘गेम ओवर’

जमुई : झारखंड पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों को गुरुवार की रात एक बड़ी कामयाबी मिली.हजारीबाग जिले के पनतीतरी जंगल में हुई मुठभेड़ में भाकपा (माओवादी) संगठन का शीर्ष नेता और केंद्रीय कमेटी का सचिव प्रवेश दा उर्फ अनुज उर्फ सहदेव सोरेन मारा गया.प्रवेश पर झारखंड सरकार ने एक करोड़ रुपए और बिहार सरकार ने 5 लाख रुपए का इनाम घोषित किया था.

मुठभेड़ में प्रवेश दा के साथ दो अन्य नक्सली भी मारे गए। इनमें 25 लाख का इनामी रघुनाथ हेंब्रम उर्फ चंचल और 10 लाख का इनामी जोनल कमांडर वीरसेन गंझु शामिल हैं.तीनों नक्सलियों की मौत को सुरक्षा बलों ने नक्सल मोर्चे पर बड़ी उपलब्धि करार दिया है.

प्रवेश दा मूल रूप से हजारीबाग जिले के विष्णुगढ़ थाना क्षेत्र के भंडोरी गांव का रहने वाला था.पिछले कई वर्षों से वह झारखंड और बिहार के सीमावर्ती इलाकों में सक्रिय था.उसका प्रभाव झारखंड के हजारीबाग, बोकारो, गिरिडीह और छत्तीसगढ़ तक फैला था.वहीं बिहार के जमुई, लखीसराय, मुंगेर, बांका और भागलपुर जिलों में भी वह नक्सली गतिविधियों का संचालन करता था.

गौरतलब है कि 2012 में पुलिस ने उसे जमुई-गिरिडीह जिला सीमा से गिरफ्तार किया था और गिरिडीह जेल में रखा गया था.लेकिन 2013 में कोर्ट में पेशी के दौरान नक्सलियों ने कैदी गाड़ी पर हमला कर उसे छुड़ा लिया.इसके बाद उसने जमुई के नक्सल प्रभावित इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत कर ली और संगठन में लगातार ऊपर चढ़ते हुए केंद्रीय कमेटी का सदस्य और फिर सचिव बन गया.

सुरक्षा एजेंसियों ने बताया कि प्रवेश पर पहले झारखंड सरकार ने 25 लाख और बिहार सरकार ने 5 लाख का इनाम घोषित किया था.बाद में उसकी बढ़ती भूमिका और संगठनात्मक क्षमता को देखते हुए झारखंड सरकार ने इनाम राशि बढ़ाकर एक करोड़ कर दी.

पुलिस अधिकारियों ने बताया कि प्रवेश और उसके साथियों के मारे जाने के बाद अब बिहार के जमुई, लखीसराय, मुंगेर, बांका और भागलपुर जैसे नक्सल प्रभावित जिले पूरी तरह नक्सल मुक्त हो चुके हैं.यह सफलता सुरक्षा बलों के लगातार चल रहे अभियान और स्थानीय लोगों के सहयोग का परिणाम है.

इस कार्रवाई के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने दावा किया है कि झारखंड-बिहार की सीमाओं पर नक्सली गतिविधियाँ अब लगभग समाप्त हो चुकी हैं.हालांकि सतर्कता के तौर पर पुलिस ने इन इलाकों में सर्च ऑपरेशन तेज कर दिया है, ताकि किसी भी शेष गुट को दोबारा संगठित होने का अवसर न मिल सके.

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