बस्तर के बीजापुर जिले के पत्रकार मुकेश चंद्राकर हत्याकांड के आरोपी ठेकेदार सुरेश चंद्राकर को हाईकोर्ट से राहत नहीं मिल पाई। उसने पीडब्ल्यूडी के निर्माण कार्यों का टेंडर रद्द करने, सिक्योरिटी डिपाजिट जब्त करने और 10% जुर्माने की कार्रवाई को चुनौती दी थी।
चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने कहा कि, यह पूरा विवाद अनुबंध की शर्तों से जुड़ा है। जिसके लिए आर्बिट्रेशन (मध्यस्थता) की व्यवस्था मौजूद है। ऐसे में कान्ट्रेक्ट संबंधी मामले में रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। लिहाजा, कोर्ट ने प्रकरण में किसी भी तरह का हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
जानिए क्या है पूरा मामला
सुरेश चंद्राकर ए क्लास ठेकेदार है, उसे बीजापुर जिले में नेलसनार-फोड़ोली-मिर्टूर-गंगालूर मार्ग पर पुल और पुलिया निर्माण के लिए टेंडर मिला था। इस परियोजना की लागत लगभग 3.86 करोड़ थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि उसने परियोजना का बड़े हिस्से का काम पूरा कर लिया था और केवल करीब 2.58 करोड़ का काम शेष रह गया था।
निर्माण कार्य की समय-सीमा कई बार बढ़ाई गई थी। आखिरी विस्तार 31 मार्च 2025 तक दिया गया। लेकिन, इसी बीच 6 जनवरी 2025 को ठेकेदार की पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या मामले में गिरफ्तारी हो गई,। जिस कारण वह काम की व्यक्तिगत निगरानी नहीं कर पाया।
विभाग ने 31 दिसंबर 2024 को नोटिस जारी कर काम बंद होने की शिकायत की और 6 जनवरी 2025 को एग्रीमेंट समाप्त कर दिया। साथ ही, 37 लाख रुपए की सुरक्षा जमा जब्त कर 10% पेनल्टी भी लगा दी।
ठेकेदार का तर्क- दूसरे फर्म को टेंडर देने के बाद शुरू नहीं हुआ काम
याचिकाकर्ता ठेकेदार की तरफ से तर्क दिया गया कि काम का अधिकांश हिस्सा पूरा हो चुका था, शेष कार्य मामूली था। इसके बावजूद मनमाने तरीके से ठेका रद्द कर दिया गया। इतना ही नहीं, बचा हुआ काम एक अन्य ठेकेदार (शिव शक्ति इंजीनियरिंग वर्क्स) को 18 जून 2025 को सौंप दिया गया।
लेकिन, बारिश के कारण वो भी अब तक काम शुरू नहीं कर सका है। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से आग्रह किया कि टेंडर रद्द करने और उसके खिलाफ की गई कार्रवाई का आदेश निरस्त कर उन्हें शेष काम पूरा करने का मौका दिया जाए।
राज्य और केंद्र सरकार ने कहा- हाईकोर्ट का हस्तक्षेप नहीं
राज्य सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल और केंद्र सरकार की ओर से डिप्टी सालिसिटर जनरल ने कहा कि अनुबंध की धारा 28 में विवाद निपटाने की स्पष्ट व्यवस्था है। इसके तहत सभी विवाद आर्बिट्रेशन में जाने चाहिए। अगर, याचिकाकर्ता को अपनी बात रखनी है तो उसे उचित फोरम में जाना चाहिए। हाईकोर्ट सीधे तौर पर इस रिट याचिका पर हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
हाईकोर्ट ने आर्बिट्रेशन में जाने की दी छूट
इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच में हुई। सभी पक्षों को सुनने के बाद डिवीजन बेंच ने माना कि यह पूरा विवाद अनुबंध से जुड़ा है और इसमें तथ्यात्मक विवाद भी है।
ऐसे मामलों में हाईकोर्ट के लिए रिट याचिका पर हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता ठेकेदार को अनुबंध की धारा 28 के तहत आर्बिट्रेशन की प्रक्रिया के तहत उचित फोरम में जाने की छूट देते हुए याचिका को निराकृत कर दिया है।